Gyan Ki Baat : एक गोत्र में शादी करना क्यों वर्जित? जानिए दादी-नानी की इस बात का वैज्ञानिक महत्व
चंडीगढ़, 3 जनवरी (ट्रिन्यू)
Gyan Ki Baat : हिंदू धर्म में शादी-विवाह बहुत ही अहम माना जाता है। भारतीय समाज में शादी के लिए कई नियम व रिवाज होते हैं जिनका पालन करना जरूरी है। उन्हीं में से एक है सामान गोत्र में विवाह ना करना। हिंदुओं में लगभग सभी लोग इस प्रणाली का पालन करते हैं। एक ही गोत्र के लोगों का मूल रूप से एक ही नहीं होता है।
एक ही गोत्र में हिंदू विवाह क्यों वर्जित हैं?
वैदिक काल में गोत्र सप्तऋषि (7 ऋषि) अंगिरस, अत्रि, गौतम, कश्यप, भृगु, वशिष्ठ और भारद्वाज ने इसका वर्गीकरण किया था। एक ही गोत्र के तहत हिंदू समुदायों में विवाह वर्जित हैं क्योंकि अगर वे एक ही गोत्र के हैं तो भागीदारों के बीच डीएनए का घनिष्ठ संबंध होता है। समान गोत्र वाले लोग सगे-संबंधी होते हैं। समान-गोत्र विवाह से बचा जाता है क्योंकि डीएनए से परिचित होने के कारण विरासत में मिली अनियमितताएं हो सकती हैं।
क्या कहता है विज्ञान?
इसके समानांतर इसका एक वैज्ञानिक पहलू भी है, जिसे इनब्रीडिंग कहा जाता है। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि एक ही गोत्र में विवाह करने से बच्चों में शारीरिक दोष, मानसिक और चरित्र दोष होने का खतरा हो सकता है। पौराणिक दृष्टि से, कुल के प्रत्येक ऋषि की अपनी प्रतिष्ठा होती है इसलिए, एक ही गोत्र में विवाह करने वाले जोड़े एक ही परिवार के सदस्य माने जाते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एक ही गोत्र में विवाह करने से लड़का-लड़की भाई-बहन बन जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार, हिंदू धर्म में एक ही गोत्र में विवाह करना पाप है। ऋषियों ने इस विवाह प्रणाली को गोत्र परंपरा का उल्लंघन माना है। एक ही गोत्र में विवाह करने से अक्सर आनुवंशिक दोष उत्पन्न होते हैं।
डिस्केलमनर: यह लेख/खबर धार्मिक व सामाजिक मान्यता पर आधारित है। dainiktribneonline.com इस तरह की बात की पुष्टि नहीं करता है।