For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.

लो आया पतझड़, दल-दल में गिरने का मौसम

06:49 AM Feb 23, 2024 IST
लो आया पतझड़  दल दल में गिरने का मौसम
Advertisement

सूर्यदीप कुशवाहा

अब चुनाव आ गया। तब पतझड़ शुरू होगा। यह पतझड़ बिलकुल अलग है। आयें-बायें-दायें का शुभ मुहूर्त है। या यूं कहें कि अपने राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूर्ण रूप से मूर्त देने का उचित समय। राजनीतिक मेढकों के टर्र-टर्र कर इधर से उधर कूदने-फादने का एकदम सही वक्त है। मौसम वैज्ञानिक बनने का शुभ अवसर है।
सब जानते हैं कि वृक्षों की पत्तियां पतझड़ में झड़ती हैं। अर्थात‍् अपने तने से अलग होती हैं। अलग होना नियति है। लेकिन राजनीति में अलग होना व्यक्तिगत होता है। बस सार्वजनिक मंचों से उद्घोष किया जाता है। मीडिया में पहुरा बांटा जाता है। अपनों की बेरुखी और फलाने की नीतियां भाती हैं। चुनाव नजदीक आते ही दलों में पतझड़ होने लगता है। इसको रोकना किसी भी दल के बस की बात नहीं। सभी दल खुशी-खुशी दूसरे की पत्तियां इकट्ठा कर अघाते हैं और शेखी बघारते हैं। वैसे पतझड़ का मौसम अवसर है। किसी-किसी को यह भी नहीं मयस्सर है।
राजनीति के सभी पत्ते चिघाड़ते हैं कि ‘बड़े बेआबरू होकर तेरे कुंचे से हम निकले।’ सभी पत्ते जैसे ताश में इक्का नहीं होते। वैसे ही राजनीति के पत्तों में भी सभी इक्का नहीं बनते हैं। राजनीतिक पतझड़ की खबर से दल हिल जाते हैं। यह भूकंप आने जैसा ही होता है। भूकंप त्रासदी देता है। इससे दलों को उबरने में वक्त लगता है। कभी-कभी पत्ते दूसरे दल में झड़कर सूख जाते हैं। वहां उचित रख-रखाव नहीं होता है। अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। खेत में खाद-पानी जरूरी है... वैसे दलों को भी पतझड़ में गिरे पत्तों की आवश्यकता होती है।
चुनावी बयार बिलकुल वसंती बयार है। इसी का असर है और पतझड़ का सफर है। सभी पत्ते सुनहरा भावी भविष्य देखते हैं। अपनी गोटी लाल करना चाहते हैं। इसीलिए गहरे समुद्र में गोते लगाते हैं और मोती पाते हैं। राजनीति में बंदर रहने पर मामा बनाया जाता है। छछूंदर माननीय बन कुर्सी पाता है। यह राजनीति है प्यारे पतझड़ में गिरना पड़ता है। जो जितना गिरता है, वह उतना ही उठता है। कल खूब निखरता है। जो अवसर को खोता है, वह बिलकुल खोटा है और बिखरता है। लो पतझड़ का मौसम आ गया... आओ नीचे गिरते हैं। अपनी अंतर्रात्मा बहरी कर करो तो हरी-हरी जेब भरो। हर चुनाव में पतझड़ होता है। नफा-नुकसान का कायदा जानकर फातिया पढ़ता है। अपना भावी भविष्य गढ़ता है। कुर्सी चली गई तो, सिद्धांत बदल लिए हुजूर, उस दल में शामिल होकर मंत्री बने हुजूर। जब दल-बदली राजनीति हो रही इससे गंदली। पतझड़ में गिरते पत्ते बोले—फलाने दल के अलाकमान की नीतियों से प्रभावित हूं। मैं माननीय बनने के लिए संभावित हूं।

Advertisement

Advertisement
Advertisement
Advertisement
×