For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

ग्रहों के चंद्रमाओं पर जीवन की उम्मीद

12:46 PM Aug 30, 2021 IST
ग्रहों के चंद्रमाओं पर जीवन की उम्मीद
Advertisement

खगोल वैज्ञानिक पिछले काफी समय से शनि और बृहस्पति के चंद्रमाओं पर जीवन के चिन्ह तलाश रहे हैं। उन्होंने सौरमंडल के बाहर दूसरे ग्रहों के चंद्रमाओं पर भी जीवन होने की संभावना व्यक्त की है। इन चंद्रमाओं पर जीवन के लिए उपयुक्त माहौल की तलाश करते हुए उन्होंने एक नयी खोज बृहस्पति के चंद्रमा गैनिमीड के बारे में की है। नासा के हबल टेलीस्कोप द्वारा जुटाए गए ताजा और पुराने आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद उन्होंने गैनिमीड के वायुमंडल में जल वाष्प की मौजूदगी के प्रमाण खोजे हैं। यह जल वाष्प उस समय बनते हैं जब चंद्रमा की सतह की बर्फ ठोस अवस्था से गैस में परिवर्तित होती है।

Advertisement

गैनिमीड हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा चंद्रमा है। पिछले अध्ययनों से पता चला था कि इस पिंड पर मौजूद पानी की मात्रा पृथ्वी के समुद्रों के पानी से भी ज्यादा है। बहरहाल वहां का तापमान इतना ठंडा है कि सतह का पानी बर्फ बन चुका है। गैनिमीड का समुद्र सतह से 160 किलोमीटर नीचे है। अतः जल वाष्प निश्चित रूप से समुद्र के वाष्पीकरण की वजह से नहीं है। खगोल वैज्ञानिकों ने जल वाष्प का प्रमाण खोजने के लिए हबल टेलीस्कोप द्वारा पिछले दो दशकों में किए गए सर्वेक्षणों की दुबारा से जांच की। हबल के इमेजिंग स्पेक्ट्रोग्राफ ने 1998 में गैनिमीड की पहली अल्ट्रावॉयलेट तस्वीर खींची थी। इसमें विद्युतीकृत गैस के दो रंगीन रिबन दिखे। ये इस बात के प्रमाण थे कि गैनिमीड पर कमजोर चुंबकीय क्षेत्र मौजूद है।

खगोल वैज्ञानिकों ने गैनिमीड को विस्तृत छानबीन के लिए इसलिए चुना क्योंकि यह बर्फीले पिंडों के विकास और जीवन के लिए उनकी उपयुक्तता के अध्ययन के लिए एक कुदरती प्रयोगशाला है। वैज्ञानिक यह भी जानना चाहते हैं कि बृहस्पति के विभिन्न उपग्रहों की प्रणाली के अंदर इसकी क्या भूमिका है और बृहस्पति तथा उसके वायुमंडल के साथ उसकी विशिष्ट चुंबकीय क्रिया किस तरह से होती है।

Advertisement

नासा का जूनो मिशन इस समय गैनिमीड की नजदीक से पड़ताल कर रहा है। हाल में उसने बर्फीले चंद्रमा की नयी तस्वीरें भी भेजी हैं। जूनो 2016 से बृहस्पति और उसके चंद्रमाओं का अध्ययन कर रहा है। बृहस्पति के अध्ययन के लिए यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने अगले साल जूस (जुपिटर आईसी मूंस एक्सप्लोरर) मिशन भेजने की योजना बनाई है। यह यान 2029 में बृहस्पति पर पहुंचेगा। यह वहां तीन साल के प्रवास के दौरान बृहस्पति और उसके तीन बड़े चंद्रमाओं का विस्तृत सर्वेक्षण करेगा। उसका मुख्य फोकस गैनिमीड पर होगा। बृहस्पति और उसकी चंद्रमा प्रणाली के अध्ययन से हम यह बेहतर ढंग से समझ सकते हैं कि बृहस्पति जैसे विशाल गैसीय ग्रहों और उनके चंद्रमाओं का विकास कैसे होता है तथा वहां आवास योग्य माहौल किस तरह निर्मित होता है। इससे बृहस्पति जैसे बाहरी ग्रहों की आवास योग्यता पर भी नयी रोशनी डाली जा सकती है।

