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हरियाणवी लोक साहित्य की अपनी अलग पहचान : नरेश कौशल

07:02 AM Jul 14, 2024 IST
हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी द्वारा शनिवार को आयोजित कार्यशाला में मंच पर आसीन वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. पूर्णचंद शर्मा, हिंदी एवं हरियाणवी प्रकोष्ठ के निदेशक डॉ. धर्मदेव विद्यार्थी, दैनिक ट्रिब्यून के संपादक नरेश कौशल और अकादमी के कार्यकारी उपाध्यक्ष डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री। -हप्र
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एस अग्िनहोत्री/हप्र
पंचकूला, 13 जुलाई
हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के महाराजा दाहिर सेन सभागार में सूर्य कवि पंडित लखमीचंद जयंती के उपलक्ष्य में शनिवार को हरियाणवी भाषा पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के आरम्भ में मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार भारत भूषण भारती, दैनिक टि्रब्यून के संपादक नरेश कौशल, अकादमी के कार्यकारी उपाध्यक्ष डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री, प्रसिद्ध हरियाणवी साहित्यकार डॉ. पूर्णचंद शर्मा, हिंदी एवं हरियाणवी प्रकोष्ठ के निदेशक डॉ. धर्मदेव विद्यार्थी, उर्दू प्रकोष्ठ के निदेशक डॉ. चन्द्र त्रिखा, संस्कृत प्रकोष्ठ के निदेशक डॉ. सीडीएस कौशल ने सरस्वती प्रतिमा व पंडित लखमीचंद की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर कार्यशाला का आरम्भ किया।

कार्यक्रम में उपस्थित गणमान्य व्यक्ति। -हप्र

कार्यशाला में आमंत्रित विशेष अतिथि दैनिक ट्रिब्यून के संपादक नरेश कौशल ने कहा कि हरियाणवी लोक साहित्य की अपनी अलग पहचान है। प्राचीन काल में संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश से गुजरती हुई हरियाणवी का जन्म हुआ। स्वतन्त्रता आन्दोलन में हरियाणवी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। भजनों, रागनियों के माध्यम से लोक गायकों ने जनता में जागृति पैदा की। दैनिक ट्रिब्यून हरियाणवी भाषा को विशेष संरक्षण प्रदान करता है।
अकादमी के कार्यकारी उपाध्यक्ष, डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि आज के समय में जिस भाषा की उपयोगिता बढ़ेगी वही भाषा जीवित रहेगी।
मुख्य वक्ता डॉ. पूर्णचंद शर्मा ने सुझाव दिया कि अकादमी द्वारा हरियाणवी संस्कृति को संरक्षित करने के लिए सचित्र शब्दकोश प्रकाशित किये जाने चाहिए। अकादमी द्वारा हरियाणवी लोक साहित्य पर शोधपरक ग्रंथ तैयार करवाए जाएं।
प्रसिद्ध हरियाणवी कवि सत्यवीर नाहड़िया, रेवाड़ी ने हरियाणवी लहजे में कविता पढ़ी- बोली या प्यारी सै,बोली या न्यारी सै, हिन्दी माई की या माई,या नानी म्हारी सै। प्रसिद्ध हरियाणवी विद्वान डॉ. रामफल चहल, रोहतक ने कहा कि लोक संस्कृति को बचाने के लिए हमें अपने रीति रिवाजों को जिन्दा रखना होगा। लोक गीतों को बचाना होगा। अपनी मातृ भाषा में रचनाएं प्रकाशित करनी होंगी।
डॉ. संतराम देशवाल, सोनीपत ने हरियाणवी भाषा के उत्थान के लिए कहा कि हरियाणवी का अलग प्रकोष्ठ होना चाहिए तथा हरियाणवी भाषा को राज्य भाषा घोषित किए जाने की जरूरत है।
डॉ. धर्मदेव विद्यार्थी, हिंदी एवं हरियाणवी प्रकोष्ठ के निदेशक ने हरियाणवी भाषा को समर्पित करते हुए कहा कि हरियाणवी की असली उड़ान अभी बाकी है,हमारे इरादों का इम्तिहान अभी बाकी है,अभी तो इकट्ठे हुए हैं मुट्ठी भर हरियाणवी, हरियाणा सारा इकट्ठा होना अभी बाकी है। अकादमी द्वारा मासिक पत्रिका हरिगंधा का आने वाला नवंबर अंक विशेष रूप से हरियाणवी भाषा को समर्पित रहेगा।
कार्यक्रम में सतपाल पराशर की पुस्तक सुरेखा (हरियाणवी दोहा छंद) का विमोचन किया गया। इस अवसर पर अकादमी द्वारा प्रकाशित प्रसिद्ध पुस्तक पंडित लखमीचंद ग्रंथावली मुख्य अतिथि को भेंट की गई। इसके अतिरिक्त डॉ. वीएम बैचेन, भिवानी, डॉ. मंजु लता, जींद ने भी अपने विचार प्रकट किए।
विचार गोष्ठी के समापन सत्र में डॉ. चन्द्र त्रिखा व डॉ. चितरंजन दयाल सिंह कौशल ने कार्यशाला में पधारे सभी विद्वानों,लेखकों का आभार जताया। कार्यक्रम में पंचकूला तथा चंडीगढ़ से भी साहित्यकारों ने भी शिरकत की। कार्यक्रम का संचालन डॉ. विजेन्द्र कुमार व सरोज दहिया, सोनीपत ने किया।

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पं. लखमीचंद जयंती के उपलक्ष्य में कार्यक्रम

बतौर मुख्य अतिथि हरियाणा के मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार भारत भूषण भारती ने कहा कि हरियाणवी लोक साहित्य में दादा लखमीचंद का नाम हमेशा अमर रहेगा। पंडित लखमीचंद ने अल्पायु में ही इतने लोक साहित्य की रचना की कि सदियों तक आने वाली पीढ़ी के लिए वह प्रेरणा स्रोत रहेंगे। उन्होंने पूरे हरियाणा से आमन्त्रित किए गए हिंदी व हरियाणवी के साहित्यकारों को मुख्यमंत्री निवास पर आमंत्रित करने का आश्वासन दिया।

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