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Haryana Congress: गुटबाजी के बीच बीके हरिप्रसाद को फिर से बनाया इंचार्ज, सामने होंगी ये 4 चुनौतियां

01:19 PM Feb 15, 2025 IST
haryana congress  गुटबाजी के बीच बीके हरिप्रसाद को फिर से बनाया इंचार्ज  सामने होंगी ये 4 चुनौतियां
बीके हरिप्रसाद की फाइल फोटो। स्रोत X/@CaptAjayYadav
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दिनेश भारद्वाज/ट्रिब्यून न्यूज सर्विस, चंडीगढ़, 15 फरवरी

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Haryana Congress: कांग्रेस हाईकमान ने एक बार फिर कर्नाटक मूल के बीके हरिप्रसाद को हरियाणा की जिम्मेदारी सौंपी है। दीपक बाबरिया की जगह उन्हें हरियाणा मामलों का प्रभारी बनाया है। इससे पहले 2013 में भी हरिप्रसाद हरियाणा के इंचार्ज रह चुके हैं। बेशक, उन्हें हरियाणा को लेकर पुराना अनुभव है, लेकिन पार्टी नेताओं की गुटबाजी व संगठन का गठन उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती रहने वाली है।

दीपक बाबरिया को भी शक्ति सिंह गोहिल को हटाकर यह जिम्मेदारी दी गई थी। वे हरियाणा के साथ-साथ नई दिल्ली के भी इंचार्ज थे। शक्ति सिंह गोहिल हरियाणा में संगठन गठन की कवायद को लगभग पूरी कर चुके थे, लेकिन इसी बीच पार्टी ने उनकी जगह दीपक बाबरिया को प्रभारी बना दिया। प्रदेश अध्यक्ष चौ. उदयभान की ओर से प्रदेश के अलावा जिला व ब्लाक पदाधिकारियों की लिस्ट बाबरिया के पास भेजी भी गई।

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इतना ही नहीं, खुद बाबरिया ने भी संगठन गठन को लेकर प्रदेश के सभी नेताओं से फीडबैक लिया। राहुल गांधी ने लगभग एक साल पहले संगठन गठन के लिए समय सीमा भी तय कर दी थी लेकिन बाबरिया ने संगठन की लिस्ट नेतृत्व के सामने रखी ही नहीं। ऐसे में राज्य में कांग्रेस पिछले 12 वर्षों से बिना संगठन के चल रही है। हालिया विधानसभा चुनावों में टिकट आवंटन के दौरान बाबरिया सबसे अधिक सुर्खियों में आए थे।

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विधानसभा के टिकट आवंटन में पार्टी नेतृत्व ने भी बाबरिया की रिपोर्ट पर काफी भरोसा जताया। एंटी हुड्डा खेमे के नेताओं की ओर से बाबरिया की कार्यशैली पर सवाल भी उठाए गए। टिकट आवंटन होने के बाद वे ‘बीमार’ पड़ गए। उन्हें ऐसी ‘राजनीतिक बीमारी’ हुई कि उन्होंने विधानसभा के चुनाव प्रचार में भी भाग नहीं लिया। विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद बाबरिया ने प्रभारी पद छोड़ने की पेशकश भी नेतृत्व को की। अब पार्टी ने उनकी जगह बीके हरिप्रसाद को प्रभारी नियुक्त किया है।

5 साल में तीन प्रभारी

हरियाणा कांग्रेस में पिछले पांच वर्षों की अवधि में तीन प्रभारी बदले जा चुके हैं। लेकिन कोई भी प्रभारी गुटबाजी को खत्म नहीं कर पाया। दीपक बाबरिया 9 जून, 2023 को प्रदेश इंचार्ज बने थे। उनसे पहले शक्ति सिंह गोहिल के पास यह जिम्मा था। गोहिल लगभग छह माह ही प्रदेश में काम कर पाए। उनसे पहले विवेक बंसल को प्रभारी बनाया गया था। बंसल 12 सितंबर, 2020 के प्रभारी बने थे। बंसल से पहे गुलाम नबी आजाद और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ भी हरियाणा में बतौर प्रभारी काम कर चुके हैं।

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वायरल मैसेज पर हुआ था विवाद

विधानसभा चुनावों में ईवीएम में धांधली के आरोप कांग्रेस ने लगाए। इन आरोपों के पीछे एक बड़ा कारण यह भी था कि नतीजों से पहले ही दीपक बाबरिया के मोबाइल में एक मैसेज मौजूद था, जिसमें हरियाणा के चुनावी नतीजों का जिक्र था। नतीजे आए थी, वैसे ही थे जैसे कि मैसेज में थे। बाद में बाबरिया ने दावा किया कि उन्होंने यह मैसेज प्रदेशाध्यक्ष चौ. उदयभान को भेज दिया था। वहीं उदयभान ने कहा था कि उनके पास आधा-अधूरा मैसेज फॉरवर्ड किया गया।

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हरिप्रसाद के सामने होंगी ये पांच चुनौतियां

  1. निकाय चुनाव: बीके हरिप्रसाद को हरियाणा के निकाय चुनावों के बीच में जिम्मेदारी मिली है। आठ नगर निगमों, चार नगर परिषदों व 21 नगर पालिकाओं के चुनाव हो रहे हैं। कांग्रेस ने नगर निगम में मेयर व पार्षदों तथा नगर परिषदों में चेयरमैन के चुनाव सिम्बल पर लड़ने का निर्णय लिया है। चूंकि ये शहरों के चुनाव हैं और शहरों में भाजपा की पकड़ मानी जाती है। ऐसे में निकाय चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करना ही हरिप्रसाद के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी।
  2. संगठन गठन: 2014 में फूलचंद मुलाना की जगह डॉ. अशोक तंवर को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया। तंवर ने पार्टी संगठन को भंग कर दिया था। वे करीब छह वर्षों तक प्रधान रहे लेकिन संगठन का गठन नहीं कर सके। इसके बाद कुमारी सैलजा भी अपने कार्यकाल में संगठन नहीं बना पाईं। मौजूदा प्रधान की कोशिशें भी सिरे नहीं चढ़ पाई हैं। अब हरिप्रसाद के सामने हरियाणा में कांग्रेस संगठन का गठन करना भी सबसे बड़ी चुनौती रहेगी।
  3. नेताओं की गुटबाजी: हरियाणा कांग्रेस धड़ों में बंटी हुई है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का खेमा वर्तमन में सबसे मजबूत माना जा रहा है। वहीं एंटी हुड्डा खेमे के नेताओं में शामिल कुमारी सैलजा, रणदीप सिंह सुरजेवाला व चौ. बीरेंद्र सिंह सहित कई अन्य नेता ऐसे हैं, जो हुड्डा कैम्प के खिलाफ हैं। अब यह देखना रोचक रहेगा कि प्रदेश कांग्रेस नेताओं की गुटबाजी खत्म करके उनके सिर जोड़ने में बीके हरिप्रसाद कितना सफल होते हैं।
  4. सीएलपी का फैसला: 8 अक्तूबर को हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए थे। लेकिन कांग्रेस अभी तक भी विधायक दल के नेता का फैसला नहीं कर पाई है। सीएलपी लीडर के साथ-साथ प्रदेशाध्यक्ष को भी बदले जाने की चर्चाए हैं। पार्टी के 37 में से 30 से भी अधिक विधायक पूर्व सीएम हुड्डा को सीएलपी लीडर बनाए जाने के पक्ष में हैं। विधानसभा का बजट सत्र भी 7 मार्च से शुरू होगा। इससे पहले का सत्र बिना विपक्ष के नेता के चला
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