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शाही शादी की ऊंची हसरतें समृद्ध होती कारोबारी परतें

08:54 AM Mar 10, 2024 IST
शाही शादी की ऊंची हसरतें समृद्ध होती कारोबारी परतें
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आलोक पुराणिक

रोटी, कपड़ा और मकान-यह बुनियादी जरूरत का सामान है इंसान के लिए। पर भारतवर्ष में रोटी, कपड़ा और शादी यह ज्यादा जरूरत का इंतजाम है, जिन लोगों के पास अपने निजी मकान नहीं हैं, उनकी भी शादी तो हो ही जाती है। शादी सिर्फ सामाजिक बंधन नहीं है भारत में, शादी बहुत बड़ा कारोबार है।
शादी जिम्मेदारी है, शादी फंक्शन है, शादी रिश्तों का जंक्शन है। शादी कुछ कुछ नहीं है, शादी बहुत कुछ है। शादी बहुत कुछ है। भारतीय इतिहास में शादियों का अलग तरह का इतिहास का रहा है, पर हाल में एक शादी नहीं, शादी पूर्व उत्सव ने इतिहास जैसा ही कुछ रच दिया है।
हाल में अंबानी परिवार में होने वाली शादी के शादी पूर्व उत्सवों की बहुत लंबी-चौड़ी चर्चा रही। एक विदेशी गायिका रिहाना को 74 करोड़ रुपये दिये गये, पूरे उत्सव में करीब 1200 करोड़ रुपये का खर्च अनुमानित रहा। एक ही मंच पर शाहरुख खान, आमिर खान, सलमान खान को नचवाने के लिए बहुत बड़े बजट की दरकार होती है। कोई भी फिल्म निर्माता अब तक यह न करवा पाया कि तीनों खानों को एक साथ नचवाने का इंतजाम कर लिया जाये। अंबानी परिवार के शादी पूर्व उत्सव में तीनों खान नाचे। नाचने वालों, गाने वालों, होटल वालों, फूल वालों, कपड़े वालों, ज्वैलरी वालों, एयरलाइंस वालों, कैटरिंग वालों को कारोबार मिला, बड़ी शादी में बड़ा कारोबार मिलता है, छोटी शादी में छोटा कारोबार मिलता है। पर कारोबार जरूर मिलता है। शादी भारत में जीवन का केंद्र है।

उत्सव से भी आगे उत्सव चक्र

शादी के भारत में अलग ही सामाजिक संदर्भ हैं। भारतीय माता-पिता बच्चों की शादी के साथ-साथ नाती-पोतों तक की शादी का इंतजाम करने में भरोसा करते हैं। शादी विदेशों में इतना बड़ा कारोबार नहीं हैं। भारत की जनसंख्या जैसी जनसंख्या किसी भी देश में नहीं है। भारत दुनिया का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश है। जाहिर है, इसके पीछे भी बहुत ज्यादा संख्या में हुई शादियां हैं और सबसे ज्यादा जनसंख्या है, तो जाहिर है कि शादियां भी बहुत होंगी। तो शादियों को भारत में अलग तरीके से ही देखा जाना चाहिए। सिर्फ एक उत्सव नहीं है शादी, यह दरअसल उत्सव चक्र है, जो कई दिनों तक चलता है। उत्सव चक्र कई दिनों तक चलेगा, तो जाहिर है कारोबार भी धुआंधार होगा। सो ही हो रहा है।

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भारत में शादी से जुड़े पहलू

आम हिंदुस्तानी परिवार में बेटी के जन्म के वक्त से उसकी मां और पिता की चिंता शादी से जुड़ जाती है। ऐसे कई परिवार मिल जायेंगे तो हर साल कुछ न कुछ सोना खरीदते हैं बिटिया की शादी के लिए, तब से जब से बिटिया की उम्र एक साल रही होगी। तमाम बीमा पॉलिसियां इसलिए ही बेच दी जाती हैं कि बेटी की शादी में काम आयेंगी। शादी भारत में बवाल है, सवाल है, धमाल है, बैंक्वेट हाल है, धंधा है, गोरखधंधा है, योग है, उद्योग है, प्रयोग है, संयोग है, धंधा हिट है, प्राफिट ही प्राफिट है। शादी के बाद बंदा क्या सोचता है-बच्चों की, और बच्चों के होने के बाद बंदा क्या सोचता है जी यही कि बच्चों की शादी का जुगाड़ कैसे किया जायेगा।

