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वो समय के कद्रदान थे, पर वक्त ने उन्हें धोखा दे दिया

05:00 AM Jul 16, 2025 IST
वो समय के कद्रदान थे  पर वक्त ने उन्हें धोखा दे दिया
जालंधर के ब्यास गांव में स्थित फौजा सिंह (इनसेट :फाइल फोटो) का घर । -मल्कीयत सिंह
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आकांक्षा एन. भारद्वाज/ ट्रिन्यू
जालंधर, 15 जुलाई
फौजा सिंह ने हमेशा समय की कीमत समझी थी, न केवल उम्र को चुनौती देने वाले मैराथन धावक के रूप में, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जिसने हर पल को संजोया। निधन से एक दिन पहले, 114 वर्षीय फौजा सिंह ने एक शांत मुस्कान के साथ अपने सबसे छोटे बेटे हरविंदर सिंह को अपनी प्यारी राडो घड़ी दिखाई थी। अगले दिन उनकी अचानक मृत्यु के बाद, डॉक्टर ने वही घड़ी हरविंदर के हाथों में रख दी। पिता के इस तरह जाने से व्यथित हरविंदर ने कांपती आवाज में कहा, ‘उन्होंने मुझे इतने प्यार से घड़ी दिखायी थी, मैंने कभी नहीं सोचा था कि यह आखिरी बार होगा जब मैं उन्हें इस तरह देखूंगा।’
फौजा सिंह का सोमवार को जालंधर के ब्यास गांव में एक घातक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया था। गमगीन हरविंदर ने कहा, अगर उनकी मौत स्वाभाविक रूप से या किसी बीमारी के बाद हुई होती, तो शायद हमें इतनी पीड़ा नहीं होती। फौजा सिंह अपने बेटे हरविंदर, बहू भानजीत कौर और एक पोती के साथ रहते थे। उनका बड़ा बेटा और दो बेटियां विदेश में रहती हैं, जबकि एक अन्य बेटा और बेटी का निधन हो चुका है।

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जालंधर के ब्यास गांव में स्थित फौजा सिंह द्वारा जीते गये ट्रॉफी और मेडल। -मल्कीयत सिंह

अपनी उम्र के बावजूद, फौजा सिंह की स्टाइल की समझ बहुत अच्छी थी। हरविंदर ने याद किया, उन्हें ब्रांडेड चीजें बहुत पसंद थीं। जूते, कपड़े और यहां तक कि उनकी जुराबें भी उनके पहनावे से मेल खाती थीं। परिवार के करीबी दोस्त बलबीर सिंह रोजाना फौजा सिंह से मिलने जाते थे। दुर्घटना के बाद सबसे पहले बलबीर ने ही उन्हें देखा। उन्होंने बताया, ‘वह होश में थे, कुछ कहना चाह रहे थे, लेकिन मैं समझ नहीं पाया।’ भानजीत कौर ने बताया कि उनके ससुर को दवाइयां और इंजेक्शन पसंद नहीं थे। बीमार होने पर वे खुद ठीक हो जाते थे। हमने कभी नहीं सोचा था कि वे हमें इस तरह छोड़ जाएंगे।

ट्रिब्यून से बात करते फौजा सिंह के सुपुत्र हरविंदर सिंह।

छोटी-छोटी खुशियां भी उनके साथ चली गयीं
फौजा सिंह के घर के आंगन में आम बिखरे पड़े थे। जो घर कभी गुरदास मान के ‘उमरां च की रख्या...’ और ‘बैके देख जवाना...’ जैसे गाने गाते हुए उनकी आवाज से गुलजार रहता था, अब खामोश था। हरविंदर ने अपने पिता को याद करते हुए कहा, ‘वे एक साथ आठ-दस आम खा जाते थे। उन्हें कोई नहीं रोक सकता था। एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरता था जब वे अलसी की पिन्नी न खाते हों। वो छोटी-छोटी खुशियां भी उनके साथ चली गईं।’
याद में बनेगा स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स
राज्यसभा सांसद विक्रमजीत सिंह साहनी ने फौजा सिंह की स्मृति में एक खेल परिसर स्थापित करने के लिए 50 लाख रुपये के अनुदान की घोषणा की। उन्होंने बताया कि जालंधर के स्पोर्ट्स कॉलेज में 400 मीटर के एथलेटिक्स ट्रैक का नाम फौजा सिंह पर रखा जाएगा।

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