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हिंदी फीचर फिल्म : लव इन शिमला

01:52 PM Aug 21, 2021 IST

शारा

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यह फिल्म खासी चर्चा में रही। ब्लॉक बस्टर थी। गाने, पटकथा, रोमांस, कॉमेडी सारे तत्वों को लिए हुए। मतलब तकनीकी और शैली पक्ष दोनों मजबूत। अन्य कारणों से भी यह फिल्म चर्चा में रही। इसी फिल्म से जॉय मुखर्जी और साधना का फिल्मों में डेब्यू हुआ। साधना को तो पहली फिल्म के प्रोड्यूसर से प्यार हो गया और बाद में उन्होंने शादी भी कर ली। यह शादी करवाने वाले बिचौलिए कोई और नहीं बल्कि राजकपूर साहिब थे। जब साधना के नैन प्रोड्यूसर से भिड़े तो वह नाबालिग थीं। उनके वयस्क होने तक इंतजार किया गया। चूंकि उनकी कजिन बबीता राजकपूर की बहू थीं, इस नाते राजकपूर बिचौलिए बन बैठे। ‘लव इन शिमला’ वर्ष 1960 में रिलीज़ हुई थी। इसी फिल्म का गाना जब गेयटी थियेटर में शूट किया जा रहा था तो साधना का डांस देखकर फिल्म के प्रोड्यूसर आरके नैयर मर मिटे। रही हीरो की बात तो इस फिल्म से जॉय मुखर्जी की केमिस्ट्री साधना से ऐसी बनी कि बाद में उन्हें ‘एक मुसाफिर एक हसीना’ फिल्म में भी रिपीट किया। लेकिन जॉय मुखर्जी के भविष्य की उम्मीद जैसी लगाई जा रही थी, उनका करिअर उतना चला नहीं। वह शशाधर मुखर्जी के सबसे छोटे बेटे थे। पाठकों को तो पता होगा कि अशोक कुमार दादामुनि की बहन शशाधर मुखर्जी को ब्याही हुई हैं। जॉय मुखर्जी के बैक ग्राउंड में जाने के पीछे कई कारण हैं। एक तो उस समय तक बॉलीवुड में राजेश खन्ना आ चुके थे और उन्होंने आते ही फिल्मों का ट्रेंड बदल दिया था। दर्शकों ने उन्हें नये ताजे चेहरे के कारण सिर-आंखों पर बैठाया। दर्शक लोग अपना जायका बदलना चाहते थे। वे बांग्ला नायकों से अघा चुके थे। वे एक अन्य पंजाबी हीरो को भी देखना चाहते थे क्योंकि धर्मेंद्र को तो देख चुके थे। लेकिन जॉय मुखर्जी ने जिन-जिन नायिकाओं के साथ काम किया वे खूब सफल रहे। ‘लव इन टोक्यो’ में उनके साथ आशा पारेख थीं, खूब हिट रही थी फिल्म। आशा पारेख के साथ उन्होंने और भी हिट मूवीज दी हैं। हल्की-फुल्की, रोमांटिक मूवीज के लिए जाने जाते हैं जायॅ मुखर्जी, तभी तो उनका नाम चॉकलेटी हीरो पड़ा है। उनका बांग्ला फिल्मों में भी बड़ा मकबूल नाम है। लव इन सीरीज को शुरू करने वाले जॉय मुखर्जी ही थे। ‘लव इन बाम्बे’ फिल्म ने उन्हें कर्जे में डुबो दिया। रिलीज भी 40 साल बाद हुई। इस फिल्म के कारण वह मुकदमेबाजी में उलझे सो अलग। अगर इस फिल्म को छोड़ दें तो बाकी की लगभग उनकी सभी फिल्में सफल ही रहीं। पहली ही फिल्म से उन्होंने हिट फिल्मों की नींव रखनी शुरू कर दी। रही साधना की बात तो ‘साधना कट’ जुल्फों का रिवाज इसी फिल्म से शुरू हुआ था। बाद में वह सबसे ज्यादा मेहनताना वसूलने वाली हीरोइनों में से एक थीं। अपने जमाने में तो इतनी पारिश्रमिक राशि अकेली वही हीरोइन लेती थीं। उन्हें मिस्ट्री गर्ल भी कहा जाता है क्योंकि राजखोसला ने जितनी भी उनके साथ मूवीज बनायीं, सस्पेंस वाली ही थीं। उनका चौड़ा माथा था, ‘लव इन शिमला’ के डायरेक्टर ने चौड़े माथे ढकने के लिए जुल्फों की एक लट गिरा दी और वही फैशन चल निकला। स्कूल-कॉलेज की लड़कियां तो इस फैशन की दीवानी ही थीं, गली-मोहल्ले भी अछूते नहीं रहे। साधना ने इसी फिल्म से एक अन्य फैशन को अपना ब्रांड बनाया। वह था चूड़ीदार पायजामे के साथ कुर्ते का सुमेल। इससे पूर्व महफिलों आदि में पुरुष लोग व मुस्लिम औरतें ही इसे पहनते थे। साधना ने इसे हिंदू औरतों में भी सम्मानजनक पहरावे के रूप में स्थापित किया। लड़कियां जो उस जमाने में पैंट, स्कर्ट नहीं पहनती थीं, चूड़ीदार पायजामा उनकी पोशाकों में शामिल होने लगा। ये थे साधना होने के मायने। इस फिल्म में शोभना सामर्थ भी थीं। शोभना यानी नूतन और तनुजा की मां। मतलब काजोल की नानी। इसमें अजरा ने भी शिरकत की है साधना की कजिन के रूप में। अजरा को महबूब खान फिल्मों में लाये थे। उन्होंने मदर इंडिया से फिल्मों में डेब्यू किया था। फिल्म में चुपचाप रहने वाली लड़की जो सुनील दत्त को मन ही मन में प्यार करती है, उसे हिसाब-किताब पढ़ना सिखाती है। वह जो लाला के गड़बड़झाले समझाती है, वह अजरा ही है। कुल मिलाकर यह बड़ी खूबसूरत रोमांटिक फिल्म है, जिसे देखने के लिए दर्शक को मन पर बोझ नहीं डालना पड़ेगा। विशुद्ध मनोरंजन है यह फिल्म। फिल्म की छीछालेदार करने से पूर्व पाठकों को कहानी सुना देना सही रहेगा। पहले वही करते हैं।