शादी में शाही खर्च की हसरतें और स्पर्द्धा

एक विदेशी पत्रिका का अनुमान है कि भारत में भारतीय करीब 130 अरब डालर की रकम शादियों पर सालाना खर्च करते हैं। यह रकम कितनी बड़ी है इसका अंदाजा इस बात से लग सकता है कि समूची पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के जीडीपी के एक तिहाई के बराबर यह रकम है। यह अलग बात है कि पाकिस्तान में भी संपन्न परिवारों की शादियों में होने वाले खर्चों का मुकाबला महंगी भारतीय शादियों से किया जा सकता है। हाल ही में अंबानी परिवार में शादी पूर्व उत्सव की कवरेज की धूम पाकिस्तानी मीडिया में भी रही। पाकिस्तान के मीडिया ने हसरत और एक हद तक ईर्ष्या से अंबानी उत्सव को देखा। शादियां समाज में आम तौर पर ईर्ष्या का विषय रहती हैं। उसने अपने यहां की शादी में इतनी रकम खर्च कर दी है, तो हमारे परिवार की शादी में उससे कम रकम नहीं खर्च होनी चाहिए। उनसे उन्नीस नहीं, बीस होनी चाहिए अपने परिवार की शादी। इस चक्कर में नयी-नयी चीजें जुड़ती जा रही हैं। कुछ समय पहले तक केक सेरेमनी भारतीय शादी के उत्सवों में नहीं होती थी। अब केक सेरेमनी होती है, सगाई आदि में। औसत भारतीय भी शादी के वक्त इतना उदार हो जाता है खर्च के मामले में कि उससे कोई भी खर्च कराया जा सकता है। उसकी कमीज मेरी कमीज से सफेद कैसी-टाइप ईर्ष्या जनित भाव से खर्च लगातार बढ़ाने के लिए किसी को भी प्रेरित किया जा सकता है।

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बेहतरीन मुहूर्त के दिनों में कारोबार

शादियों का कारोबार क्या है, यह देखा जा सकता है उन दिनों में जब शादियों के कुछ बेहतरीन मुहूर्त निकलते हैं। खास मुहूर्तों के दिनों में होटल, बैंक्वेट हाल मिलना मुश्किल हो जाता है। दिल्ली में हर साल खबरें आती हैं कि आज शहर में इतनी हजार शादियां हैं, यहां-यहां ट्रैफिक जाम होना है। शादी-फेरे कराने के लिए पंडितों की कमी हो जाती है।
कॉन्फेडरेशन आफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के मुताबिक, 23 नवंबर से 15 दिसंबर, 2023 के बीच 38 लाख शादियां होने का अनुमान था भारत में। इन शादियों में करीब 4.74 लाख करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान था। मोटे तौर पर यह माना जा सकता है कि लगभग चार महीनों के जीएसटी संग्रह के बराबर रकम यानी 4.74 लाख करोड़ रुपये इन 38 लाख शादियों में खर्च होने का अनुमान था। 38 लाख शादियों का मतलब यह है कि सिंगापुर की जितनी जनसंख्या है करीब 45 लाख, उससे कुछ कम शादियां भारत में कुछेक दिनों में निपट लेती हैं। शादियों का एक आयाम और है। काले धन की खपत बड़ी तादाद में शादियों में होती है। काला धन यानी वह धन जिसका हिसाब-किताब नहीं होता। बड़ा मकान और बड़ी शादी, ये दो तत्व स्टेटस सिंबल होते हैं। बड़ी शादी में अनाप-शनाप खर्च होता है। काफी कुछ हिस्सा उसका अब भी नकदी की शक्ल में होता है। शादी बड़ा नहीं, बहुत बड़ा धंधा है।

