हिंदी फीचर फिल्म : ललकार
शारा
रामानंद सागर ही इस फिल्म के निर्देशक हैं, बहुत-सी हिट फिल्में देने वाले रामानंद सागर को लोग-बाग फिल्मी हस्ती के बजाय टेलीविजन के बंदे के रूप में जानते हैं जिन्होंने टेलीविजन पर रामायण प्रस्तुत करके टेलीविजन को लोकप्रिय बना दिया। उन्होंने ‘रामायण’ के राम को ऐसा चेहरा-मोहरा दिया कि जनमानस पर उनके नक्श चस्पां हो गये। ऐसा लगता है कि रामायण पर बनी पहले की फिल्मों के चरित्र निभाने वालों की शक्लें कब की दृष्टि ओझल हो गयीं। सिर्फ राम ही क्यों, रामायण के बाकी किरदारों को मनभावन चेहरे-मोहरे दिये। हमें आज भी यही लगता है कि राम की शक्ल-ओ-सूरत डील-डौल ऐसा ही रहा होगा और लक्ष्मण ऐसे ही गुस्सैल रहे होंगे। जब टीवी पर रामायण धारावाहिक का प्रसारण समय होता था, तो पूरे देश के काम मानो रुक जाते थे—एकदम स्टैंड स्टिल। ट्रक वाला ट्रक रोककर किसी भी दुकान/ढाबे के टीवी के आगे धारावाहिक देखने बैठ जाता था। सारे वाहन खड़े हो जाते थे, दफ्तरों में सन्नाटा, कैंटीन, होटल, उद्योग सब कुछ आधे घंटे के लिए ठप, सड़कें सुनसान ओर सारा राष्ट्र भक्ति में सराबोर-इसके पीछे एक ही चेहरा था रामानंद सागर। फिर उसके बाद तो धार्मिक ग्रंथों पर जैसे धारावाहिकों का रिवाज ही चल निकला लेकिन इस पथ के पहले राही थे रामानंद सागर। खूब मेहनत हुई स्क्रिप्ट पर, बेटे मोती सागर के साथ मिलकर काफी अनुसंधान हुए, तब रामायण बनी। रामायण से पहले उन्होंने ढेर सारी फिल्में बनायीं। उनकी फिल्मों में रोमांस, एक्शन, सस्पेंस तो होता ही था लेकिन राष्ट्रभक्ति मुख्य होती थी तब माहौल ही ऐसा था। आजादी मिल चुकी थी लेकिन आजादी प्राप्ति के लिए संघर्ष के दौरान बनी कहानियां भला देशवासियों को ही तो सुनानी थीं। ‘आंखें’ फिल्म भी उन्हीं की ही बनायी हुई है, जिसमें धर्मेंद्र और माला सिन्हा की ही जोड़ी थी जो इस फिल्म में भी है। दोनों फिल्में जासूसी पर आधारित थीं। रोमांस भी उनकी फिल्मों की यूएसपी थी। याद कीजिए आरजू या गीत फिल्म को। क्या गाने थे? इन दोनों फिल्मों में भी राजेंद्र कुमार ही थे। लगता है कि राजेंद्र कुमार रामानंद सागर के पसंदीदा हीरो थे। ललकार में भी राजेंद्र कुमार थे। सच बात तो यह है कि वह समय ही राजेंद्र कुमार का था। बाद में वह धर्मेंद्र को अपनी फिल्मों का हिस्सा बनाने लगे। आंखें फिल्म उन्होंने धर्मेंद्र को लेकर ही बनायी। माला सिन्हा को भी वह तरजीह देते थे। उनकी फिल्मों में एक और चेहरा अक्सर दिखाई देता था वह थी कुमकुम। पाठकों को याद करा दूं। आरपास फिल्म में जगदीप के साथ गीत ‘कभी आर कभी पार लागा तीरे नजर’ गाने वाली कुमकुम ही थीं। और याद दिलाऊं? ‘मिस्टर एक्स इन बाम्बे’ फिल्म में ‘यह है बाम्बे मेरी जान’ कुमकुम पर ही फिल्माया गया था। बताया जाता है कि कुमकुम को फिल्मों में लाने का श्रेय गुरुदत्त को जाता है। वह मुस्लिम लड़की थी और उनका वास्तविक नाम जेबुन्निसा था जो कथक में पारंगत थीं। ‘मधुबन में राधिका नाचे रे’ गाने में उन्होंने ही नृत्य किया था। ललकार फिल्म में उन्होंने तोषी का रोल किया है जो आधी फिल्म तक लड़के के रूप में दिखती है। चलो चलें फिल्म की ओर।
यह फिल्म 1972 की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म थी, जिसने दर्शकों की बॉक्स ऑफिस पर खचाखच भीड़ भर दी थी। चेतन आनंद की ‘हकीकत’ के बाद देशभक्ति पर आधारित यह संभवत: दूसरी मूवी थी जिसे दर्शकों ने खासा सराहा क्योंकि इसमें दो तरफ रोमांस का तड़का, सस्पेंस थ्रिल तो था ही एक्शन से भरपूर भी थी यह मूवी। वैसे भी रामानंद सागर मूवी का विषय चयन और उस विषय के निर्वहन में माहिर थे। इससे पूर्व आंखें फिल्म के लिए फिल्मफेयर ने उन्हें सर्वोत्तम निर्देशक के पुरस्कार से नवाजा था। वह निर्देशक और प्रोड्यूसर ही नहीं थे, बेहतर पटकथा, लेखक भी थे। राजकपूर, नर्गिस अभिनीत फिल्म बरसात के लिए पटकथा भी लिखी थी और फिल्मफेयर ने तब भी उन्हें बढ़िया संवाद रचना के लिए पुरस्कृत किया था। 