होली आई रे कन्हाई, रंग छलके...
नरेंद्र मोदी
जो मेरे शौक हैं उनको, सदा विस्तार ही दूंगा,
कोई दे प्यार तो बदले में, उसको प्यार ही दूंगा।
करी इंसल्ट अपने घर बुलाकर, मित्र की जिसने,
मिले वो ट्रम्पवा तो रंग उस पर, डार ही दूंगा।।
मनोहर लाल खट्टर
भले पहले से ज्यादा आज, भारी है मेरी झोली,
भले पहले से ज्यादा है, बड़ी चहूं ओर ये टोली।
मगर दिल्ली की होली में, कहां वो रंग मस्ती के
लुभाती है मुझे अब भी, मेरे हरियाणा की होली।।
राहुल गांधी
मुझे रह रह के सपनों में, सताये रंग मेहंदी का,
ज़हन में शोर भी अक्सर, मचाये रंग मेहंदी का।
निकलती जा रहीं उमरें, अब कुछ सोच लो मम्मी,
हथेली पर तो कोई अब, लगाये रंग मेहंदी का।।
जेपी नड्डा
शिखर तक लेके आया हूं, कमल की अपनी टोली को,
नहीं दिल से लगाया है, किसी की भी ठिठोली को।
बाबू नितीशवा जो है, कहीं पलटी मार दे फिर से,
बिहारी जंग जीतूं फिर, मना लूंगा मैं होली को।।
नायब सिंह सैनी
मिला उम्मीद से ज्यादा, न हसरत कोई पालूंगा,
जो जैसा भी उछालेगा, वही उस पर उछालूंगा।
किसी ने भी मेरी कुर्सी पे, गर डाली नज़र अपनी,
कसम दाड़ी की उस पर, बाल्टी भर रंग डालूंगा।।
योगी आदित्यनाथ
सभी अपराधियों को होलिका, लपटों में जला दूंगा,
व्यवस्था को चुनौती दे, स्वर उसके दबा दूंगा।
मुझे तो रंग भगवा ही, सुहाता है समझ लेना,
जो दूजा रंग ले आये, बुल्डोजर चढ़ा दूंगा।।
भगवंत मान
जुदा अंदाज़ है अपना, यहां सब लोग कहते हैँ,
कि हम दरिया हैँ ऐसे, सिर्फ़ इक लय में बहते हैँ।
फ़क़त इक दिन की मस्ती में, जो डूबे जान लें इतना,
असीं तो साल भर हर दिन, इसी मस्ती में रहते हैँ।।
भूपेंद्र सिंह हुड़्डा
सियासत में बने दुश्मन, हों जिसके अपने हमसाये,
मनाये कैसे अब होली वो, जिसका रंग उड़ जाये।
आशाएं शुभ की लेकर मैं, डटूंगा अपने रोहतक में,
लगाने रंग हों जिसको, वो मेरे घर चला आये।।
प्रियंका गांधी
बुलाती रहती है हर बार, दिल्ली वालों की टोली,
मुरादाबाद भी लेकर गये, रॉबर्ट हमजोली।
नहीं आती है जब तक भी, दुल्हनियां मेरे ब्रदर की,
मनाने जाऊंगी हर बार मैं, वायनाड की होली।।
राव इंद्रजीत सिंह
भला कैसे कोई कब तक, यूं अपने दिल को समझा ले,
पचहत्तर हो गये पूरे, तो क्या उम्मीद ना पालें।
मैं होली खेलना चाहूंगा, लेकिन अपनी शर्तों पर,
कोई भी रंग में मेरे, यहां अब भंग ना डाले।।
दीपेंद्र हुड़्डा
बहुत गहरे से काले रंग, मुट्ठी में भरकर मैं,
विरोधी कोई हो रख दूंगा, उसके चेहरे को मलकर।
पुरानी होली जैसी रौनकें, लौटेंगी रोहतक फिर,
पिताजी, रंग मुझको खेलने दो आप अब खुलकर।।
अनिल विज
दाढ़ी मेरी नेता, किसी से भी नहीं है कम,
मन में आ गया जो, कहने का भी रखता हूंं दम।
है मेरी जान मेरी शान, मेरा प्यारा अम्बाला,
मैं गब्बर हूँ, मुझे भाता बहुत है फागुनी मौसम।।
सैलजा
जो मेरी राह रोकेगा, मैं उसकी राह रोकूंगी,
भरी है बालटी पर मैं, न उस पर रंग फेंकूगी।
जो मुझको देखते ही रंग, चेहरे का बदलते हैँ,
मैं अबकी होली में, चेहरों का उनके रंग देखूंगी।।
मायावती
बहुत ज्यादा मेरा हाथी है घबराया, करूं मैं क्या,
किसी ने भी न उस पर रंग बरसाया, करूं मैं क्या।
सियासत में ये दिन भी आएंगे, सोचा नहीं मैंने,
खोना फिर पड़ा आनंद, तो जीवन का करूं मैं क्या ।।
अरविन्द शर्मा
सदन में कुछ कहा दादा को, तो कड़वी लगी बोली,
वो ग़ुस्सा हो गये, उनकी पुरानी पोल क्यूं खोली।
लगी है शर्त गोबर की, मगर पिचकारियाँ भरकर,
सफीदों जाऊंगा इस बार, मैं तो खेलने होली।।
रामबिलास शर्मा
मेरी नज़रों में चेहरा हो गया, बदरंग सत्ता का,
समझ आता नहीं है कोई भी, अब ढंग सत्ता का।
अगर हो जाये कोई सही, मुझ पर भी यहां कृपा,
तो होली में चढ़े मुझ पर भी, फिर से रंग सत्ता का।।
श्रुति चौधरी
किसी पर भी न पूछे बिन, कोई भी रंग बरसाना,
कहीं ऐसा न हो फिर बाद में, पड़ जाये पछताना।
महकमा स्वास्थ है मेरा, है सबकी सेहत की चिंता,
लगाने रंग मुझको, मम्मी जी से पूछकर आना।।
दुष्यंत चौटाला
नहीं सोचा था यूं स्कोर निल जाएगा होली में,
यही लगता था फिर से भाग्य, खिल जाएगा होली में।
मिलन का पर्व है, आख़िर मुझे इतना भरोसा है,
अभय चच्चा की आशीषें, मिलेंगी अबकी होली में।।