For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.

सेहत सुरक्षा-कवच

08:03 AM Apr 24, 2024 IST
सेहत सुरक्षा कवच
Advertisement

भारत जैसे देश में जहां सेवानिवृत्त लोगों व बुजुर्गों के लिये पश्चिमी देशों की तरह चिकित्सा सुविधाओं का कवच नहीं है, वहां लोगों की अंतिम उम्मीद खुद खरीदी गई बीमा पॉलिसियों पर टिक जाती है। लेकिन बीमा कंपनियों के निरंकुश व्यवहार और उपचार के बाद बिलों के भुगतान में किंतु-परंतु के चलते वृद्धों को यह भरोसा नहीं होता कि बीमा कंपनियां उनके उपचार का पूरा पैसा उपलब्ध करा देंगी। बहरहाल, स्वास्थ्य सेवा तंत्र को अधिक समावेशी और सर्वसुलभ बनाने की दिशा में भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण यानी आईआरडीएआई ने स्वास्थ्य बीमा खरीदने वाले व्यक्तियों के लिये 65 वर्ष की आयु सीमा को हटा दिया है। हाल ही में एक अधिसूचना में बीमा नियामक ने बीमाकर्ताओं को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि वे सभी आयु समूहों के लिये उपयोगी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी पेश करें। अकसर देखा गया है कि बीमा कंपनियां व एजेंट अधिक उम्र वाले लोगों को तब जीवन रक्षक पॉलिसी देने से मना कर देते हैं जब उनको इसकी जरूरत होती है। इतनी ही नहीं कंपनी के हित में बनायी गई पुरानी नीतियों के आधार पर कई दावों को खारिज कर दिया जाता है। बीमा नियामक द्वारा बीमा कंपनियों को पहले से निर्धारित स्थितियों के आधार पर दावों को खारिज करने से रोका गया है। बीमा नियामक ने कहा है कि बीमाकर्ता अब कैंसर, हृदय रोग व गुर्दे के काम न करने पर, एड्स जैसी गंभीर चिकित्सा स्थितियों वाले व्यक्तियों को पॉलिसी जारी करने से इनकार नहीं कर सकते। निश्चित रूप से यह तार्किक स्थिति है कि सेवानिवृत्ति के बाद आय के साधन सिमटने, शरीर द्वारा साथ न देने व अपनों का साथ छूटने से लाचार व्यक्ति को उपचार के लिये अब चिकित्सा बीमा कवच मिल सकेगा। निस्संदेह, इस तरह के कई गंभीर रोगों से ग्रस्त लोग चिकित्सा बीमा न मिल पाने की स्थिति में गरीबी की दलदल में फंस जाते हैं। कोरोना संकट के दौरान कई परिवारों के गरीबी के दुश्चक्र में फंसने के मामले सामने आए हैं।
निश्चित रूप से बीमा नियामक की यह पहल वक्त की जरूरत के हिसाब से एक कल्याणकारी व्यवस्था की तरफ बढ़ा कदम है। यदि बुजुर्गों को बीमा सुविधा मिलने लगेगी तो वे अप्रत्याशित चिकित्सा खर्चों के झटकों को झेलने के लिये पहले से ही बेहतर तैयारी कर सकते हैं। निश्चित रूप से यह सुविधा उस देश के लिये बदलावकारी हो सकती है जहां कि युवा आबादी बुजुर्ग आबादी की दिशा में बढ़ रही है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के अनुसार वर्ष 2050 तक वरिष्ठ नागरिकों की संख्या देश की कुल आबादी की बीस प्रतिशत से अधिक होने का अनुमान है। ऐसे में बेहतर जीवन प्रत्याशा हेतु और महिलाओं की सेहत हेतु स्वास्थ्य बीमा का खासा प्रभाव हो सकता है। लेकिन इस बात में दो राय नहीं कि बीमा उत्पादों को उपभोक्ता-अनुकूल बनाने की सख्त जरूरत है। दरअसल, आम उपभोक्ता शब्दजाल और बीमा पॉलिसियों की जटिलताओं के कारण बीमा उत्पादों को खरीदने से संकोच करते हैं। कई अस्पष्टताएं व किंतु-परंतु पॉलिसीधारक के मन में संदेह और अनिश्चितता उत्पन्न करते हैं। वहीं दूसरी तरफ लाभों व जोखिमों के बारे में गलत सूचना या अपर्याप्त जानकारी उपभोक्ताओं के शोषण व परेशानी का सबब बनती है। इसलिए जरूरी है कि ग्राहकों का विश्वास हासिल करने के लिये पारदर्शी व परेशानी मुक्त दावा निपटान की व्यवस्था हो। इसके साथ ही बीमा भुगतान से जुड़ी धांधलियों पर अंकुश लगाने के लिए मजबूत तंत्र बनाया जाए। वर्ष 2023 में किये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार लगभग साठ फीसदी भारतीय बीमा कंपनियों में धोखाधड़ी के मामलों में तेजी से वृद्धि देखी गई है। खासकर जीवन और स्वास्थ्य बीमा के क्षेत्र में। जिसके नियमन के लिये- झूठे दावे करने, प्रदान की गई सेवाओं के लिये शुल्क बढ़ाने और चिकित्सकीय रूप से अनावश्यक सेवाओं के लिये बिलिंग करना जैसी अनियमितताओं पर अंकुश लगाने की जरूरत है। जिसके लिये एक कुशल निगरानी तंत्र बनाना भी आवश्यक है। वहीं झूठे दावे करना, प्रदान की गई सेवाओं के लिए शुल्क बढ़ाना और चिकित्सकीय रूप से अनावश्यक सेवाओं के लिए बिलिंग करना जैसी गड़बड़ियों पर अंकुश लगाने के लिए सख्त निगरानी की आवश्यकता है।

Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement
×