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पोषक तत्वों पर निर्भर है स्वास्थ्य

09:06 AM Feb 14, 2024 IST

मिट्टी की गुणवत्ता के साथ ही हमारा स्वास्थ्य जुड़ा है। क्योंकि जमीन में मौजूद पोषक तत्व ही उसमें उगने वाली फसलों की उपज में आते हैं। ऐसे में जमीन में उर्वरकों व अन्य खुराक का संतुलित इस्तेमाल किया जाना चाहिये। भोजन के रूप में वही न्यूट्रिएंट हमारे शरीर को प्राप्त होंगे। भारत सरकार के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. एम मोहंती के मुताबिक, अगर जमीन में किसी भी माइक्रो न्यूट्रिएंट की कमी है तो उसका असर कृषि उपज पर भी पड़ेगा। इसलिए रासायनिक उर्वरकों का संतुलित इस्तेमाल करें। आप जहां खेती करते हैं उस खेत में जिस चीज की कमी है केवल उसे ही डालिए। यह भी ध्यान रखने की बात है कि हर तरह की मिट्टी में एक ही तरह का ट्रीटमेंट काम नहीं करता। मिट्टी किस प्रकार की है उसके हिसाब से उसका ट्रीटमेंट होना चाहिए।

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शरीर में आयरन की कमी

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फूड टेक्नोलॉजी एंटरप्रेन्योरशिप एंड मैनेजमेंट (NIFTEM) की प्रोफेसर दीप्ति गुलाटी कहती हैं कि देश के 67 फीसदी बच्चों और 57 फीसदी महिलाओं में खून की कमी है, क्योंकि हमारे भोजन में आयरन की कमी है।

मिट्टी में जिंक और सल्फर की भारी कमी

भारत जैसे कृषि प्रधान देश में भी उर्वरकों का संतुलित इस्तेमाल नहीं हो रहा है। रासायनिक खादों के इस्तेमाल के असंतुलन ने जमीन में पोषक तत्वों की कमी कर दी है। इस समय देश की 40 फीसदी मिट्टी में जिंक की कमी है। जबकि 80 फीसदी मिट्टी में सल्फर की कमी है। इस समय देश में सालाना 12 से 13 लाख टन जिंक की आवश्यकता है जबकि 2 लाख टन का ही इस्तेमाल हो रहा है। इसकी जगह पर नाइट्रोजन का इस्तेमाल ज्यादा हो रहा है।

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उपज में कम हो रहे माइक्रो न्यूट्रिएंट

आज़ादी के वक्त देश में जो खाद्यान का उत्पादन 50 मिलियन टन था अब बढ़कर 325 मिलियन टन हो गया है। इसके बावजूद पोषण सुरक्षा की चुनौती हमारे सामने खड़ी है। क्योंकि कृषि उत्पादों की गुणवत्ता घट रही है। अधिकांश अनाजों, दालों और फलों-सब्जियों में प्रोटीन और सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा कम हो रही है। जबकि वसा की मात्रा बढ़ रही है। सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से होने वाली हानि भारत की जीडीपी का एक फीसदी है। किसान नाइट्रोजन और फास्फोरस का ही अधिक इस्तेमाल करते हैं क्योंकि इसी पर सब्सिडी है। खाद इस्तेमाल के इस पैटर्न को बदलने की जरूरत है।

यूरिया के अंधाधुंध इस्तेमाल से बढ़ी दिक्कत

वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. आरएस बाना कहते हैं कि खेती को 17 पोषक तत्वों की जरूरत होती है। लेकिन दुर्भाग्य से हम नाइट्रोजन और फास्फोरस का ही इस्तेमाल ज्यादा करते हैं। इससे उत्पादन पर बुरा असर पड़ रहा है। किसानों को जब भी उत्पादन कम लगता है तो वे खेती में और नाइट्रोजन यानी यूरिया झोंक देते हैं। एक तरह से जमीन को यूरिया का नशा दिया है।
एमएसपी कमेटी और क्रॉप डायवर्सिफिकेशन कमेटी का मानना है कि खेती में सिर्फ नाइट्रोजन और फास्फोरस डालने से फसलों की उत्पादकता कम हुई है। सॉयल हेल्थ, प्लांट हेल्थ, एनिमल हेल्थ और ह्यूमन हेल्थ सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं इसलिए क्रॉप डायवर्सिफिकेशन आज देश की जरूरत है।

-लेखक जाने-माने होमियोपैथिक चिकित्सक हैं।

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