रोजगार की भी बहार

शादी की सूरत बड़ी तेजी से बदलती चली गयी है, वह आम तौर पर ज्यादा महंगी और दिखावटी होती गयी है। घर के ढोलक गीतों की जगह अब डीजे ने ले ली है, हालांकि उससे भी बहुतों को रोजगार मिलता है। शादियों में इधर लघुस्तरीय एंकरों को भी रोजगार मिलने लगा है। कई शादियों में तमाम रीति-रस्मों के निर्वाह के उद्घोष के लिए बाकायदा उद्घोषक रखे जाते हैं। शादी एंकरिंग अब छोटा-मोटा कारोबार है, जिसे नाट्यकर्मी करते हैं, और भी वो लोग करते हैं, जो बोलना ठीक-ठाक जानते हैं। यह भी रोजगार है। शादियां ठीक-ठाक चलती रहें, तो बहुतों को बहुत तरह का रोजगार मिलता है।

डेस्टिनेशन वेडिंग के नये-नये कांसेप्ट

फिर एक नया कंसेप्ट आ गया है-डेस्टिनेशन वेडिंग यानी तमाम रिश्तेदारों को किसी खास जगह लेकर जाया जाता है। वहां पर शादी होती है, अंडमान निकोबार से लेकर आगरा में ताजमहल के करीब हो सकती है डेस्टिनेशन वैडिंग। अब एक नया ट्रेंड आया है, लोग नये-नये तजुर्बे करना चाहते हैं और उन पर रकम भी खर्च करना चाहते हैं। नॉर्मल शादी नहीं करनी, कुछ अलग तरीके से शादी करनी है, सबके लिए कुछ खास तजुर्बा रहे। अपने शहर के बैंक्वेट हाल में शादी कर ली, तो नॉर्मल शादी हो गयी। किसी पहाड़ी डेस्टिनेशन पर, किसी समुद्र के बीच पर मेहमानों को लेकर जायें, तो ही माना जायेगा कि कुछ अलग अनुभव है। इस तरह के नये-नये अनुभवों की तलाश-आकांक्षाओं ने डेस्टिनेशन वैडिंग कारोबार में तेजी ला दी है। डेस्टिनेशन वैडिंग अब करोड़ों का कारोबार है। शादियों में दूल्हा हेलीकॉप्टर में आया, टाइप खबरें अब खूब देखी-सुनी जाती हैं। हेलीकॉप्टर सेवा का कारोबार अब शादियों के चक्कर में भी बढ़ रहा है। डेस्टिनेशन वैडिंग बहुत तेजी से उभरता धंधा है। समृद्ध परिवार दुबई से लेकर मॉरीशस तक जाकर डेस्टिनेशन वैडिंग करते हैं, पीएम नरेंद्र मोदी ने आह्वान किया था कि अब शादियां भारत में ही हों। यह संदेश था उन अमीरों के लिए जो करोड़ों खर्चते हैं बाहर जाकर शादियों पर। अंबानी परिवार में हाल में हुआ शादी पूर्व उत्सव भारत में ही हुआ था और यह उत्सव एक तरह से देशी और विदेशी उद्योगपतियों और तमाम क्षेत्रों के शीर्ष व्यक्तित्वों का जमावड़ा था।

शादी योग्य युवाओं के आंकड़े

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, देश की करीब 34 प्रतिशत जनसंख्या 20 से 39 साल के बीच की है। देश की करीब दस प्रतिशत जनसंख्या 15 से 19 साल के बीच में है यानी अगले दस सालों में देश की दस प्रतिशत जनसंख्या शादी योग्य उम्र में प्रवेश कर जायेगी। भारत में कुछ हो या न हो, शादी जरूर होती है। छोटी होती है, बड़ी होती है, पर शादी तो लगभग हरेक की हो ही जाती है। तो भारत की बड़ी आबादी शादी बाजार में प्रवेश करने के लिए तैयार है। भारत शादी प्रधान देश है, यह कहने में हर्ज नहीं है। वैडिंग प्लानिंग अब बड़ा कारोबार है, इससे भी कई लोगों को रोजगार मिला है।

