हिंदी फीचर फिल्म : लव इन टोक्यो
शारा
जॉय मुखर्जी साठ और साठोत्तरी में बॉलीवुड के आकाश में छाये रहने वाले ऐसे कलाकार थे, जिनके पास शक्लाे-सूरत तो थी ही, एक पूरी विरासत थी उनके पीछे। वह फिल्मालय प्रोडक्शन हाउस के मालिक शशाधर मुखर्जी के सबसे छोटे बेटे और अशोक, किशोर और अनूप के भानजे थे। जब देविका रानी का सिंहासन डोलने लगा तो शशाधर मुखर्जी ने अशोक कुमार आदि से मिलकर फिल्मालय कंपनी चला ली थी और कई नये चेहरे इंट्रोड्यूज किए, जिनमें जॉय मुखर्जी भी एक हैं। जॉय मुखर्जी को चॉकलेटी हीरो भी कहा जाता है। उस वक्त लड़कियां इनकी हंसी की खूब दीवानी थीं। वह वक्त ही ऐसा था कि सिक्स पैक वाले हीरो की इतनी पूछ नहीं होती थी। मेन काम था रोमांस करना। अच्छे-अच्छे गाने गाना, हीरोइन को रिझाना। जॉय मुखर्जी के बाद आये धर्मेंद्र ने खुद को मसल्जमैन भी कहलवाया तो वह रोमांटिक हीरो के तौर पर। ऐसा मसल्जमैन जो हीरोइन की गुंडों से हिफाजत करना जानता हो। उसके बाद तो रिवाज चल निकला। जो कमीज सलमान खान ने इस शताब्दी में उतारी, धर्मेंद्र ऐसा काम पिछली शताब्दी के साठवें साल में कर चुके थे। उन्होंने चॉकलेटी हीरो के जमाने में खुद की उपस्थिति दर्ज करायी। जब धर्मेंद्र मांसपेशियां दिखा रहे थे उस समय जॉय मुखर्जी मासूम हंसी व चेहरे से क्या बड़े क्या छोटे दर्शक के दिल में घर कर रहे थे। शोमू मुखर्जी जो तनुजा के पति और काजोल के पिता थे, जॉय मुखर्जी के ही बड़े भाई थे। रानी के पिता राम मुखर्जी भी उनके ही भाई थे। जॉय मुखर्जी को एक यह भी श्रेय जाता है कि उन्होंने ‘लव इन’ की तिकड़ी शृंखला शुरू की। साधना के पति आरके नैयर ने पहले ‘लव इन शिमला’ फिल्म बनायी जो हिट रही। ‘लव इन टोक्यो’ प्रमोद चक्रवर्ती ने बनायी। यह फिल्म भी सुपरहिट रही। लेकिन इसमें साधना की जगह आशा पारेख थीं। शंकर जयकिशन ने हसरत जयपुरी के गीतों को स्वर दिये जो कि संगीत में रुचि रखने वालों को कंठस्थ हो गये। ‘सायोनारा- सायोनारा’ लफ्ज आम बोलचाल की भाषा में भी प्रयुक्त होने लगा। उस वक्त की जवां लड़कियां जब अपनी महफिल खत्म करतीं तो रुखसत होते वक्त सायोनारा ही कहतीं। सायोनारा जापानी भाषा का लफ्ज है, जिसका अर्थ है बाय-बाय। यहां आपको एक और जानकारी देनी है कि इस फिल्म में आशा पारेख ने सिर में जो रबड़ बैंड लगाया है, वह अब भी मार्केट में मिलता है और उसका नाम ‘लव इन टोक्यो’ है। लव इन टोक्यो और लव इन शिमला फिल्मों की सफलता को देखते हुए ‘लव इन बाम्बे’ फिल्म भी बनी, लेकिन यह फिल्म औंधे मुंह गिरी। फिर ‘लव इन हांगकांग’ भी बनी लेकिन दर्शकों ने इन दो फिल्मों को ही पसंद किया। जानते हैं इस फिल्म के गीतों को सुरीला संगीत देने वालों शंकर जयकिशन को पहले किसने ब्रेक दिया? राजकपूर ने। बताया जाता है कि शंकर