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रिश्तों को ऊंचाई

11:36 AM Jun 24, 2023 IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका की हालिया राजकीय यात्रा को इस मायने में महत्वपूर्ण माना जा रहा है कि इससे उद्योग व व्यापारिक रिश्तों को नये आयाम मिले हैं। दोनों देशों को एक-दूसरे की जरूरत का पता इस बात से चलता है कि पिछले एक दशक में दोनों देशों का व्यापार दुगना और चीन से ज्यादा हो गया है। जो न केवल दोनों देशों बल्कि वैश्विक आर्थिकी के भी अनुकूल है। दरअसल, अमेरिकी मदद से दोस्त से दानव बन अमेरिका को चुनौती दे रहे चीन का विकल्प अमेरिका भारत के रूप में देखता है। यही वजह है कि कुछ मतभेदों के बावजूद अमेरिका भारत को एक भरोसेमंद पार्टनर के रूप में देखता है। इस यात्रा को इस नजरिये से भी कामयाब माना जा सकता है कि जनरल इलेक्ट्रिक तथा हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के मध्य भारत में एफ 414 जेट इंजन निर्माण को लेकर समझौता अंजाम तक पहुंचा है। इन इंजनों का इस्तेमाल स्वदेशी व महत्वाकांक्षी तेजस युद्धक विमानों में किया जा सकेगा। वहीं चीन व पाक सीमा की चौकसी के लिये उन्नत किस्म के ड्रोन हासिल करने के लिये जनरल एटॉमिक्स के साथ करार पर हस्ताक्षर हुए हैं। निस्संदेह, मिसाइल ले जाने में सक्षम इन ड्रोन से चीन से लगती सीमा की सुरक्षा चुनौतियों का मुकाबला किया जा सकेगा। इसके अलावा अन्य महत्वपूर्ण समझौता सेमीकंडक्टर संयोजन व टेस्टिंग सुविधा को लेकर होना है, जिसमें अमेरिकी कंपनी सवा आठ सौ मिलियन डॉलर का निवेश करेगी। निस्संदेह, ये समझौते दोनों देशों के आर्थिक संबंधों को नये आयाम देंगे। साथ ही भारत आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ेगा और रोजगार के तमाम नये अवसर सृजित किये जा सकेंगे। प्रधानमंत्री से अमेरिका यात्रा के दौरान बड़ी संख्या में अमेरिकी कारोबारियों, दुनिया की कई नामी कंपनियों के सीईओ की मुलाकात बताती है कि अमेरिका भारत को बड़े व्यापारिक साझेदार के रूप में देखता है। आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ इस यात्रा को दोनों देशों के संबंधों की यात्रा का मील का पत्थर बता रहे हैं। जिससे तकनीकी साझेदारी को नये आयाम मिलेंगे।

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वैसे अमेरिका एक विशुद्ध व्यापारी देश है और अपने आर्थिक हितों को लेकर किसी तरह का समझौता नहीं कर सकता है। ऐसे वक्त में जब अमेरिका में यह धारणा बलवती हुई है कि अमेरिका की मदद से ही चीन दुनिया में नंबर एक निर्यातक देश बना है। यानी दूसरे शब्दों में कहें तो अमेरिका के लिये चुनौती बन गया है। अमेरिका के एक वर्ग में यह चिंता है कि कहीं भारत भी अमेरिका के लिये चुनौती न बन जाये। हकीकत यह है कि भारत की हमेशा से नीति घरेलू विकास को तरजीह देने की रही है। यह स्थिति कम से कम आने वाले कुछ दशकों में बदलती नजर नहीं आ रही है। दूसरे, भारत एक लोकतांत्रिक देश है और लोकतांत्रिक मूल्यों में सदा से विश्वास करता रहा है। वैसे यह भी हकीकत है कि उथल-पुथल के दौर से गुजर रही वैश्विक व्यवस्था में अमेरिका भरोसेमंद साथियों की तलाश में है। दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले देश भारत से ज्यादा मुफीद देश कोई दूसरा हो ही नहीं सकता जो अमेरिका के आर्थिक हितों को साधने में सहायक हो। देश में तेजी से हो रहे विकास का ही परिणाम है कि भारत आज ब्रिटेन को पछाड़कर पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। ऐसे में विश्वास जताया जा रहा है कि कई तरह के मतभेदों के बावजूद दोनों देशों के कारोबारी रिश्तों को नये आयाम मिलेंगे। दरअसल, दोनों देश अपने आर्थिक व राजनीतिक हितों को लेकर संरक्षणवाद का सहारा लेते रहे हैं। इसके बावजूद विश्वास जताया जा रहा है कि दोनों देश किसी सीमा तक विवादों को टालने में सक्षम हो सकते हैं। इसके बावजूद कई अंतर्राष्ट्रीय मामलों में नीतियों को लेकर दोनों देशों में कतिपय मामलों में मतभेद रहे हैं। बहरहाल, इसे एक नई शुरुआत के रूप में देखा जाना चाहिए। वह भी तब जब हम दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश हैं और बेरोजगारी की दर एक चुनौती बनी हुई है।

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