ज्वैलरी बाजार से ताल्लुक

शादियों का ज्वैलरी बाजार से गहरा ताल्लुक है। ज्वैलरी बाजार भारत में संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों से ताल्लुक रखता है। ज्वैलरी बाजार की बड़ी कंपनी है टाइटन, टाटा समूह की इस कंपनी ने ज्वैलरी और खासकर ब्रांडेड ज्वैलरी बाजार में अपना दबदबा बनाया हुआ है। नयी पीढ़ी की पसंद ब्रांडों की तरफ ज्यादा उन्मुख है। जाहिर है शादियों के वक्त ज्वैलरी के बगैर काम नहीं चलता, ब्रांडेड ज्वैलरी के कारोबार की मजबूती इस बात से साफ होती है कि 6 मार्च 2024 के हिसाब- किताब से टाइटन का शेयर एक साल में करीब 59 प्रतिशत ऊपर जा चुका था। यानी इस कंपनी के कारोबार की संभावनाएं बहुत ही मजबूत मानी जा रही हैं उस बाजार में जहां नौजवानों का चुनाव किसी ब्रांड की तरफ जा रहा है।
छह लाख शादियों में करीब पच्चीस लाख रुपये प्रति शादी खर्च होने का अनुमान था। 50000 शादियों में करीब पचास लाख रुपये के खर्च का अनुमान था और करीब पचास हजार शादियों में करीब एक करोड़ या इससे ज्यादा खर्च होने का अनुमान था। भारत संपन्न हो रहा है और संपन्नता अगर परिवार की शादी में न दिखे, तो संपन्न होने का अर्थ ही क्या है। छह लाख शादियों में करीब पच्चीस लाख रुपये प्रति शादी खर्च होने का अनुमान था। 50000 शादियों में करीब पचास लाख रुपये के खर्च का अनुमान था और करीब पचास हजार शादियों में करीब एक करोड़ या इससे ज्यादा खर्च होने का अनुमान था। इस रकम का बड़ा हिस्सा ज्वैलरी में जाता है, खासकर सोने से जुड़ी ज्वैलरी में। भारत दुनिया का दूसरे नंबर का सबसे बड़ा सोने का खरीदार मुल्क है। इसकी वजह है कि भारत में लगभग हर शादी में सोने का लेन-देन होता है। बहुत संपन्न लोगों की शादियों में सोना ज्यादा दिया जाता है, कम संपन्नों की शादी में सोना कम दिया जाता है।
पर बगैर सोने के शादी संपन्न नहीं होती। महाराष्ट्र में सोने का मंगलसूत्र शादी की किट का अपरिहार्य अंग है, तो पंजाब में चूड़ा अनिवार्य है। दुनिया के किसी भी देश में सोने का शादी के साथ ऐसा संबंध नहीं है, जैसा भारत में पाया जाता है। भारत में सोने का रिश्ता शादियों से इसलिए हो जाता है कि हर मां को लगता है कि बेटी को सोना देकर कहीं न कहीं उसकी सामाजिक सुरक्षा का एक इंतजाम हो जायेगा। बेटी के पास सोना होगा, तो यह एक तरह से किसी संकट से निपटने का इंतजाम होगा, ऐसी आम धारणा है। सोने ने इस लिहाज से निराश भी नहीं किया है। पांच सालों में सोने का सालाना रिटर्न करीब चौदह प्रतिशत रहा है। कोई दादी या नानी बता सकती हैं कि 1947 में 88.62 प्रति दस ग्राम आ रहा था, अब यह रेट 66 हजार प्रति दस ग्राम पर है।