राजकपूर की फिल्मों में काम करने वाले संगीतकार राम (रानी के पिता नहीं) के सहायक थे किसी बात को लेकर तब राम और राजकपूर के बीच ठन गयी। उस वक्त ‘बरसात’ फिल्म का निर्माण हो रहा था और स्टूडियो से राम गायब थे तब राजकपूर ने शंकर को यह जिम्मा सौंपा तो शंकर ने जयकिशन को भी साथ लेने की शर्त रख दी जिसे राजकपूर ने मंजूर कर लिया। पहली बार दोनों ने बरसात फिल्म को जो संगीत दिया, क्या दर्शक क्या श्रोता दीवाने हो गये और लोग राम को भूल गये। चलो, लगे हाथ आपको यह भी बता देते हैं कि इस फिल्म के गीत लिखने वाले हसरत जयपुरी पहले बस के कंडक्टर थे। जॉय मुखर्जी पहले बांग्ला हीरो थे जिन्होंने बॉलीवुड में इतने कामयाब रोमांटिक हीरो के रूप में पारी खेली। एक अन्य हीरो का नाम भी यहां लेना जरूरी हो जाता है। वह थे विश्वजीत। जॉय मुखर्जी की आशा पारेख के साथ हिट जोड़ी थी। दोनों को एकसाथ दर्शकों ने खासा पसंद किया। इस फिल्म की एक और खासियत यह है कि इसने फिल्म के जरिये उन दर्शकों को जापान की सैर करायी जो जापान नहीं जा सकते थे। यह ट्रेंड राजकपूर ने फिल्म संगम से शुरू किया था, जिसे उत्साहित होकर ‘लव इन टोक्यो’ में पूरा जापान घुमा दिया। उसके बाद फिल्मों में यूरोप दिखाने की दौड़ शुरू हुई जिसे बाद में चोपड़ा फिल्म्ज ने जारी रखा। जो लहलहाते पौधों और रंगबिरंगे फूलों से भरे गार्डन फिल्म ‘आंखें’ में दिखे, लगभग ऐसे ही सुंदर फूलों के गार्डन आपको इस फिल्म में भी दिखेंगे। खुली-खुली सड़कों, बेतहाशा दौड़ती बेशकीमती गाड़ियों और मेनरोड पर बनी शॉप्स के साथ-साथ रोमांस के लिए आमंत्रण देते गार्डन ही इस फिल्म की लोकप्रियता का राज है। कंक्रीट की ऊंची बिल्डिंगों का चलन भारतीयों ने फिल्मों के जरिये इन्हीं दो-एक फिल्मों में देखा। इस फिल्म में जो आधुनिक व अतिविकसित जापान दिखाया गया है, हमारी दिल्ली उस जापान जैसी आज हुई है, इतने वर्ष लग गये दिल्ली को जापान जैसा आधुनिक बनने में। अगर तब तीन रुपये में जापान का सैर-सपाटा हो जाता था तो बुरा क्या था? इसका निर्देशन वाकई कमाल का था कि यह फिल्म सफल फिल्मों की श्रेणी में आ गयी। आधी से ज्यादा फिल्म में तो आशा पारेख सरदार के रोल में दिखीं जिसे दर्शक ने पसंद किया। एरियल व नाइट फोटोग्राफी ने शहर की खूबसूरती को खूब क्लिक किया। बाबू भाई मिस्त्री के साथ वीके मूर्ति की सिनेमैटोग्राफी के क्या कहने? धर्मवीर के संपादन और रंगों के संयोजन ने जापान के स्थानीय स्थलों की पेशकश ने फिल्म की कहानी में चाशनी घोलने का काम किया। भारतीय दर्शक यही चाहता है और निर्देशक ने यही परोसा। कहानी की शुरुआत भी जापान से होती है जहां अशोक (जॉय मुखर्जी) अपने अनाथ भतीजे चीकू (मास्टर शाहिद) को भारत लाने के लिए जाते हैं लेकिन जाते ही वहां पर एक