मुखर वोटर पर भारी ‘खामोशी’
दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 8 अक्तूबर
हरियाणा विधानसभा के चुनावी नतीजों से एक बात तो साफ हुई कि ‘मुखर’ मतदाताओं पर ‘खामोशी’ हावी हो गयी। गैर-जाट वोटर कांग्रेस के खिलाफ रहे। आलम यह है कि जाट बाहुल्य सीटों पर भी कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा है। यानी गैर जाट वोटर ने खामोशी से अपना काम किया। वहीं, मोटे तौर पर कांग्रेस के साथ नज़र आ रहे जाट मतदाताओं का ‘मुखर’ होना ही कांग्रेस को महंगा पड़ गया।
सत्ता फिर से पाने वाली भाजपा ने टिकट आवंटन में सोशल इंजीनियरिंग का पूरा ध्यान रखा। जाट बाहुल्य जींद जिले के पांच हलकों में से एक भी जाट चेहरे को टिकट नहीं देकर भाजपा ने अपनी प्लानिंग भी साफ कर दी थी। परिणाम भी सामने है। यहां चार सीटों पर भाजपा जीती। ऐसा पहली बार है कि जींद में चारों ओर कमल खिला नज़र आ रहा है।
दरअसल, कांग्रेस ने अपने पुराने इतिहास को दोहराते हुए इस बार भी जाटों को रिझाने पर सबसे अधिक फोकस रखा। पार्टी ने 27 जाट चेहरे चुनावी मैदान में उतारे। इसके मुकाबले भाजपा ने केवल 16 जाट नेताओं को टिकट दिया था।
कांग्रेस ने एक राजपूत, दो बनियों और पांच ब्राह्मणों को टिकट दिया। वहीं भाजपा ने तीन राजूपत, पांच वैश्य और 11 ब्राह्मण चेहरे उतारे। भाजपा ने पिछड़ा वर्ग की भी कई जातियों को साधने की कोशिश की।
लोकसभा चुनावों में दस में से पांच सीटों पर जीत हासिल करने के बाद कांग्रेस अति आत्म-विश्वास में भी थी। कांग्रेसियों ने चुनावी मैनेजमेंट पर जोर देने के बजाय यह मान लिया कि ‘जनता जिता रही है।’ इसी अति उत्साह का नतीजा था कि मौजूदा विधायकों के खिलाफ ग्राउंड पर मौजूद एंटी-इन्कमबेंसी को भी कांग्रेस ने तवज्जो नहीं दी। कांग्रेस ने अपने सभी 28 मौजूदा विधायकों को एक झटके में टिकट दे दिए।
परिणामस्वरूप कांग्रेस के मौजूदा विधायकों में से पंद्रह चुनाव हार गए। वहीं भाजपा ने तो मंत्रियों तक के टिकट काटने में देरी नहीं की। कांग्रेस ने कई सीटों पर मजबूत चेहरों की अनदेखी की। कुछ टिकट नहीं मिलने पर वे बागी हो गए और उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर ताल ठोक दी। इन्हीं बागियों की वजह से कांग्रेस को कई सीटों पर हार भी मिली।
भाजपा ने कांग्रेस की इस गलती को अवसर के रूप में लिया। बागियों को अंदरखाने हवा दी गई। साथ ही प्रभावी प्रबंधन भी किया। बाढ़डा, उचाना कलां, पूंडरी सहित कई ऐसे हलके हैं, जहां बागियों ने कांग्रेस का खेल बिगाड़ा। यानी कांग्रेस ने बागियों से होने वाले नुकसान को भी हल्के में लिया।
कांग्रेस के 15 विधायक हारे
कांग्रेस के मौजूदा 28 में से पंद्रह विधायकों को हार का मुंह देखना पड़ा। इनमें कालका से प्रदीप चौधरी, रादौर से बिशन लाल सैनी, लाडवा से मेवा सिंह, असंध से शमशेर सिंह गोगी, इसराना से बलबीर सिंह वाल्मीकि, समालखा से धर्म सिंह छोक्कर, खरखौदा से जयवीर सिंह वाल्मीकि, सोनीपत से सुरेंद्र पंवार, सफीदों से सुभाष गांगोली, महेंद्रगढ़ से राव दान सिंह, रेवाड़ी से चिरंजीव राव, एनआईटी से नीरज शर्मा, बहादुरगढ़ से राजेंद्र सिंह जून व डबवाली से अमित सिहाग शामिल हैं।
सैलजा की बेरुखी व अनदेखी का भी असर पूर्व केंद्रीय मंत्री व सिरसा से सांसद कुमारी सैलजा की टिकट आवंटन में नहीं चलना और इसे भाजपा द्वारा दलितों के अपमान से जोड़ना भी कांग्रेस को अब महंगा पड़ता दिख रहा है। इसके साथ ही चुनाव के एेन मौके पर बेरुखी से बयान बाजी करना भी पार्टी काे महंगा प्ाड़ा प्रतीत होता है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 17 सीटों में से भाजपा 8 पर विजयी रही। स्पष्ट है कि लोकसभा चुनावों की तर्ज पर इस बार कांग्रेस को विधानसभा में दलित वोट बैंक का वह शेयर नहीं मिला, जिसकी उम्मीद की जा रही थी।
इस बार विधानसभा में 22 जाट विधायक
कई बरसों के बाद यह पहला मौका है जब विधानसभा में जाट विधायकों की संख्या 22 होगी। पिछले चार-पांच चुनावों को अगर देखें तो औसतन 26 से 27 जाट विधायक बनते रहे हैं। इस बार के चुनावों में कांग्रेस के 27 जाट उम्मीदवारों में से 12 और भाजपा के 16 में से छह चुनाव जीतने में कामयाब रहे। वहीं इनेलो के दो और दो ही निर्दलीय जाट विधायक बने हैं। सबसे हैरानी की बात यह है कि दादरी जिला के बाढड़ा हलके में जाटों की आबादी 62 प्रतिशत से भी अधिक है। यहां से भी भाजपा के उमेद पातूवास ने जीत हासिल करके स्पष्ट कर दिया है कि जाट वोटर भाजपा के साथ भी आए हैं।