हरियाणा नायाब कमलम् मंगलम्
दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 8 अक्तूबर
हरियाणा की जनता ने लगातार तीसरी बार ‘हाथ’ को झटक दिया है। भाजपा ने चुनाव जीतने की हैट्रिक लगाई है। पार्टी ने कार्यवाहक मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को चेहरा बनाकर चुनाव लड़ा। नायब का 56 दिनों का कार्यकाल लोगों को इतना पसंद आया कि प्रदेश में इतिहास रच डाला। वर्ष 1967 में हुए विधानसभा के पहले चुनाव से लेकर अभी तक यह पहला मौका है, जब किसी पार्टी ने लगातार तीसरी बार जीत हासिल की है। वह भी 48 सीटों के पूर्ण बहुमत के साथ।
नब्बे सदस्यीय विधानसभा में भाजपा ने 89 सीटों पर चुनाव लड़ा था। सिरसा के उम्मीदवार रोहतास जांगड़ा का नामांकन-पत्र हलोपा उम्मीदवार गोपाल कांडा के समर्थन में उठवा दिया था, लेकिन कांडा फिर भी नहीं जीत सके। वहीं कांग्रेस ने भी 89 सीटों पर चुनाव लड़ा था। भिवानी की सीट सीपीआई-एम को इंडिया गठबंधन के तहत दी गयी थी, लेकिन कामरेड ओमप्रकाश बुरी तरह चुनाव हारे।
कांग्रेस 37 सीटों पर जीती है। इनेलो ने दो सीटों- डबवाली और रानियां में जीत हासिल की। वहीं तीन हलकों- बहादुरगढ़, गन्नौर और हिसार में निर्दलीय विधायक जीते हैं। प्रदेश की राजनीति में यह भी पहला मौका है जब क्षेत्रीय दलों को जनता ने पूरी तरह से नकार दिया है। जननायक जनता पार्टी (जजपा) की सबसे शर्मनाक हार इस चुनाव में हुई है। 2019 में 10 विधायकों के साथ साढ़े चार वर्षों तक भाजपा के साथ गठबंधन सरकार में रही जजपा का इस बार सूपड़ा साफ हो गया। इनेलो भी दो सीटों पर सिमट गई। वहीं पंजाब और दिल्ली में प्रचंड बहुमत के साथ सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के 89 में 88 उम्मीदवाराें की जमानत जब्त हो गयी।
हरियाणा सरकार के स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता सहित नायब कैबिनेट के नौ मंत्री चुनाव हारे हैं। इतना ही नहीं, कांग्रेस के 28 मौजूदा विधायकों में से पंद्रह को लोगों ने पटखनी दे दी है। यानी कांग्रेस का ‘सिटिंग-गैटिंग’ का फार्मूला ही उस पर भारी पड़ गया।
टिकट आवंटन में सोशल इंजीनियरिंग का भाजपा को फायदा हुआ और 2014 में 47 सीटों के साथ पहली बार सत्ता में आई पार्टी को तीसरी बार 48 हलकों में जीत मिली। इस जीत के साथ भाजपा ने अपना ही रिकॉर्ड तोड़ा है। पहले गठबंधन के सहारे सत्ता में आई भाजपा को 2014 में 47 सीटों पर जीत के साथ पूर्ण बहुमत मिला। वर्ष 2019 में उसे 40 सीटें मिलीं और जजपा के 10 विधायकों के समर्थन से सरकार बनी। इस बार नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में भाजपा ने अपने ही पुराने रिकार्ड को तोड़ते हुए 48 विधायकों के साथ पूर्ण बहुमत हासिल किया।
''हरियाणा की जनता ने कांग्रेस की झूठ को नकारा और भाजपा की नीतियों पर मुहर लगाई है। भाजपा ने पिछले दस वर्षों में हरियाणा एक-हरियाणवी एक के सिद्धांत पर काम किया है और हम इसे जारी रखेंगे। हम प्रदेश के हर वर्ग और छत्तीस बिरादरी के आभारी हैं। लोगों के आशीर्वाद, सहयोग और प्रेम की वजह से ही भाजपा ने इतिहास रचा है।'' - नायब सिंह सैनी, कार्यवाहक मुख्यमंत्री
''हरियाणा में परिणाम से कांग्रेस ही नहीं, भाजपा और मीडिया भी अचंभित है। कांग्रेस के इस हार में तंत्र (ईवीएम) का क्या रोल है, इसकी भी हम जांच करेंगे। भाजपा अपने घर से भी नहीं निकली और चुनाव जीत गई, यह आश्चर्यचकित करने वाला है। हम चुनाव आयोग से भी शिकायत करेंगे। अंडर प्रोटेस्ट हम इस हार को स्वीकार करते हैं। '' - भूपेंद्र सिंह हुड्डा, पूर्व मुख्यमंत्री
भाजपा को रास आता है नेतृत्व परिवर्तन भाजपा ने लोकसभा चुनावों के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल की जगह नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया था। नेतृत्व परिवर्तन और बैकवर्ड कार्ड कारगर सिद्ध हुआ। इससे पहले गुजरात में भी रूपाणी की जगह पटेल और उत्तराखंड में तीर्थ रावत को हटाने से पार्टी को कामयाबी मिली। फिर त्रिपुरा में भी बिप्लब कुमार देव को हटाकर मनिक को बनाने का फार्मूला सफल रहा।
