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सधी हुई चाल चल रहे हैं हेमंत सोरेन

07:19 AM Jan 05, 2024 IST

चेतनादित्य आलोक

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प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से भेजे गए समन के मद्देनजर झारखंड के राजनीतिक गलियारों में यह कयास लगाया जा रहा है कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की तरह ही इस बार झारखंड में हेमंत सोरेन भी पत्नी कल्पना सोरेन को राजनीतिक विरासत सौंप सकते हैं।
दरअसल, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को प्रवर्तन निदेशालय की ओर से सातवीं बार भेजे गए समन को लेकर झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेताओं समेत आईएनडीआईए गठबंधन के तमाम राजनीतिक दलों के बीच झारखंड सरकार के भविष्य को लेकर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। यही कारण है कि कांग्रेस के राज्य विधायक दल ने भी आनन-फानन में तीन जनवरी को एक बैठक आहूत की, जिसमें राज्य के चारों मंत्रियों समेत 13 विधायक तथा राज्य कांग्रेस के प्रभारी गुलाम अहमद मीर ने भी भाग लिया। हालांकि, कांग्रेस की ओर से मीर ने बैठक को लेकर मीडिया से इतना ही कहा कि विधायकों के साथ बैठक काफी अच्छी रही।
देखा जाए तो कांग्रेस की यह बैठक वास्तव में अपने विधायकों की नब्ज टटोलने की एक कोशिश भर थी। दरअसल, कांग्रेस पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को यह डर सता रहा है कि कहीं संकट की घड़ी में उनके विधायक टूट न जाएं। इसीलिए कांग्रेस के आलाकमान ने राज्य कांग्रेस के प्रभारी मीर को रांची भेजकर विधायकों को एकजुट रखने के लिए जरूरी कदम उठाए जाने की बात कही होगी। इस बात में वजन इसलिए भी है, क्योंकि झारखंड में आईएनडीआईए गठबंधन के भीतर यदि सबसे अधिक खतरा किसी पार्टी के टूटने का है तो वह कांग्रेस ही है, क्योंकि संकट की घड़ी आने पर सबसे पहले कांग्रेसी विधायक ही इधर-से-उधर होते पाए गए हैं। इससे पहले भी एक बार झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार के गिरने की खबर फैली थी, जब राजनीतिक गलियारों में यह बात खूब उछली थी कि कई कांग्रेसी विधायक भाजपा के कुछ केंद्रीय एवं स्थानीय नेताओं के संपर्क में लगातार बने हुए हैं। उस समय कांग्रेसी विधायकों की आलाकमान से नाराजगी उनके टूटने की वजह बताई जा रही थी। तब पार्टी को तोड़कर भाजपा में शामिल होने के कथित आरोपी विधायकों का बंगाल कनेक्शन खुलकर सामने आया था। शायद इसीलिए कांग्रेस पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व झारखंड सरकार पर आने वाले संकट को भांपकर पहले ही अपनी तैयारी पूरी कर लेना चाहता था।
उधर झामुमो के भीतर ईडी की ओर से मुख्यमंत्री सोरेन को भेजे गए समन को लेकर अलग ही भय का माहौल बना हुआ है, क्योंकि केंद्रीय एजेंसी की ओर से उन्हें सातवीं बार समन भेजा गया था, जिसे आखिरी समन बताया जा रहा है। हालांकि उसे षड्यंत्र का हिस्सा बताते हुए मुख्यमंत्री इस बार भी ईडी के समक्ष उपस्थित नहीं हुए और उन्होंने समन का गोल-मोल जवाब भेज दिया। देखा जाए तो ईडी को जवाब भेजकर उन्होंने खानापूर्ति भले ही कर ली हो, लेकिन वे भी जानते हैं कि उनके ऊपर ईडी की तलवार हर वक्त लटक रही है, जिससे अब उनका बचना बेहद कठिन ही नहीं, बल्कि असंभव प्रतीत होने लगा है। इसका प्रमुख कारण इस मामले में ईडी का वह अल्टीमेटम है, जो एजेंसी ने मुख्यमंत्री को समन के साथ भेजा था। उसमें एजेंसी ने मुख्यमंत्री से साफ-साफ कहा था कि या तो पूछताछ के लिए वे स्वयं उपस्थित हों अथवा केंद्रीय एजेंसी को स्थान और तिथि बताएं, ताकि उनसे पूछताछ की जा सके। बहरहाल, अब इस मामले में यह संभावना जताई जा रही है कि केंद्रीय एजेंसी वैधानिक प्रक्रियाएं अपनाकर पूछताछ करने के लिए मुख्यमंत्री को हिरासत में ले सकती है। संभव है कि विपक्ष के नेता हेमंत सोरेन के इस कदम को मूर्खतापूर्ण मानने की गलती कर दें, लेकिन सच तो यह है कि गिरफ्तारी अथवा ईडी द्वारा हिरासत में लिए जाने की स्थिति में सोरेन जनता के बीच स्वयं को पीड़ित (विक्टिम) दिखाकर आगे की राजनीति साधने की तैयारी में हैं।
यही नहीं, हर स्थिति में वे राज्य का सिंहासन अपने ही किसी करीबी (शायद पत्नी) के पास रखना चाहते हैं। तभी तो तीन जनवरी को आनन-फानन में आईएनडीआईए गठबंधन के तमाम सहयोगी दलों के विधायकों के साथ मुख्यमंत्री आवास में बैठक कर उन्हें रांची से दूर जाने से मना करते हुए यह कहा था कि फिलहाल वे उतनी ही दूरी पर रहें कि जरूरत पड़ने पर तीन घंटे के भीतर मुख्यमंत्री आवास तक पहुंच सकें। भाजपा विधायक दल के नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री बाबुलाल मरांडी ने भी हेमंत सोरेन पर हमला करते हुए विधायकों को बरगलाने का आरोप लगाया है।
बहरहाल, पल-पल बदलते राजनीतिक घटनाक्रमों के बीच हेमंत सोरेन की बेहद सधी चालों पर यदि गौर किया जाए तो मालूम होता है कि मुख्यमंत्री फिलहाल अपने पत्ते खोलने वाले नहीं हैं, बल्कि वे ‘वेट एण्ड वॉच’ की रणनीति पर चलते हुए ईडी के अगले कदम पर नजर बनाए हुए हैं। तात्पर्य यह कि झारखंड में राजनीतिक ऊहापोह की स्थिति अभी बनी रहेगी।

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