Gyan Ki Baat : दीपक की लौ से मत जलाओ दूसरा दीपक, ऐसा क्यों कहती है दादी-नानी?
चंडीगढ़ , 20 जनवरी (ट्रिन्यू)
Gyan Ki Baat : हिंदू धर्म में पूजा-पाठ के लिए खास नियम बनाए गए हैं, जिनका अपना महत्व है। वहीं, हिंदू धर्म में दीप जलाने की परंपरा भी सदियों से चली आ रही है। प्राचीन सभ्यताओं में भी दीया जलाने को अंधकार को दूर करने का प्रतीक माना जाता था, चाहे वह शाब्दिक हो या रूपक। शास्त्रों में सुबह और शाम दोनों ही समय दीपक जलाने का महत्व बताया गया है लेकिन ऐसा कहा जाता है कि एक दीपक की लौ से दूसरा दीपक नहीं जलाना चाहिए। दादी-नानी भी अक्सर ऐसा करने के लिए मना करती है।
क्या कहता है शास्त्र?
ज्योतिशास्त्र के अनुसार, दीप की लौ में अग्नि देव करते हैं। घर में मंदिर में जब दीपक जलाया जाता है तो उसकी अग्नि सारी नेगेटिव एनर्जी को खीच लेती है। ऐसे में जब उसी दीप से दूसरा दीप जलाया जाता है तो वो नकारात्मकता खत्म होने की बजाए घर में ही घूमती रहती है।
जलाया गया दीया न केवल आध्यात्मिक या धार्मिक प्रक्रिया का प्रतीक है, बल्कि हमारे आस-पास मौजूद और मंदिर में मौजूद दिव्य ऊर्जाओं के साथ संबंध का भी प्रतीक है। ऐसा भी माना जाता है कि जब एक वस्तु में अग्नि तत्व हो तो उससे किसी अन्य वस्तु में अग्नि तत्व पैदा नहीं करना चाहिए। इससे रिश्तों में दरार पैदा होती है और पारिवारिक सुख भंग होता है।
वहीं, हिंदू धर्म में, एक दीपक की लौ दिव्य प्रकाश और पवित्रता का प्रतिनिधित्व करती है इसलिए एक स्रोत से सीधे एक नई ज्योति जलाना उस शुद्ध ऊर्जा को नए सिरे से आह्वान करने के तरीके के रूप में देखा जाता है। यही कारण है कि एक दीप की लौ से दूसरा दीप जलाने की मनाही होती है।
खुद ना बुझाए दीया
इसके अलावा कभी भी खुद दीया नहीं बुझाना चाहिए। जब तक तेल खत्म न हो जाए, तब तक इसे बुझाना नहीं चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि माना जाता है कि टिमटिमाती लौ दिव्य की उपस्थिति का प्रतिनिधित्व करती है।
डिस्केलमनर: यह लेख/खबर धार्मिक व सामाजिक मान्यता पर आधारित है। dainiktribneonline.com इस तरह की बात की पुष्टि नहीं करता है।