मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
आस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

बेहतर आर्थिक उपलब्धियों की आधी सदी

06:55 AM Aug 31, 2024 IST
टीएन निनान

आज हमें लगता नहीं कि हुआ होगा, लेकिन 50 साल पहले भारत एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया था। उस समय आर्थिक संकट और राजनीतिक उथल-पुथल थी। एक साल बाद निर्णायक कार्रवाई के रूप में इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू कर दिया था। लेकिन दो साल से भी कम समय में इस फैसले को वापस ले लिया। जो चीज अधिक दीर्घकालिक साबित हुई व जिस पर उस समय मुश्किल से गौर किया जाता था : इंदिरा गांधी के साफतौर पर झलकते वामपंथी झुकाव वाले चरण से इतर आर्थिक नीति में एक नई दिशा की जरूरत थी। इसके बाद वाले समय में, भारत द्वारा लंबे समय तक आर्थिक मोर्चे पर कमजोर प्रदर्शन करने वाले युग का अंत हुआ और आगे जाकर एक नई ‘भारतीय गाथा’ का जन्म हुआ।
वर्ष 1970 के दशक के मध्य तक, विश्व अर्थव्यवस्था की तुलना में भारत की प्रगति काफी धीमी थी। 1970 के दशक का उत्तरार्ध संक्रमण काल था, जिसमें युद्ध, कमजोर खेती और यहां तक कि अकाल, भारतीय रुपये का असहनीय अवमूल्यन और तेल पर मिले दो झटकों के रूप में लगभग 15 साल तक संकटकाल बना रहा। जवाहर लाल नेहरू के शुरुआती आशावाद के बाद इनमें से कई घटनाओं ने राष्ट्रीय आत्मविश्वास खोने में योगदान किया था। लेकिन एक बार जब अर्थव्यवस्था स्थिर हो गई, तो उसके बाद लगातार आधी सदी तक बेहतर प्रदर्शन हुआ। विकास दर के मामले में, निम्न-आय और मध्यम-आय वाले देशों के अलावा, कई विकसित अर्थव्यवस्थाओं को भी पीछे छोड़ दिया गया है। परिणामस्वरूप, देश के पास आज एक अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव है, जो इससे पहले कभी नहीं था। फिर भी, निरंतर खराब सामाजिक-आर्थिक मापदंडों और बढ़ती असमानता के कारण यह एक ‘चमकदार’ रिकॉर्ड नहीं रहा है।
संक्रमण काल से पहले, वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी कम ही रही—इससे पहले की गिरावट धीमी पड़ी, स्थिर हुई और आखिर में सुधरने लगी। वर्ष 1960 में यह 2.7 प्रतिशत से घटकर 1975 में 1.9 फीसदी रही। यहां तक कि 2013 में भी, विश्व जीडीपी में भारत की हिस्सेदारी 1960 की तुलना में मामूली कम थी। अब, 2024 में, यह वैश्विक जीडीपी का 3.5 प्रतिशत है। और चूंकि अर्थव्यवस्था वैश्विक औसत से दोगुनी गति से बढ़ रही है, इसलिए वैश्विक आर्थिक विकास में भारत तीसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है।
प्रति व्यक्ति आय में भी इसी तरह सुधार हुआ है। प्रति व्यक्ति आय के वैश्विक औसत में, 1960 में यह 8.4 प्रतिशत से घटकर 1974 में 6.4 फीसदी रह गई। 2011 में यह मात्रा बढ़कर 13.5 प्रतिशत हो गई और 2023 में यह 18.1 प्रतिशत रही। पिछले पांच दशकों में यह वृद्धि लगभग तीन गुना है। फिर भी अधिकांश देशों में लोग काफी अच्छे जीवन स्तर का आनंद ले रहे हैं। वास्तव में, अफ्रीका और भारत के पड़ोसी दक्षिण एशियाई देशों के अलावा शायद ही कोई ऐसा देश हो जहां प्रति व्यक्ति आय वैश्विक औसत से कम हो। अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है।
भारत की गाथा को बदलने वाला मुख्य कारक इसकी जनसंख्या का आकार है। हालांकि, प्रति व्यक्ति आय मामूली है, लेकिन जब इसे 140 करोड़ से गुणा किया जाता है, तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना देती है। वर्तमान में, भारत मोबाइल फोन और मोटरसाइकिल-स्कूटर के लिए दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है। शायद विमानन सेवा और कारों के लिए तीसरे या चौथे स्थान पर। उत्पाद और सेवा बाजार में हुई उल्लेखनीय वृद्धि मध्यम आय वर्ग के आकार में हो रहे विस्तार की बदौलत है। इस वर्ग को सेवा मुहैया करने वाले काम-धंधों से निवेशकों ने बहुत अधिक धन बनाया, जिससे भारत के डॉलर-खरबपतियों की गिनती में बढ़ोतरी हुई (200 की संख्या के साथ भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर है) जबकि शेयर बाजार पूंजीकरण के हिसाब से इसकी स्टॉक मार्केट चौथे स्थान पर आती है।
