हरियाणा राजभवन कभी था संयुक्त पंजाब के सीएम का आवास
दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 28 अक्तूबर
हरियाणा सरकार के मंत्रियों की चंडीगढ़ स्थित कोठियों के पुराने और दिलचस्प हैं किस्से। कुछ कोठियों के बारे में यह धारणा बन चुकी है कि इनमें रहने वाले मंत्री लगातार दूसरी बार विधानसभा नहीं पहुंच पाते। इससे भी रोचक पहलू यह है कि बहुत कम लोगों को यह पता है कि मौजूदा हरियाणा राजभवन संयुक्त पंजाब के समय मुख्यमंत्री का आवास हुआ करता था। इतना ही नहीं, 1962 की लड़ाई में इस कोठी को डिफेंस का सप्लाई स्टोर बनाया गया था और यहां से लद्दाख में सेना के पास असलाह सप्लाई किया गया था।
पहली नवंबर, 1966 को पंजाब से अलग होकर हरियाणा अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। हालांकि, पंजाब राजभवन में किसी तरह का बदलाव नहीं हुआ है। संयुक्त पंजाब के समय हरियाणा का मौजूदा राजभवन सीएम आवास होता था। हरियाणा के अलग राज्य बनने के बाद सीएम आवास को हरियाणा राजभवन बना दिया गया और सेक्टर-3 की कोठी नंबर-1 को हरियाणा के मुख्यमंत्री का आवास घोषित कर दिया गया।
संयुक्त पंजाब के समय कोठी नंबर-1 वरिष्ठ मंत्रियों को अलॉट होती थी। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा के स्व़ पिता चौ़ रणबीर सिंह हुड्डा जब संयुक्त पंजाब में सिंचाई और बिजली मंत्री थे तो उन्हें यह कोठी अलॉट हुई थी। इस कोठी में संयुक्त पंजाब के तत्कालीन वित्त मंत्री गोपीचंद भार्गव भी रहे। बाद में वे पंजाब के मुख्यमंत्री बने। सेक्टर-3 की कोठी नंबर-32 भी वरिष्ठ मंत्रियों को अलॉट होती रही।
मनोहर सरकार पार्ट-।। व नायब सरकार के पहले कार्यकाल में बिजली व जेल मंत्री रहे चौ़ रणजीत सिंह के पास यह कोठी थी। अब वे कोठी को खाली कर रहे हैं। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों भी राजस्व मंत्री होते हुए कोठी नंबर-32 में रहे। इतना ही नहीं, जब वे मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने सीएम आवास में रहने के बजाय इस कोठी को अपना आशियाना बनाया।
वे इस कोठी को अपने लिए शुभ मानते थे। उनके पोते व पंजाब सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे आदेश प्रताप सिंह कैरों का जन्म भी इसी कोठी में हुआ था। कोठी नंबर-32 के बारे में सेक्टर-2 की कोठी नंबर-48 के जैसी ही धारणा है। माना जाता है कि इन कोठियों में रहने वाले मंत्री लगातार दूसरी बार विधानसभा नहीं पहुंच पाते। 32 नंबर कोठी में लगातार पांच साल तक बतौर कैबिनेट मंत्री रहे चौ़ रणजीत सिंह इस बार रानियां से चुनाव हार गए। उनसे पहले मनोहर सरकार के पहले कार्यकाल में शिक्षा मंत्री रहे प्रो़ रामबिलास शर्मा इस कोठी में रहते थे। वे 2019 का चुनाव हार गए थे। इसी तरह हुड्डा सरकार में स्पीकर रहे हरमोहिंद्र सिंह चट्ठा, कैबिनेट मंत्री रहे पं. विनोद शर्मा, बंसीलाल सरकार में मनीराम गोदारा, चौ़ देवीलाल के पहले कार्यकाल में डॉ़ मंगलसेन, दूसरे कार्यकाल में चौ़ वीरेंद्र सिंह (नारनौंद वाले) भी इस कोठी में रहे। लेकिन अगला चुनाव वे भी हार गए। सेक्टर-2 की कोठी नंबर-48 में भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार में डिप्टी सीएम रहे दुष्यंत चौटाला रहते थे। इस बार वे उचाना कलां से चुनाव हार गए। वहीं, नायब सरकार के पहले कार्यकाल में निकाय मंत्री सुभाष सुधा को यह कोठी मिली थी, लेकिन वे भी इस बार विधानसभा नहीं पहुंच सके। मनोहर सरकार के पहले कार्यकाल में वित्त मंत्री रहे कैप्टन अभिमन्यु के पास यह कोठी थी। वे 2019 में चुनाव हार गए थे। वे इस बार भी नारनौंद से नहीं जीत सके। पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ़ बीरेंद्र सिंह भी हरियाणा के वित्त मंत्री रहते हुए इस कोठी में रहते थे। वे भी 2009 का चुनाव हार गए थे।
ब्यूरोक्रेट्स को रास आया बंगला नंबर-79
सेक्टर-7 स्थित बंगला (कोठी) नंबर-79 भी मंत्रियों के लिए शुभ नहीं माना जाता। हालांकि, जब से ब्यूरोक्रेट्स के पांव इस कोठी में पड़े हैं, यह उन्हें रास आ गई है। वर्तमान में सीएम नायब सैनी के मुख्य प्रधान सचिव राजेश खुल्लर इस कोठी में रह रहे हैं। उनसे पहले पूर्व सीएम मनोहर लाल के मुख्य प्रधान सचिव रहे डीएस ढेसी इसमें रहे। अधिकारियों के आने से पहले इस कोठी में रहने वाले अधिकांश मंत्रियों को अगली बार हार का सामना करना पड़ा। मंत्रियों ने कोठी में वास्तु के हिसाब से बदलाव किए और हवन-यज्ञ भी करवाए, लेकिन बात नहीं बनी। मनोहर सरकार के पहले कार्यकाल में परिवहन मंत्री कृष्ण लाल पंवार को यह कोठी अलॉट हुई और वे 2019 का चुनाव हार गए। 2005 में हुड्डा सरकार में शिक्षा मंत्री रहे फूलचंद मुलाना 2009 का चुनाव हार गए। हालांकि, वे 2014 तक इस कोठी में रहे। चूंकि हुड्डा सरकार ने उनकी एडजस्टमेंट कर दी थी। लेकिन 2014 के चुनाव में भी मुलाना को हार का ही मुंह देखना पड़ा। 1982 में कुलबीर सिंह को यह कोठी अलॉट हुई और वे अगला चुनाव हार गए। 1987 में बतौर कैबिनेट मंत्री सुषमा स्वराज इस कोठी में रहीं, लेकिन अगली बार वे विधानसभा नहीं पहुंच पाईं। 1996 में बहादुर सिंह और 1999 में रामबिलास इस कोठी में रहे। अगला चुनाव दोनों ही हार गए।