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Haryana News : 37 विधायकों के साथ हरियाणा में कांग्रेस बना सकती है शैडो कैबिनेट!

10:14 AM Nov 17, 2024 IST
haryana news   37 विधायकों के साथ हरियाणा में कांग्रेस बना सकती है शैडो कैबिनेट
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दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 16 नवंबर
हरियाणा में प्रमुख विपक्षी दल – कांग्रेस के नेता अगर चाहेंगे तो प्रदेश की नायब कैबिनेट के समानांतर ‘शैडो कैबिनेट’ बना सकते हैं। प्रदेश के इतिहास में पहले चुनाव यानी 1967 के बाद से यह पहला मौका है, जब विपक्ष के पास विधायकों की संख्या 37 है। इससे पहले विपक्ष इतना मजबूत कभी नहीं रहा। शैडो कैबिनेट का गठन सरकार के कामकाज पर नजर रखने और विपक्ष की रचनात्मक भूमिका के लिए किया जा सकता है।
इससे पहले 2000 में कांग्रेस ने भूतपूर्व मुख्यमंत्री चौ़ भजनलाल के नेतृत्व में उस समय की चौटाला सरकार के खिलाफ शैडो कैबिनेट बनाई थी। हालांकि कांग्रेस का यह प्रयोग बुरी तरह से फ्लॉप रहा था। 2014 में भाजपा जब पहली बार 47 विधायकों के साथ पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई तो उसके बाद से 2024 तक दो से तीन बार कांग्रेस द्वारा मनोहर सरकार के खिलाफ विधानसभा के बाहर समानांतर सत्र चलाया गया। इससे पहले हुड्डा सरकार के समय इनेलो द्वारा भी ऐसा किया जा चुका है। लेकिन शैडो कैबिनेट का गठन भजनलाल के समय ही हुआ था। नब्बे सदस्यों वाली विधानसभा के आमचुनाव इस बार 5 अक्तूबर को हुए। 8 अक्तूबर को नतीजे घोषित किए गए और भाजपा 48 सीटों के पूर्ण बहुमत के साथ तीसरी बार सरकार बनाने में कामयाब रही। विधानसभा में सत्तारूढ़ भाजपा सबसे बड़ा दल है। तीन निर्दलीय विधायकों – सावित्री जिंदल, राजेश जून व देवेंद्र कादियान का समर्थन भी भाजपा के साथ है। ऐसे में नायब सिंह सैनी ने 51 विधायकों के समर्थन के साथ सरकार बनाई है।
कांग्रेस अभी तक विधायक दल का नेता नहीं चुन पाई है। विधानसभा का शीतकालीन सत्र इसी वजह से बिना नेता प्रतिपक्ष के चल रहा है। सीएलपी लीडर चुने जाने वाले विधायक को स्पीकर हरविंद्र सिंह कल्याण नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देंगे। नेता प्रतिपक्ष को कैबिनेट मंत्री के समान दर्जा, वेतन-भत्ते एवं अन्य सरकारी सुविधाएं हासिल होंगी। 2019 से लेकर 2024 तक पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा नेता प्रतिपक्ष रहे। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के अधिवक्ता एवं विधायी मामलों के जानकार हेमंत कुमार का कहना है कि 37 विधायकों वाली कांग्रेस ‘शैडो कैबिनेट’ का गठन कर सकती है। इसके जरिये सरकार के कामकाज पर पैनी नजर रखी जा सकती है। लगभग 24 साल पहले अप्रैल-2000 में 10वीं विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे चौ़ भजनलाल ने शैडो कैबिनेट का प्रयोग किया था। उस समय ओपी चौटाला के नेतृत्व में राज्य में इनेलो-भाजपा गठबंधन की सरकार थी।
गठबंधन सरकार के कामकाज पर सदन के अंदर और बाहर नजर रखने के लिए भजनलाल द्वारा बनाई गई शैडो कैबिनेट में उस समय कांग्रेस के सभी 21 विधायकों को शामिल किया था। भजनलाल ने नेता प्रतिपक्ष रहते हुए शैडो कैबिनेट में सामान्य प्रशासन, सीआईडी, विजिलेंस, कार्मिक एवं प्रशिक्षण तथा न्याय प्रशासन जैसे अहम विभाग अपने पास रखे थे। आमतौर पर प्रदेश में मुख्यमंत्री के पास ही ये विभाग रहते हैं।

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भजन लाल की शैडो कैबिनेट में भूपेंद्र हुड्डा को मिला था कृषि एवं विपणन व बागवानी विभाग

साल 2000 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष थे और वे किलोई से विधायक थे। भजनलाल की शैडो कैबिनेट में उन्हें कृषि तथा विपणन एवं बागवानी विभाग दिया गया था। प्रोटोकॉल में शैडो कैबिनेट में हुड्डा से पहले दो और मंत्री थे। उस समय जाटूसाना से विधायक राव इंद्रजीत सिंह को विकास एवं पंचायत, पर्यटन तथा खेल मंत्री बनाया गया। वर्तमान में राव इंद्रजीत सिंह भाजपा में हैं और मोदी सरकार में लगातार तीसरी बार मंत्री बने हैं। शैडो कैबिनेट में डॉ. रघुबीर सिंह कादियान को सहकारिता विभाग दिया था। मौजूदा विधानसभा में डॉ. कादियान सबसे वरिष्ठ विधायक हैं। वे लगातार छह बार चुनाव जीतने वाले पहले विधायक हैं। इस बार वे सातवीं बार सदन पहुंचे हैं। हालांकि बिजली, परिवहन व श्रम मंत्री अनिल विज भी सातवीं बार विधानसभा पहुंचे हैं। भजनलाल ने शैडो कैबिनेट में अपने बड़े बेटे चंद्रमोहन बिश्नोई को पीडब्ल्यूडी मंत्री बनाया था। वहीं पूर्व विधायक राव दान सिंह को शिक्षा विभाग दिया था।

यूके की व्यवस्था की तर्ज पर लागू

हेमंत कुमार बताते हैं कि 200 वर्षों तक भारत पर राज करने वाले यूके (ब्रिटेन) में यह व्यवस्था थी। वहां की शासन प्रणाली को स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद भारत ने भी अपनाया। इसे ही शैडो कैबिनेट कहा जाता है। इसके तहत सदन में मुख्य विपक्षी दल के नेता द्वारा अपने दल के चुनिंदा सदस्यों को शामिल कर सत्तारूढ़ सरकार के विरूद्ध एक प्रकार का समानांतर मंत्रिमंडल बनाया जाता है। इसका काम सरकार के दैनिक कामकाज पर नजर रखना होता है। हालांकि ऐसा प्रयोग आमतौर पर दो दलीय व्यवस्था वाले लोकतांत्रिक देशों में ही सफल होता है।

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