यह कहानी सिंड्रेला की सी है, जिसके सपनों को साकार करने के लिए परी मदद करती है। यहां इस फिल्म में सिंड्रेला साधना है और उसकी दादी शोभा खोटे परी है जो उसे दुनिया की आंखों से बचाकर रखती है। यह फिल्म 1938 में बनी अंग्रेजी फिल्म ‘जेन स्टैप्स आउट’ की तर्ज पर बनाई लगती है। वैसे यह साधना की डेब्यू फिल्म है लेकिन छोटा-सा रोल उन्होंने पहले भी श्री 420 फिल्म में किया है लेकिन किसी ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। दर्शकों को क्या पता था कि फिल्म श्री 420 में ‘मुड़ मुड़ के न देख’ गाने पर डांस करने वाली चंद बालाओं मे एक साधना, एक दिन मशहूर अभिनेत्री बनेगी। असली डेब्यू यही आलोच्य फिल्म थी, जिसने उन्हें रातों-रात स्टार बना दिया। इस फिल्म की सारी शूटिंग शिमला में हुई थी। अंग्रेज भारत छोड़ गए, मगर उनके बनाये गये कॉलोनियों जैसे घर अभी भी अंग्रेजों की याद दिलाते हैं। इन्हीं में से एक विशालघर में मेजर जनरल राजपाल रहते हैं, जिनकी हा-हा जैसी गर्जन से हमेशा घर गूंजता रहता है। उनके परिवार में उनकी पत्नी शोभना सामर्थ, बेटी अजरा जिसका नाम शीला और एक भतीजी सोनिया (साधना) भी रहती है। सोनिया की सौतेली मां और पिता का निधन हो चुका है। इसलिए वह अपने चाचा के साथ रहती है। सोनिया के चाचा तो उसे अपनी बेटी जैसी रखते हैं लेकिन चाची (शोभना) उसे जब जी करता है, जली-कटी सुनाती है। यही हाल शीला का है। जैसे कुछ आर्मी अफसर की बेटियां तुनक मिजाज होती हैं, वैसी शीला भी है जिसे अपने आप पर बहुत अभिमान है। इसलिए वह सोनिया को गंवार समझती है। वह देव (जॉय मुखर्जी) पर मर मिटती है और उसे शुबहा है कि सोनिया ऐसे काम में बड़ी बुद्धू है। उसका भ्रम सोनिया तोड़ती है जब अपनी दादी की मदद से वह गाने, डांस में शिरकत करती है। दादी ही उसे उठने-बैठने, पहनने, चलने की ट्रेनिंग देती है। उसका नतीजा यह होता है कि वह मैदान मार लेती है। डांस पार्टनर शीला की अनुपस्थिति में देव, सोनिया को ही डांसिंग फ्लोर पर बुला लेते हैं और वह प्रतियोगिता जीत जाते हैं। सोनिया प्रतियोगिता ही नहीं जीतती बल्कि देव का दिल भी जीत लेती है। शीला को पराजित देखकर सोनिया उसे महसूस नहीं होने देती कि उसने कोई मैदान मारा है। निर्देशक आरके नैयर की यहां तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने पटकथा को सिंड्रेला मेलोड्रामा की तरह ट्रीटमेंट नहीं दिया। बल्कि हमेशा ही इस बात का ध्यान रखा कि स्टोरी दर्शकों पर हावी न हो जाये। इसलिए शोभना सामर्थ और उनके फौजी पति के बीच