भारतीय लड़की आशा (आशा पारेख) से दिल लगा बैठते हैं। अशोक चीकू को तलाश करने में तो कामयाब हो जाते हैं लेकिन वह अशोक के पंजे से निकलकर भाग जाता है और भाग कर वह आशा से जा मिलता है। वह भी अपने घर से भागी हुई है क्योंकि उसके अंकल (मदनपुरी) उसकी जबरन शादी एक गैंगस्टर (प्राण) से करना चाहते हैं। चूंकि आशा के माता-पिता उसके पालन-पोषण का जिम्मा अंकल को सौंपकर चल बसे लेकिन आशा के नाम लाखों की जायदाद छोड़ गये। जिसे आशा का पति बनकर प्राण हड़प लेना चाहता है। इस सौदे में आशा के अंकल का भी पूरा-पूरा हाथ है। इसलिए मदनपुरी चाहता है कि आशा प्राण से शादी कर ले जबकि आशा इनकार करती है क्योंकि वह प्राण की असलियत जानती है। इसलिए वह सगाई वाले दिन घर से भाग जाती है और दोनों से बचने के लिए वह सरदार का भेष बना लेती है। यह नेक सलाह चीकू ने उसे दी थी। जब अशोक चीकू और आशा को गुंडों से बचाता है तो आशा को सरदार ही समझता है। लेकिन इस रहस्य से उस समय पर्दा हटता है जब अशोक की मां गायत्री देवी (ललिता पवार) टोक्यो आती है। लेकिन उनके टोक्यो आने पर स्थितियां जल्दी-जल्दी घटने लगती हैं। ललिता पवार के टोक्यो आने तक अशोक जान चुका है कि आशा ही वह भारतीय नर्तकी है जिसे वह टेलीविजन में देख चुका है (मतलब तब टेलीविजन जापान में दस्तक दे चुका था)। देनों का रोमांस शुरू हो चुका था। इस बीच उन्होंने कई रोमांटिक गाने भी गा लिये थे। ललिता पवार दोनों को एक गार्डन में गाते हुए भी देख लेती हैं। इससे पूर्व ललिता पवार अशोक की शादी अपने मैनेजर की बेटी सरिता (लता बोस) से करना चाहती थी लेकिन जब अस्पताल में अशोक जख्मी होता है उस समय उसकी पोल खुल जाती है और ललिता पवार अशोक की शादी आशा से करने के लिए राजी हो जाती है। साथ ही महेश (महमूद) की शादी भी शोभा खोटे से हो जाती है जो अशोक के साथ जापान आया है। दादी को अपना पोता मिल जाता है (हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि इससे पूर्व कहां था) और कहानी खत्म हो जाती है। इस फिल्म के कॉमेडियन महमूद का नामांकन फिल्मफेयर अवार्ड के लिए हो चुका है।
निर्माण टीम
निर्देशक : प्रमोद चक्रवर्ती
प्रोड्यूसर : लक्ष्मी चक्रवर्ती, प्रमोद चक्रवर्ती
मूल व पटकथा : सचिन भौमिक
संवाद : आगा जानी कश्मीरी
सिनेमैटोग्राफी : वीके मूर्ति
गीतकार : हसरत जयपुरी, शैलेन्द्र
संगीतकार : शंकर जयकिशन
सितारे : जॉय मुखर्जी, आशा पारेख, महमूद, ललिता पवार, शोभा खोटे, प्राण आदि
गीत
सायोनारा, सायोनारा : लता मंगेशकर
लव इन टोक्यो : मोहम्मद रफी
कोई मतवाला आया : लता मंगेशकर
मुझे तुम मिल गये हमदम : लता मंगेशकर
ओ मेरे शाहे-खुबा : मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर
आजा रे आ जरा : मोहम्मद रफी
मैं तेरे प्यार का बीमार : मन्ना डे