सामंजस्य से ही बढ़ते हैं खुशहाली के रिश्ते
सोनम लववंशी
साठ के दशक में एक फिल्म आई थी ‘आस का पंछी’ जिसका एक गाना आज भी काफी पसंद किया जाता है ‘तुम रूठी रहो, मैं मनाता रहूं तो मजा जीने का और भी आता है!’ मुकेश और लता मंगेशकर के गाए इस गीत को ध्यान से सुना जाए तो इसमें सफल दाम्पत्य जीवन का सार छुपा है। भारतीय सामाजिक व्यवस्था में भी पति-पत्नी को एक-दूसरे का सहारा बताया गया है। दोनों के बीच बना सामंजस्य ही, वो ताकत होती है, जो हर मुसीबत में उनकी मददगार बनती है। सुख-दुःख की हर स्थिति में यही सामंजस्य जीवन का आधार भी बनता है। लेकिन, यदि खुशहाल दाम्पत्य जीवन को आधार मानकर कोई पति-पत्नी ढूंढे जाएं, तो मिलना आसान नहीं है। इसलिए कि दुनिया में कोई भी दो व्यक्ति एक-दूसरे के प्रति पूरी तरह समर्पित नहीं होते! ये संभव भी नहीं है। पर, यदि दोनों सामंजस्य बनाए रखें, तो खुशहाल दाम्पत्य मुश्किल भी नहीं है।
समझौतावादी रवैया
देखा जाए तो पति-पत्नी ही नहीं, कोई भी रिश्ता कभी परफेक्ट नहीं होता। भले ही कहा जाता है कि जोड़ियां भगवान बनाकर भेजता है, पर फिर भी दाम्पत्य में कटुता के प्रसंग भी कम नहीं हैं! ऐसे में जरूरी होता है कि दोनों समझौतावादी रवैया अपनाएं, सामने वाले की भावनाओं को समझें और जब जरूरी हो दो कदम पीछे हटने में देरी न करें। खुशहाल वैवाहिक जीवन के लिए सबसे जरूरी होता है, एक-दूसरे की भावनाओं की कद्र करना। समय और स्थिति देखकर एक-दूसरे को समझना, तभी आप अपना वैवाहिक जीवन खुशहाल बना सकेंगे।
रिश्ता निभाने के दायित्व का अहसास
हमारे समाज में अरेंज और लव मैरिज दोनों तरह की शादियों का रिवाज है। इनमें भी परिवार की तरफ से तय होने वाली अरेंज मैरिज ही ज्यादा होती हैं। इन शादियों में जरूरी नहीं कि पति-पत्नी दोनों पहले से एक-दूसरे को जानते हों। इस अनजानेपन में सामंजस्य बनाना ही सबसे कठिन चुनौती है। लेकिन, देखा गया है कि समाज में सबसे ज्यादा सफल शादियां अरेंज मैरिज ही होती हैं। इसका एक बड़ा कारण यह भी है, कि दोनों इस सच्चाई को जानते हैं कि इस रिश्ते को निभाना उनका दायित्व है। धीरे-धीरे दोनों झुकना सीख जाते हैं और दाम्पत्य जीवन में खुशहाली का माहौल बन जाता है।
खामियां भी स्वीकारें जीवनसाथी की
दाम्पत्य जीवन में तभी संपूर्णता आती है, जब पति-पत्नी दोनों एक-दूसरे को खूबियों और खामियों के साथ स्वीकारें। यदि हम अपने जीवन साथी में सिर्फ अच्छाई तलाशेंगे, तो शायद निराशा ही हाथ लगेगी। क्योंकि, जिसमें कुछ अच्छाई होगी, तो उसमें बुराई का अंश भी होगा। दोष देने के बजाय एक-दूसरे को समझने की कोशिश करें। तालमेल बैठाकर जीवन को आगे बढ़ाएं, तभी दाम्पत्य जीवन में वास्तविक खुशहाली आएगी। वास्तव में तो दाम्पत्य जीवन प्यार की डोर से बंधा होता है। बंधन के शुरुआत में प्यार की कमी नहीं होती। लेकिन, लंबे समय तक एक-दूसरे को खुश रखना आसान नहीं होता। यह तभी संभव होता है, जब दोनों में समर्पण का भाव हो और एक-दूसरे पर हावी होने की कोशिश कभी न की जाए। गलतियों को नजरअंदाज किया जाए और सबके सामने साथी को कभी अपमानित न किया जाए।
भावनाओं की कद्र
पारिवारिक जीवन में खुशहाली का मूलमंत्र है, एक-दूसरे की भावनाओं को समझना और उसका सम्मान करना। यहां भावनाओं का सीधा आशय है, साथी के फैसलों में उसका साथ देना, जहां जरूरी हो उसकी बात मानना और अनावश्यक बहस न करना। क्योंकि, किसी भी तरह से रिश्तों में तनाव होना मनमुटाव के हालात बना सकता है। ऐसा भी नहीं है कि खुशहाल जीवन में हमेशा सुख का ही डेरा होता है। जब कभी मुश्किल घड़ी आती है, तब असल में इस खुशहाली की परीक्षा होती है। पति-पत्नी जीवन जब कदम से कदम मिलाकर चलते हैं तभी दाम्पत्य की गाड़ी हंसी-ख़ुशी से आगे बढ़ती है।
जिम्मेदारी और सहयोग
देखा गया है, कि जिस घर में पत्नी की जिम्मेदारियों को समझकर उसका सम्मान किया जाता है, वहां कभी कटुता को पनपने का मौका नहीं मिलता। हमारे समाज में इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता कि पत्नी घरेलू हो या कामकाजी, उसकी जिम्मेदारियां कम नहीं होती। ऐसे में सबसे जरूरी होता है, पति का साथ और सहयोग। यदि पति इस बात को समझता है, तो निश्चित रूप से उस घर में कभी तनाव के हालात नहीं बनते। क्योंकि, ऐसे में पत्नी को भी लगता है कि उसके समर्पण को समझा जा रहा है। ऐसे में अपनत्व का जो भाव पनपता है, वह खुशहाली का आधार बनता है। वैवाहिक जीवन में तभी खुशहाली की कल्पना की जा सकती है, जब इस रिश्ते में प्यार, सहयोग, समर्पण और सामंजस्य हो! जहां यह सब होगा वहीं दाम्पत्य जीवन खुशहाल होगा।