में नोकझोंक चली रहती है। देव खुलेआम सोनिया के साथ इश्क करते हैं। हालांकि, मंगेतर वह शीला के हैं। डबल फलर्टेशन में जॉय मुखर्जी ने खूब महारत दिखायी है। हालांकि, यह बात आम दर्शक को चुभती है कि वह एक साथ दो-दो युवतियों पर लाइन मार रहे हैं, लेकिन यह पटकथा की मांग है। पहले इस फिल्म में धर्मेंद्र काम करने के इच्छुक थे लेकिन पटकथा को पढ़कर उन्होंने शायद इरादा बदल दिया क्योंकि तब वह हॉकी प्लेयर जयादा लगते थे बजाय कि रोमांटिक हीरो। फिल्म के आखिरी सीन में साधना जब सौंदर्य प्रतियोगिता जीतती है तो फिल्मालय प्रोडक्शन कंपनी उनके साथ तीन साल का अनुबंध कर लेती है। असल जिंदगी में भी साधना का फिल्मालय वालों से तीन साल का कॉन्ट्रेक्ट था और उसे पहले साल 750 रुपये, दूसरे साल 1500 और तीसरे साल 3000 रुपये प्रतिमाह मिलते थे। अपने इसी कांट्रेक्ट के चलते उन्होंने फिल्मालय की दूसरी फिल्म ‘एक मुसाफिर एक हसीना’ भी जॉय मुखर्जी के साथ की। ‘लव इन शिमला’ फिल्म के संगीत निर्देशक इकबाल कुरैशी जिन्होंने इस फिल्म की सफलता के बाद चा चा चा फिल्म में संगीत दिया लेकिन फ्लॉप रहे। लव इन शिमला 1960 में पांचवीं आलाकमाऊ फिल्म थी जिसने उस साल ही 1.7 करोड़ रुपये कमाए। सोवियत यूनियन में यह फिल्म 1963 में रिलीज हुई थी और उसी साल यह कामयाबी के तीसरे पायदान पर आयी। यह फिल्म सोवियत यूनियन में कमाई करने वाली 20 फिल्मों में से एक थी। इस फिल्म में जो अनाउंसर बने हैं, वह हरि शिवदेसानी हैं। हरि शिवदेसानी साधना के चाचा और बबीता के पिता हैं। क्या करें बॉलीवुड में रिश्तेदारियां ही बहुत हैं।

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निर्माण टीम

निर्देशक : आरके नैयर

प्रोड्यूसर : शशाधर मुखर्जी

पटकथ लेखक : आगा जानी, आरके नैयर

सिनेमैटोग्राफी : डीके धुरी

संगीत : इकबाल कुरैशी

सितारे : जॉय मुखर्जी, साधना, शोभना सामर्थ, अजरा, किशोर साहू आदि

गीत

दिल थाम चले हम किधर : मोहम्मद रफी

लव का मतलब है प्यार : रफी, आशा भोसले

गाल गुलाबी किसके हैं : मोहम्मद रफी

अलिफ, जबर, आ, अलिफ जेर : सुधा मल्होत्रा, मो. रफी

ए बी बेबी ए जी : आशा भोसले, मोहम्मद रफी

हसीनों की सवारी है : रफी, सुमन कल्याणपुर

किया है दिलरुबा प्यार कभी : आशा, मोहम्मद रफी

दर पे आए हैं : मुकेश

मुस्कराए खेत प्यासे तरसे तरसे : सुमन कल्याणपुर, रफी

हुस्न वाले वफा नहीं करते : शमशाद बेगम, रफी

यूं जिंदगी के रास्ते संवारते चले गये : मोहम्मद रफी

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