होटलों के धंधे में चमक

होटलों का धंधा अलग चमक रहा है, बैंक्वेट हाल अलग चमक रहे हैं। होटलों के कारोबार का औसतन करीब बीस प्रतिशत शादी वगैरह के कारोबार से ही आता है। शादियों में मंदी आम तौर पर नहीं होती, कोरोना काल अपवाद था। शादी का धंधा चलेगा, चलता ही रहेगा, इसमें मंदी आने के आसार न के बराबर हैं। आप चेक कीजिये, आपके घर के आसपास बैंक्वेट हालों की तादाद बढ़ी ही होगी और सारे के सारे कारोबार करते ही होंगे। शादी भारत में सिर्फ आयोजन नहीं है। धंधा है बाकायदा, जो लगातार तेजी की तरफ है।

भारत का डावोस जामनगर

डावोस अंतर्राष्ट्रीय जगत में उस शहर के तौर पर चिन्हित किया जाता है, जहां साल में एक बार दुनिया भर के बड़े कारोबारी, बैंकर और अर्थजगत के बड़े-बड़े नाम इकठ्ठे हैं। डावोस मैन से मुराद ऐसे बंदे से होती है, जो अंतर्राष्ट्रीय अर्थ-उद्योग जगत में असर रसूख रखते हैं। हाल में भारत के गुजरात के शहर जामनगर में कई डावोस पुरुष आये थे-माइक्रोसाफ्ट के बिल गेट्स, फेसबुक के जुकर बर्ग, महिंद्रा समूह के आनंद महिंद्रा आदि। वो सारे डावोस पुरुष और डावोस लेडी जो डावोस में दिखते हैं, वो लगभग सारे के सारे जामनगर में थे। जामनगर में दुनिया के कई डावोस व्यक्तित्व थे। यह कोई सरकारी आयोजन नहीं बल्कि एक निजी आयोजन था। अंबानी परिवार की शादी से जुड़ा उत्सव था और दुनिया भर के डावोस व्यक्तित्वों ने हाजिरी दी। यह कमाल ही माना जाना चाहिए। इससे यह पता लगता है कि भारत के बड़े उद्योगों को अब दुनिया भर में गंभीरता से लिया जा रहा है। कुछ दिनों पहले यह खबर दुनिया भर में चर्चित हुई थी कि भारत के टाटा समूह की वैल्यू पाकिस्तान की समूची अर्थव्यवस्था के जीडीपी से ज्यादा थी। टाटा समूह अकेला ही पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था से ऊपर है। जामनगर ने तो खैर डावोस जैसा मामला ही खड़ा कर लिया। शादियां भारत में कई बार ताकतों का गठबंधन रही हैं। राजनीतिक ताकत या आर्थिक ताकत हो, शादियों का इस्तेमाल ताकत बढ़ाने के लिए किया जाता रहा है। अकबर ने राजस्थान के राजपूतों के साथ शादी के गठबंधन किये, उसकी ताकत बढ़ी। उद्योग जगत में एक औद्योगिक घराने के बच्चे की शादी दूसरे औद्योगिक घराने के बच्चे या बच्ची के साथ हो जाती है। जामनगर जैसे आयोजन सिर्फ सामाजिक आयोजन नहीं , बल्कि यह निवेश, गठबंधन वगैरह के चिंतन बिंदु हो जाते हैं। करीब 1200 करोड़ रुपये के विवाह पूर्व उत्सव ने ग्लोबल चर्चा बटोरी। इससे भारत की छवि अलग तरह की बनी। भारत अब दुनिया का वह देश हुआ जहां ग्लोबल कलाकार करोड़ों डालर लेकर नाचने-गाने आते हैं। इससे भारत की एक अलग व बेहतर छवि बनती है। कोई सरकार किसी आयोजन में हाथ डाले तो बड़े आयोजन करना संभव हो जाता है। पर किसी निजी आयोजन में दुनिय़ा भर के डावोस व्यक्तित्व आ जायें तो माना जाना चाहिए कि भारत की और भारत के उद्योग जगत की हैसियत अलग बन रही है।
लेखक आर्थिक पत्रकार हैं।

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