1968 में बनी ‘पैगाम’ फिल्म की स्टोरी भी उन्हीं के ही द्वारा लिखी गयी थी, जिसमें वैजयंती माला ने अभिनय किया था। फिर उन्होंने जेम्स बांड फिल्मों से प्रभावित होकर ‘आंखें’ फिल्म बनायी, जिसके बढ़िया निर्देशन के लिए उन्हें पुरस्कार मिला। ‘हकीकत’ चीन की लड़ाई को लेकर थी तो ललकार फिल्म बर्मा (अब म्यांमार) के हमले का भारत द्वारा दिये गये जवाब पर आधारित थी, जिसका देशकाल तो पुराना है लेकिन सितारों के रहन-सहन को देखकर लगता है कि यह कल की ही बात है। मतलब सेट द्वितीय विश्वयुद्ध का है लेकिन किरदारों के पहरावे को देखकर पाकिस्तान का युद्ध का समय लगता है। शायद रोमांस का छौंक ज्यादा लग गया जिससे कहानी ‘हकीकत’ फिल्म से कमतर लगती है।
आलोच्य कहानी में कर्नल कपूर के दो देशभक्त बेटे हैं जो ब्रिटिश सरकार की सेवा की ओर से जापानी आक्रमण का मुंह तोड़ जवाब देते हैं। युद्ध की विभीषिका पर बनी फिल्म में रोमांस की मात्रा ज्यादा होने से मूवी बजबजा गयी है। कर्नल कपूर के बेटे राजन (राजेंद्र कुमार) तथा कर्नल चौधरी (नासिर हुसैन) की डाक्टर बेटी उषा (माला सिन्हा) से इश्क के खूब सीन हैं। मेजर राम इस बात से अनभिज्ञ हैं कि राजन और उषा के बीच प्रेम चल रहा है, इसलिए राम को भी उषा से प्यार हो जाता है। इस बीच विंग कमांडर राजन को एक खुफिया काम दुश्मन के अड्डे का पता लगाने को दुश्मन के इलाके में भेजा जाता है। राजन अपने हवाई जहाज द्वारा उस काम को तो अंजाम दे देता है मगर दुश्मनों के हत्थे चढ़ जाता है। दुश्मन उसे बंदी बना लेते हैं। दुश्मन के ठिकानों के ध्वस्त करने के लिए भारतीय सेना की तरफ से मेजर राम जो कि विंग कमांडर राजन के भाई है, को इस महती कार्य के लिए भेजा जाता है। देश का ही कोई भेदिया यह खबर जापानी सेना तक पहुंचा देता है और यह मिशन भी कंप्रोमाइज्ड हो जाता है। हालांकि यह मिशन फेल हो जाता है मगर दोनों भाई इस दौरान आमने-सामने हो जाते हैं। ऐसे में एक ही भाई बच पाता है और जो दुश्मन के हाथों मारा जाता है, वह कौन था। तोषी (कुमकुम) किस की गर्लफ्रेंड थी और वह इस मिशन में क्यों शामिल हुई? यह तो फिल्म देखकर ही पता चलेगा ? अपने रोल में धर्मेंद्र फिट हैं। कुछ मजाकिया किस्म का कैरेक्टर लिए हुए। सलमान की तरह यहां कई सीन है जहां उनके कपड़े उतरे हैं। उस समय हीरो नाचने तथा गीत गाने के लिए ज्यादा जाने जाते थे बजाय कि शारीरिक सौष्ठव के लिए, मगर यह रिवाज धर्मेंद्र ने चला दिया। वह उस समय के मैचोमैन थे। 1950 से 60 के बीच तहलका मचाने वाले राजेंद्र कुमार वैसे ही नजर आये हैं, जो कहानी की मांग थी। यही बात माला सिन्हा पर फिट बैठती है। जापानियों का भ्रम देते असमी कलाकारों ने ललकार में बढ़िया काम किया है लेकिन कुछ सितारे हास्यास्पद लग रहे हैं। जैसे रोहित शेट्टी के पिता जी शेट्टी का रोल। लगता है जैसे मूवी न होकर मजाक हो रहा हो। राजेंद्र कुमार व माला सिन्हा के बीच रोमांस तो परिपक्व है लेकिन मेजर राम (धर्मेंद्र) और (कुमकुम) के बीच रोमांस चुहलबाजी बनकर रह गया है। कुल मिलाकर यह मूवी देखी जा सकती है।
निर्माण टीम
प्रोड्यूसर, निर्देशक : रामानंद सागर
कहानी लेखक : रामनंद सागर
पटकथा लेखक : मोती सागर
सिनेमैटोग्राफी : प्रेम सागर
गीत : हसरत जयपुरी, कुलवंत सिंह, इंदीवर, महेंद्र
संगीत : कल्याणजी आनंदजी
सितारे : धर्मेंद्र, राजेंद्र कुमार, माला सिन्हा, कुमकुम आदि
गीत
आज गा लो मुस्कुरा लो : रफी
बोल मेरे साथिया : लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी
मेरे महबूब : मनहर उधास, माला सिन्हा
श्याम जी के द्वार पे : महेंद्र कपूर, सुषमा श्रेष्ठा
जरा मुड़के तो देख : मोहम्मद रफी
मैंने कहा ना ना ना : लता मंगेशकर