Historical Story: 350 साल पहले अंग्रेज को दहेज में दिया गया था भारत का यह शहर, पढ़िए रोचक कहानी
चंडीगढ़, 15 दिसंबर (ट्रिन्यू)
Historical Story: भले ही जमाना बदल गया हो लेकिन भारत से दहेज प्रथा अंत अभी भी नहीं हुआ। आज भी लोग गिफ्ट के नाम पर घर, कार , पैसे आदि दहेज में देते हैं। भारत में बेटियों को दहेज देने का रिवाज पुराने समय से चला आ रहा है। राजाओं-महाराजाओं के जमाने में भी दूल्हे को सोने-चांदी, यहां तक कि पूरा राज्य दहेज में दे दिया जाता था। उनके जाने के बाद भी दहेज प्रथा ऐसे ही कायम रही।
आपको जानकर हैरानी होगी कि एक समय में भारत का एक पूरा शहर अंग्रेज को दहेज में दे दिया गया था। जी हां, सपनों का महानगर और देश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले मुंबई शहर को एक समय में दहेज के रूप में दे दिया गया था।
अंग्रेज को दहेज में दिया गया था मुंबई?
बात 16वीं शताब्दी की है जब यह शहर 7 टापुओं में बंटा हुआ था लेकिन पुर्तगाली यात्री वास्को डी गामा ने इसे जीतकर इसका नाम बॉम्बे रख दिया। इसके बाद पुर्तगालियों ने यहां एक किला बनाकर व्यापारिक गतिविधियां शुरू कर दी। 17वीं शताब्दी में पुर्तगाल की राजकुमारी कैथरीन ऑफ ब्रगंजा की शादी इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय से की गई।
इस शादी का मकसद दोनों देशों में राजनीतिक संबंधों को मजबूत करना था, जिसे इतिहास में Marriage Treaty या Anglo-Portuguese Treaty के नाम से भी जाना जाता है। इसी के चलते राजकुमारी कैथरीन ऑफ ब्रगंजा की शादी के बाद पुर्तगाल ने इंग्लैंड को बॉम्बे शहर दहेज में भेंट कर दिया। यह सौदा 1661 में हुआ था, जब बॉम्बे एक जरुरी व्यापारिक केंद्र हुआ करता था।
अंग्रेजों ने मुंबई को बनाया व्यापारिक केंद्र
इस डील के कारण इंग्लैंड को भारत में पैर जमाने का मौका मिला और उन्होंने इसे एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र बना दिया। फिर यहां बंदरगाह बनाकर कई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की गई। धीरे-धीरे बॉम्बे बॉम्बे एक महत्वपूर्ण शहर बन गया। फिर साल 1995 में बॉम्बे का नाम बदलकर मुंबई कर दिया गया।
आज मुंबई शहर ना सिर्फ सबसे बड़ा शहर है बल्कि यह भारत की आर्थिक राजधानी भी है। मुंबई शहर में रोजाना हजारों लोग अपने सपने पूरे करने के लिए आते हैं। सिर्फ फिल्मी जगत ही नहीं बल्कि मुंबई वित्तीय सेवाएं और व्यापार का भी केंद्र है और यहां टूरिस्ट को अट्रैक्ट करने के लिए भी कई बढ़िया जगहें है। हालांकि इस समृद्ध विरासत में कहीं ना कहीं पुर्तगाली और ब्रिटिश शासन का भी योगदान है।