मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

हरियाणा में 8वीं के पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाएगा महाराजा सूरजमल का इतिहास

04:01 AM Jan 15, 2025 IST

दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 14 जनवरी
राष्ट्रीय राजधानी – नई दिल्ली के विधानसभा चुनावों में भी इस बार जाट सियासत गरमा गई है। जाटों को केंद्र की ओबीसी सूची में शामिल करने का मुद्दा खुद आम आदमी पार्टी सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उठाया है। इससे पहले हरियाणा में जाट आरक्षण के मुद्दे पर प्रदेश में बड़ा व हिंसक आंदोलन हो चुका है। दिल्ली चुनावों के बीच गरमाई राजनीति पर मास्टर स्ट्रोक खेलते हुए हरियाणा की नायब सरकार ने जाटों को रिझाने की कोशिश की है।

Advertisement

हरियाणा के अलावा उत्तर प्रदेश, राजस्थान व नई दिल्ली के जाटों का ‘गौरव’ रहे महाराजा सूरजमल के इतिहास को आठवीं के पाठ्यक्रम में शामिल करने का निर्णय लिया है। नायब सरकार के इस फैसले के बाद सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को निर्देश भी दे दिए हैं। भरतपुर के महाराजा रहे सूरजमल के इतिहास को हरियाणा में आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों को पढ़ाया जाएगा। हरियाणा में जाटों को आरक्षण का फैसला पूर्व की हुड्डा सरकार में हुआ था।

बाद में इस पर कोर्ट ने रोक लगा दी। मनोहर सरकार के पहले कार्यकाल में फरवरी-2016 में जाट आरक्षण की मांग को लेकर प्रदेश में हिंसक आंदोलन भी हुआ। इसमें 32 लोगों की जानें गई थीं। इसी तरह राजस्थान में भी जाटों के आरक्षण को लेकर मांग उठती रही है। राजस्थान के कुछ जिलों के जाटों को ओबीसी सूची में शामिल किया हुआ है। वहीं कई जिलों के जाट ओबीसी सूची से बाहर हैं।
बाहरी दिल्ली विधानसभा सीटों पर जाट वोट बैंक काफी अहम है।

Advertisement

हरियाणा व यूपी से सटी इन सीटों पर जाट मतदाता हार-जीत में अहम भूमिका निभाते हैं। माना जा रहा है कि इसलिए अरविंद केजरीवाल ने जाट आरक्षण का कार्ड चुनावों में खेला है। केजरीवाल ने केंद्र की मोदी सरकार ने दिल्ली के जाटों को केंद्र की ओबीसी सूची में शामिल करने की मांग की है। उनका कहना है कि भाजपा ने इस संदर्भ में वादा भी किया हुआ है लेकिन इसे अभी तक पूरा नहीं किया।

इतना ही नहीं, हरियाणा में आम आदमी पार्टी के कई जाट नेता भी इस मुद्दे को लेकर पिछले दिनों नई दिल्ली में केजरीवाल से मुलाकात कर चुके हैं। केजरीवाल के ‘जाट कार्ड’ के बीच हरियाणा की नायब सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। आठवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में महाराजा सूरजमल की इतिहास शामिल करके उन्होंने जाटों को खुश करने की कोशिश की है। हरियाणा में विभिन्न जातियों के मुकाबले आबादी के हिसाब से जाटों की संख्या सबसे अधिक है। नायब सरकार द्वारा महाराजा सूरजमल का इतिहास पढ़ाए जाने की मंजूरी पर भरतपुर राजपरिवार के वंशज व पूर्व कैबिनेट मंत्री विश्वेंद्र सिंह ने भी मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी का आभार भी जताया है। बहरहाल, दिल्ली विधानसभा चुनावों में जाटों का यह मुद्दा भी गरमाया रहेगा। हालांकि हरियाणा, राजस्थान व पंजाब के मुकाबले नई दिल्ली में जाटों की संख्या काफी कम है।

जाटों में अलग छवि बना रहे सैनी
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी प्रदेश के जाटों को पार्टी के साथ जोड़ने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में हुए थे।
अहम बात यह है कि भाजपा जींद, उचाना, सफीदों, नरवाना, गोहाना, गन्नौर, राई, सोनीपत, खरखौदा, इसराना, पानीपत ग्रामीण, चरखी दादरी, बाढ़डा, तोशाम जैसी कई जाट बाहुल्य सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही। सीएम नायब सिंह सैनी अपनी मिलनसार छवि व कार्यशैली के चलते दूसरी जातियों के साथ-साथ जाटों में भी अपने लिए अलग छवि बना रहे हैं। बड़ी संख्या में जाट मुख्य रूप से युवा वोटर ऐसे हैं, जो नायब सिंह सैनी के वर्किंग स्टाइल को पसंद कर रहे हैं।

दिल्ली में एक्टिव प्रदेश के दिग्गज

दिल्ली विधानसभा के चुनावों को भाजपा ने काफी गंभीरता से लिया हुआ है। पिछले 25 वर्षों से सत्ता से दूर भाजपा दिल्ली में इस बार कमल खिलाना चाहती है। इसी कड़ी में हरियाणा के नेताओं को भी दिल्ली में झोंका हुआ है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, पूर्व सीएम व केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर के अलावा हरियाणा के कई मंत्रियों, सांसदों-विधायकों व वरिष्ठ नेताओं की दिल्ली में ड्यूटी लगाई है। भाजपा माइक्रो मैनेजमेंट के तहत दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ रही है। हरियाणा भाजपा के जाट नेताओं ने भी दिल्ली में मोर्चा संभाला हुआ है।

दिल्ली की इन सीटों पर असर

70 सदस्यीय नई दिल्ली विधानसभा में करीब एक दर्जन सीटें ऐसी मानी जाती हैं, जहां जाटों का प्रभाव है। इनमें मुंडका, रिठाला, नांगलोई जाट, नरेला, विकासपुरी, मटियाला, नजफगढ़, बिजवासन, महरौली आदि प्रमुख हैं। भाजपा सरकार के समय दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे साहिब सिंह वर्मा की जाटों पर अच्छी पकड़ थी। अब उनके पुत्र प्रवेश वर्मा दिल्ली की राजनीति में सक्रिय हैं। वे पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। यहां बता दें कि 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में जाट बाहुल्य सीटों पर आम आदमी पार्टी ने जीत दर्ज की थी।

Advertisement