ओलंपिक की मेजबानी!
हाल ही में मुंबई में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति यानी आईओसी के 141वें सत्र के उद्घाटन अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इच्छा व्यक्त की कि भारत वर्ष 2036 के ओलंपिक खेलों की मेजबानी करना चाहता है। निस्संदेह, खेलों में देश की बढ़ती भागीदारी व अंतर्राष्ट्रीय खेल आयोजनों के सफलतापूर्वक निर्वाह ने हमारी साख बढ़ाई है। लेकिन ओलंपिक जैसे विशाल स्तर के खेलों का आयोजन खुद में बड़ी चुनौती है। उसके लिये भारी-भरकम खर्च हेतु भी तैयार रहना पड़ता है। निस्संदेह, भारत दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। जी-20 जैसे सफल अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों से भारत की दुनिया में साख बढ़ी है। लेकिन यहां सवाल यह भी है कि क्या भारत के पास वह खेलों का ढांचा, तंत्र व आवश्यक संगठन हैं जो सुगमतापूर्वक खेलों के महाकुंभ का आयोजन कर सकें। आईओसी प्रमुख का भारत के दावे के प्रति सकारात्मक प्रतिसाद सामने आया है। आईओसी प्रमुख ने कहा भी है कि भारत ने न केवल आर्थिक क्षेत्र में उपलब्धि हासिल की है बल्कि खेलों के क्षेत्र में भी तेजी से आगे बढ़ रहा है। लेकिन भारत के लिये इतने बड़े आयोजन का सफलतापूर्वक निभा पाना इतना आसान भी नहीं होगा। इस मार्ग में तमाम तरह की चुनौतियां भी हैं। खासकर यह एक बेहद खर्चीला आयोजन है और संरचनात्मक ढांचे के निर्माण में बड़ा निवेश मांगता है। हम यह न भूलें कि देश में आर्थिक विषमता निरंतर बढ़ी है। समतामूलक समाज के लक्ष्य भी हासिल किये जाने चाहिए। वैसे इन खेलों के आयोजन के इतिहास पर नजर डालें तो दुनिया के कई छोटे देशों की आर्थिकी पर इस महा आयोजन के बाद नकारात्मक असर भी पड़ा है। ओलंपिक आयोजन से जुड़ी कई शंकाओं के चलते कई जानकार इसे घाटे का सौदा भी कहते रहे हैं। यद्यपि टीवी व अन्य प्रसारणों के अधिकार से आयोजक देशों की आय में आशातीत वृद्धि भी हुई है। निस्संदेह, ओलंपिक आयोजन की दावेदारी के लिये हमें कई मानकों-कसौटियों पर खरा उतरना होगा।
ध्यान रहे कि विषम परिस्थितियों में ओलंपिक जैसे आयोजन बेहद खर्चीले हो जाते हैं। हमने कोरोना संकट के दौर में देखा कि जापान में आयोजित पिछले ओलंपिक खेलों के खर्च में बेतहाशा वृद्धि हुई थी। लेकिन इसके बावजूद खेलों के इस महाकुंभ के आयोजन की मेजबानी करना गर्व की बात भी है। वैसे इस आयोजन को विशुद्ध आर्थिक नजरिये से भी नहीं देखा जा सकता। इस दौरान संरचनात्मक विकास व खेल से जुड़े स्थायी निर्माण से रोजगार के अवसर भी बढ़ते हैं। भारत जैसे सबसे बड़ी आबादी वाले देश में बड़ा उपभोक्ता बाजार है। जिसको लुभाने को तमाम बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत का रुख कर सकती हैं। जिससे व्यापार व रोजगार को नये आयाम मिल सकते हैं। फिर आयोजक देश के खिलाड़ियों पर अधिक पदक जीतने का दबाव भी होता है। जिससे खेलों में स्वस्थ प्रतियोगिता भी उत्पन्न होगी। फिर खेलों के लिये जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं जुटाई जाएंगी, वे आने वाली कई पीढ़ियों में खेल प्रतिभा का विकास करने में सहायक होंगी। यह संरचनात्मक विकास दूरगामी प्रभाव छोड़ सकता है। भारत में एशियाई खेलों के आयोजन के दौरान जो बढ़िया स्टेडियम व खेलों से जुड़े निर्माण हुए उन्होंने खेल प्रतिभाओं को समृद्ध किया। निश्चित रूप से ऐसे बड़े आयोजनों से दुनिया में आयोजक देश की साख बनती है। देश की प्रतिष्ठा बढ़ती है और कारोबार की दृष्टि से भी यह लाभदायक साबित हो सकता है। हाल के दिनों में भारत द्वारा देश के साठ शहरों में जी-20 से जुड़े विभिन्न आयोजनों का सफलतापूर्वक निर्वाह बताता है कि हम अंतर्राष्ट्रीय स्तर के बड़े आयोजन करने में सक्षम हैं। हाल के दिनों में देश की खेल प्रतिभाएं भी अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों में बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं। चीन में संपन्न एशियाई खेलों में भारतीय खिलाड़ियों के पदकों का आंकड़ा सौ पार जाना इसकी जीवंत मिसाल भी है। इससे पहले भी हम एशियाड, राष्ट्रमंडल खेल, शतरंज ओलंपियाड, महिला जूनियर फुटबॉल विश्वकप, पुरुष विश्व हॉकी कप, निशानेबाजी व बॉक्सिंग की विश्व स्तरीय प्रतियोगिता आयोजित कर चुके हैं। देश में इन दिनों क्रिकेट विश्वकप का सफलतापूर्वक आयोजन किया जा रहा है। ये आयोजन हमारी दावेदारी को मजबूत करते हैं।