हमारे ब्रह्मांड में ऐसे ग्रहों की संख्या अनगिनत है, जिनका कोई मेजबान तारा नहीं है लेकिन ऐसे ग्रहों के आसपास कई चंद्रमा हैं। वैज्ञानिकों का ख्याल है कि इन चंद्रमाओं पर वायुमंडल हो सकता है। जर्मनी में म्यूनिख के लुडविग मैक्सिमिलन विश्वविद्यालय (एलएमयू) के खगोल भौतिकविदों ने हिसाब लगाया है कि ऐसे चंद्रमाओं पर समुचित मात्रा में पानी की मौजूदगी हो सकती है। इतना पानी जीवन के निर्माण और जीवन के पनपने के लिए पर्याप्त होगा। पानी का तरल रूप जीवन के लिए अमृत है। इसी वजह से पृथ्वी पर जीवन संभव हुआ। हमारे ग्रह पर समस्त जैविक प्रणालियों के निरंतर अस्तित्व के लिए इसकी मौजूदगी अनिवार्य है। यही वजह है कि वैज्ञानिक ब्रह्मांड के दूसरे ठोस खगोलीय पिंडों में पानी की मौजूदगी के प्रमाण खोजते रहते हैं। अभी तक पृथ्वी के अलावा दूसरे ग्रहों पर तरल जल की उपस्थिति का प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिला है। बहरहाल हमारे अपने सौरमंडल के बाहरी हिस्सों में कई चंद्रमाओं पर सतह के नीचे समुद्र होने के संकेत जरूर मिले हैं। इनमें शनि के एन्सेलेडस चंद्रमा और बृहस्पति के तीन चंद्रमाओं-गैनिमीड, कैलिस्टो और यूरोपा का उल्लेख कई बार किया जा चुका है। यदि हमारे सौरमंडल के चंद्रमाओं पर पानी होने की संभावना है तो सौरमंडल के बाहर दूसरे ग्रहों के चंद्रमाओं पर भी पानी की मौजूदगी संभव है।

एलएमयू के खगोल भौतिकविदों प्रो. बारबरा एर्कोलानो और डॉ. टोम्मासो ग्रासी ने चिली के कॉन्सेप्सिओन विश्वविद्यालय के सहयोगियों के साथ मिल कर एक बाहरी चंद्रमा के वायुमंडल और उसकी दूसरी रासायनिक विशेषताओं के अध्ययन के लिए एक मॉडल तैयार किया है। इसके लिए उन्होंने गणितीय विधियां अपनाईं। उन्होंने एक ऐसा चंद्रमा चुना जो स्वतंत्र रूप से विचरने वाले ग्रह का चक्कर लगाता है। खगोल वैज्ञानिक ऐसे ग्रह को ‘फ्री-फ्लोटिंग प्लेनेट’ (एफएफपी) भी कहते हैं।

स्वतंत्र रूप से विचरने वाले ग्रहों में खगोल वैज्ञानिकों की बढ़ती दिलचस्पी की वजह यह है कि ब्रह्मांड में ऐसे ग्रहों की भरमार होने के प्रमाण मिल चुके हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार हमारी मिल्की वे आकाश गंगा में जितने तारे हैं, उतने ही अनाथ ग्रह हैं, जिनका आकार बृहस्पति के बराबर है। मिल्की वे आकाश गंगा में करीब 100 अरब तारों की उपस्थिति का अनुमान लगाया गया है और घुमक्कड़ ग्रहों की संख्या भी 100 अरब से ज्यादा है। एर्कोलानो और ग्रासी ने एक एफएफपी के इर्दगिर्द चक्कर लगाने वाले पृथ्वी के आकार के चंद्रमा के वायुमंडल की तापीय संरचना का अनुकरण करने के लिए एक कंप्यूटर मॉडल का उपयोग किया। उनके अध्ययन के नतीजों से पता चलता है कि चंद्रमा की सतह पर मौजूद पानी की मात्रा हमारे ग्रह के समुद्रों के कुल आयतन से करीब 10000 गुणा कम होगी लेकिन पृथ्वी के वायुमंडल में विद्यमान पानी से 100 गुणा अधिक होगी। इतना पानी जीवन के विकसित होने और पनपने के लिए पर्याप्त है।

जिस मॉडल से यह निष्कर्ष निकाला गया, उसमें बृहस्पति के आकार के एफएफपी और पृथ्वी के आकार के चंद्रमा को सम्मिलित किया गया। ऐसी ग्रह प्रणाली में मेजबान तारा नहीं होता। तारे के बिना ऐसी ग्रह प्रणालियां बेहद ठंडी होंगी। शोधकर्ताओं के मॉडल के मुताबिक ब्रह्मांडीय किरणें एफएफपी के चंद्रमा पर हाइड्रोजन और कार्बन डाईऑक्साइड को पानी और अन्य उत्पादों में बदल सकती हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार चंद्रमा पर पड़ने वाला ग्रह का ज्वारीय बल भी ऊष्मा का स्रोत हो सकता है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

Advertisement
Tags :
Advertisement