Hindu Religion: महाभारत में एक नहीं बल्कि 3 थे श्रीकृष्ण, अद्भुत है यह रहस्य
चंडीगढ़, 11 दिसंबर (ट्रिन्यू)
Pauranik Kathayen: हर कोई जानता है कि पांडवो ने महाभारत का युद्ध भगवान श्रीकृष्ण की वजह से जीता। उन्होंने ना सिर्फ अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई बल्कि सभी पांडवो को कुरुक्षेत्र में युद्ध जीतने के लिए सही दिशा दिखाई थी। भगवान श्रीकृष्ण ने ही पांडवो को भगवद्गीता का ज्ञान दिया था। मगर, क्या आप जानते हैं कि महाभारत में एक नहीं बल्कि दो श्रीकृष्ण थे। ज्यादातर लोग दूसरे श्रीकृष्ण के बारे में नहीं जानते। आज हम आपको उन्हीं के बारे में बताएंगे…
दरअसल, महाभारत में दूसरे कृष्ण स्वयं महाभारत की रचना करने वाले महर्षि वेदव्यास थे। उनका मूल नाम श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास था और माता सत्यवती व पिता महर्षि पाराशर थे। श्रीमद्भागवत में भगवान विष्णु के 24 अवतारों का वर्णन किया गया है। उनमें से एक नाम महर्षि वेदव्यास का भी नाम है।
लोककथाओं के अनुसार, महर्षि वेदव्यास जन्म लेते ही युवा हो गए और तपस्या करने द्वैपायन द्वीप चले गए। अधिक तप करने की वजह से उनका रंग काला पड़ गया, जिसके बाद उन्हें कृष्ण द्वैपायन कहा जाने लगा। वेदों का विभाग करने के बाद उन्हें वेदव्यास के नाम से जाना जाने लगा। उन्हीं की कृपा से ही धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर का जन्म हुआ था।
धर्म ग्रंथों में बताए गए अष्ट चिरंजीवी (8 अमर लोग) में महर्षि वेदव्यास का नाम भी लिखा गया है इसलिए ऐसा माना जाता है कि वह आज भी जीवित है। जब कलयुग का प्रभाव बढ़ने लगा था तो उन्होंने ही पांडवों को स्वर्ग की यात्रा करने के लिए कहा था। उन्होंने ही संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की थी, जिससे संजय ने धृतराष्ट्र को पूरे महाभारत युद्ध का वर्णन महल में ही सुनाया था। महर्षि वेदव्यास ने जब कलयुग का बढ़ता प्रभाव देखा तो उन्होंने ही पांडवों को स्वर्ग की यात्रा करने के लिए कहा था।
कौन थे तीसरे श्रीकृष्ण?
महाभारत में तीसरे कृष्ण पुंड्र देश के राजा पौंड्रक थे, जिन्हें नकली श्रीकृष्ण भी कहा जाता है। उनके पिता का नाम वसुदेव था इसलिए वह खुद को वासुदेव कहते थे। चेदि देश में वह 'पुरुषोत्तम' नाम से विख्यात था। पौंड्रक को उसके मूर्ख और चापलूस मित्रों ने कहा कि वही विष्णु का अवतार है, मथुरा का राजा कृष्ण नहीं। कृष्ण तो ग्वाला है। बस इसलिए वह खुद को कृष्ण समझने लगा।
एक दिन उसने अहंकारवश भगवान कृष्ण को युद्ध के लिए चुनौती दी। बहुत समय तक श्रीकृष्ण ने उसकी बातों को नजरअंदाज किया लेकिन फिर युद्ध हुआ और भगवान श्रीकृष्ण पौंड्रक का वध कर पुन: द्वारिका लौट गए।