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सुंदरबन में कुदरती सौंदर्य की विरासत

08:24 AM Mar 22, 2024 IST
सुंदरबन में कुदरती सौंदर्य की विरासत
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बी. मदन मोहन
कुदरत ने अपने रूप-सौन्दर्य को इस तरह गढ़ा है कि मनुष्य जब-जब उसके सान्निध्य में आया है, तब-तब उसे अपरिमित तृप्ति प्राप्त हुई है।
सुन्दरबन डेल्टा प्रकृति की समृद्ध सम्पदा और मौलिक सौन्दर्य की अनूठी विरासत है। दस हज़ार वर्ग किलोमीटर में फैला यह विश्व का सबसे बड़ा जीवंत डेल्टा है। बंगाल की खाड़ी में तीन बड़ी नदियों- गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना- के मिलने से इसका निर्माण होता है। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश की सीमाओं तक फैले इस डेल्टा का 40 प्रतिशत भाग भारत में तथा शेष बांग्लादेश में अवस्थित है। 102 छोटे-बड़े द्वीपों में बंटे इस डेल्टा के 54 द्वीपों पर लोगों का निवास है। चारों तरफ फैली विशाल नदियों की जलराशि बंगाल की खाड़ी तक इस तरह मिली हुई है कि सामान्य जन इन‌की सीमाओं को आंकने में असमर्थ रहता है। एक ओर जल-विस्तार, दूसरी ओर घने जंगलों की अद्‌भुत सम्पदा और इनमें निवास करते जीव-जन्तु सुन्दरबन को विश्व की अनूठी धरोहर बनाकर प्रस्तुत करते हैं।
सुन्दरबन का प्रकृति का ऐसा करिश्मा है जो निरन्तर जल भ्रमण करते हुए यात्री मन-मेधा को बांधे रखता है। यहां का 80 प्रतिशत सफर नाव या स्टीमर से होता है। उत्साही और जिज्ञासु पर्यटक केनिंग या सोनाखाली से जब यात्रा की शुरुआत करते हैं तो धीरे-धीरे नदी डेल्टा अपनी समृद्ध विरासत के दृश्यों को लुभावनी सजीवता और आकर्षक तरलता के साथ इस तरह प्रस्तुत करवा चलता है कि यात्री-मन आनन्दातिरेक से कूक उठता है। नदी किनारे बसे लोगों की कठिन जीवनचर्या तथा मैंग्रोव वृक्षों की पानी से बाहर झांकती, सांस लेती जड़ों की सघन मालाएं आश्चर्यचकित कर देती हैं। इन्हीं वनों में हिरण, मगरमच्छ, बन्दर, जंगली सुअर तथा सबसे आकर्षक बंगाल टाइगर निवास करते हैं। वृक्षों की शाखाओं, नदी तटों तथा आस-पास उड़ते-चहकते अनगिनत प्रजातियों के छोटे-बड़े पंछी यहां की यात्रा को अविस्मरणीय बना देते हैं।
देश के किसी भी भाग से कलकत्ता होते हुए केनिंग या सोनाखाली पहुंच कर सुन्दरबन यात्रा का आरम्भ किया जा सकता है। तीन से पांच दिनों की इस यात्रा में यहां के द्वीपों पर बसे लोगों के जनजीवन, परम्पराओं, रीति-रिवाजों, कलाओं के साथ कठिन जीवन-संघर्ष और व्यापक रूप में जंगल की अनूठी क्रियाओं, वनस्पति की अकूत सम्यदा के साथ जीव-जन्तुओं की सहज मनोहारी गतिविधियों को भी निहारा जा सकता है। इस यात्रा का व्यय 3500 से लेकर 12000 तक हो सकता है। यह खर्च सुविधा और समय सीमा पर निर्भर करता है। इसमे खाना, ठहरना और गाइड सब कुछ शामिल है।
सुन्दरबन डेल्टा की यात्रा में जहां हम निरन्तर जल-भ्रमण करते हैं। वहीं इस यात्रा में बंगाली खान-पान अपने स्वादिष्ट भोजन की अमिट छाप अंकित करता है। विशेषतः आमिष भोजन की विभिन्नता और स्वाद इस यात्रा को यादगार बना देता है। प्रतिदिन आठ से दस घंटों की जल यात्रा के बाद जब विश्राम द्वीप पर पहुंचते हैं तो बॉन फॉयर (सांस्कृतिक कार्यक्रम) के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों से आए यात्रियों से मिलना तथा स्थानीय कलाकारों के साथ गायन और नृत्य में शामिल होना सुखकर लगता है। स्थानीय कलाकार अपने जीवन-संघर्षों की झलक प्रस्तुत कर हमें भाव-विह्वल भी कर देते हैं।
सुन्दरबन में व्यवसाय के नाम पर मछली पकड़‌ना, शहद उतारना और थोड़ा-बहुत खेती करना (अगर ज्वार के पानी से बची रह गई तो) शामिल है। ज्वार आने पर नदियों का पानी चढ़‌ने लगता है। ऐसे में कई लोग उसमें डूब जाते हैं। घने जंगल से मछली पकड़‌ने अथवा शहद एकत्रित करने पर बाघ का शिकार बन जाना भी यहां के लोगों की विडम्बना है। फिर भी उनके धैर्य, साहस और जिजीविषा को देख-समझ कर अश्चर्य होता है।
ब्रिटिश भारत के पहले वायसराय लॉर्ड चार्ल्स केनिंग और स्कॉटिश व्यवसायी डेनियल हेमिल्टन को सुन्दरबन डेल्टा के वर्तमान स्वरूप की शिल्पी कहा जा सकता है। समुद्र से मिलती विशाल नदियों के तटों को बांधकर और मैंग्रोव वृक्षों की सघन वनमाला को बचाकर यहां बसे लोगों के जीवन को उन्होंने सशक्त आधार उपलब्ध कराया है। सोनाखाली, गोसाबा, संजनेखाली, दोबांकी तथा पाखीरालय द्वीपों के लोग इनकी स्मृतियों को सहेज कर आज भी इन्हें याद करते हैं।

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