कांग्रेस की हार की वजहें जानकारों के मुताबिक कांग्रेस की हार की कई वजहें रहीं, इनमें कई सीटों पर टिकट आवंटन में गलती, मौजूदा विधायकों के लिए सिटिंग-गैटिंग फार्मूला, जाट कार्यकर्ताओं का मुखर होना शामिल है। इनके अलावा टिकट आवंटन में सोशल इंजीनियरिंग का ध्यान न रखना, कुमारी सैलजा की अनदेखी आदि भी शामिल हैं।
भाजपा के पक्ष में रहीं ये बातें भाजपा ने चुनाव प्रचार के दौरान एससी का मुद्दा उठाया। इसके अलावा प्रदेश में नौकरियों में मिशन मैरिट, गैर-जाटों की लामबंदी, टिकट आवंटन में सोशल इंजीनियरिंग, सरकारी सेवाओं को ऑनलाइन करने का भी पार्टी को फायदा मिला। इनके अलावा जिस विधायक के प्रति एंटी-इन्कमबेंसी दिखी, उसका टिकट काट दिया गया।
ये दिग्गज जीते
हलका विधायक पार्टी
लाडवा नायब सैनी भाजपा
किलोई भूपेंद्र हुड्डा कांग्रेस
अंबाला छा. अनिल विज भाजपा
तोशाम श्रुति चौधरी भाजपा
गोहाना अरविंद शर्मा भाजपा
पंचकूला चंद्रमोहन कांग्रेस
अटेली आरती राव भाजपा
बेरी रघुबीर कादियान कांग्रेस
झज्जर गीता भुक्कल कांग्रेस
दादरी सुनील सांगवान भाजपा
हिसार सावित्री जिंदल निर्दलीय
राई कृष्णा गहलोत भाजपा
ये दिग्गज हारे
हलका विधायक पार्टी
नारनौंद कै. अभिमन्यु भाजपा
बादली ओपी धनखड़ भाजपा
जगाधरी कंवरपाल गुर्जर भाजपा
हिसार कमल गुप्ता भाजपा
पलवल करण दलाल कांग्रेस
गन्नौर कुलदीप शर्मा कांग्रेस
आदमपुर भव्य बिश्नोई भाजपा
होडल उदयभान कांग्रेस
सिरसा गोपाल कांडा हलोपा
ऐलनाबाद अभय चौटाला इनेलो
उचाना कलां दुष्यंत चौटाला जजपा
रानियां रणजीत सिंह निर्दलीय
सबसे बड़ी और सबसे छोटी जीत : फिरोजपुर-झिरका से कांग्रेस उम्मीदवार मामन खान इंजीनियर ने 98 हजार 441 मतों के अंतर के साथ प्रदेश में सबसे बड़ी जीत दर्ज की। वहीं सबसे कम महज 32 मतों से भाजपा के देवेंद्र अत्री उचाना कलां से चुनाव जीते हैं। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार बृजेंद्र सिंह को पटखनी दी।
जीत का राजतिलक
नायब के लिए शुभ मंगल
कार्यवाहक मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के लिए मतगणना का दिन मंगलवार शुभ साबित हुआ है। यह संयोग ही है कि इसी साल 12 मार्च को जब उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की तो उस दिन भी मंगलवार ही था।
विजयादशमी पर ‘राजतिलक’
बताया जा रहा है कि नायब सैनी का विजयादशमी यानी दशहरे के दिन 12 अक्तूबर को ‘राजतिलक’ हो सकता है। शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह व पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित कई केंद्रीय नेता भी आ सकते हैं। भाजपा की प्रदेश इकाई की ओर से केंद्रीय नेताओं को आमंत्रित किया गया है।
पराजय की निराशा
एग्जिट पोल हुए फेल
गत 5 अक्तूबर मतदान के बाद शाम को विभिन्न न्यूज चैनलों व एजेंसियों की ओर से हुए ज्यादातर एग्जिट पोल में कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिलता दिखाया गया था। कोई भी एग्जिट पोल यह मानने को तैयार नहीं था कि भाजपा तीसरी बार सत्ता में आ सकती है। भाजपा को अधिकतम 30 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया था। लेकिन सभी एग्जिट पोल फेल हो गए। इससे पहले लोकसभा चुनावों में भी एग्जिट पोल फेल हुए थे।
''हरियाणा चुनाव परिणामों का सबसे बड़ा सबक यह है कि चुनावों में कभी अति आत्मविश्वासी नहीं होना चाहिए। ... किसी चुनाव को हल्के में नहीं लेना चाहिए। हर चुनाव और हर सीट मुश्किल होती है। ''- अरविंद केजरीवाल, आप प्रमुख
'' नतीजे निराशाजनक हैं। कार्यकर्ता बहुत निराश हैं...अब नए सिरे से आगे सोचना होगा, चीजें जैसी चल रही हैं, वैसी नहीं चलेंगी। ...कांग्रेस को उन लोगों की पहचान करनी चाहिए, जिन्होंने 10 साल बाद पार्टी को सत्ता में लाने के प्रयासों को विफल कर दिया। '' - कुमारी सैलजा, कांग्रेस महासचिव एवं सांसद