वर्ष 1970 के दशक के मध्य तक, लगभग आधी से अधिक आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी। आज, 10 प्रतिशत से भी कम लोग आधिकारिक तौर पर गरीब हैं। भारत का अंतर्राष्ट्रीय उल्लेख अब ‘गरीबों का देश’ की बजाय एक उभरती हुई शक्ति के रूप में किया जाता है। फिर भी, भारत अपने मानव विकास सूचकांक में केवल ‘मध्यम विकास’ वाला देश गिना जाता है, जबकि वियतनाम जैसे देशों ने ‘उच्च विकास’ का दर्जा प्राप्त कर लिया है। अगले एक दशक या उससे अधिक समय तक भारत की ‘उच्च विकास’ श्रेणी में शामिल होने की संभावना नहीं है—इसके ऊपर विकसित अर्थव्यवस्थाओं वाली ‘बहुत उच्च विकास’ श्रेणी है, जिसमें जगह बनाने की आकांक्षा हमारा देश रखता है।
हालांकि, यहां भी आंकड़े में सुधार हो रहा है। स्कूली शिक्षा में बिताई औसत अवधि, वर्ष 2010 में 4.4 वर्ष से बढ़कर अब 6.57 वर्ष हो गई है। भारत में प्रति 1,000 व्यक्ति पर एक डॉक्टर है जोकि डब्ल्यूएचओ द्वारा सुझाए अनुपात से अधिक है, और औसत जीवनकाल अंततः 70 वर्ष की सीमा पार कर चुका है। अधिक आय का मतलब है ज्यादा विविधतापूर्ण और समृद्ध खुराक। दूध की खपत 10 गुना बढ़ गई है। इसी तरह मछली का उपभोग भी बढ़ा है, जबकि अंडों की खपत 20 गुना से अधिक बढ़ गई है। इसमें बागवानी—फल और सब्जियों के मामले में तेजी से हुई वृद्धि भी शामिल है। इस बीच, आय के हिस्से के रूप में घरेलू बचत 70 प्रतिशत बढ़ गई है।
इन सबसे भी, शायद अधिक महत्वपूर्ण है मानसिकता में आया बदलाव। वर्ष 1970 के दशक के मध्य तक भारत समाजवाद के फलसफे के लिए प्रतिबद्ध था। बड़े पैमाने पर कई उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किए जाने के अलावा, कागज से लेकर स्टील, चीनी, सीमेंट, यहां तक कि नहाने के साबुन और कारों तक, हर चीज़ पर मूल्य एवं उत्पादन नियंत्रण का निज़ाम था! औद्योगिक विवादों में राज्य सरकारें नियमित रूप से ट्रेड यूनियनों का पक्ष लेती थीं। लेकिन अब चीज़ें बदल गई हैं। भारतीय राजनीति अब समाजवादी से ज़्यादा लोकलुभावन है, वामपंथी दल पराभव अवस्था में हैं। सरकारें व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए श्रम कानूनों में बदलाव करना चाहती हैं। भारतीय लोग उत्साही शेयर-बाज़ार पूंजीपति बनने लगे हैं। 1974 में, शेयरों का सबसे बड़ा पब्लिक इश्यू कुल 12 करोड़ रुपये का था (आज के पैसे में लगभग 350 करोड़ रुपये)। इसकी तुलना में, पिछले कुछ वर्षों में, कई निजी कंपनियों ने ही 15,000-21,000 करोड़ रुपये के पब्लिक इश्यू जारी किए हैं (एलआईसी, अडाणी, वोडाफोन, आदि)। एक दशक पहले तक, म्यूचुअल फंड कंपनियां बैंकों में जमा कुल रकम के आठवें हिस्से जितना ही जुटा पाती थीं, अब इसका अंश दोगुना होकर एक-चौथाई से अधिक हो गया है।
तथापि, भारत में कोई गाथा ऐसी नहीं है जिसमें विपरीत दिशा न हो। उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन इससे पहले के सात सालों के मुकाबले बिल्कुल भी नहीं बढ़ा, और गैर-उपभोक्ता वस्तुओं में सालाना वृद्धि औसतन महज 2.8 प्रतिशत हुई है। स्पष्ट रूप से, उपभोक्ता आर्थिक रूप से संत्रास में हैं, विशेषकर आय के निचले स्तर पर—शायद यह स्थिति अच्छी आमदनी बनाने के मामले में यथेष्ट काम न किए जाने को दर्शाती है। केवल इसमें बदलाव आने पर ही अर्थव्यवस्था 7 प्रतिशत से अधिक की दर तक पहुंच सकेगी, जो कभी उच्च विकास वाली अर्थव्यवस्थाओं की वास्तविक पहचान हुआ करती थी।

Advertisement

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

Advertisement
Advertisement