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गुरुकुल शिक्षा पद्धति जीवन निर्माण का आधार : आचार्य देवव्रत

04:25 PM Aug 23, 2021 IST
गुरुकुल शिक्षा पद्धति जीवन निर्माण का आधार   आचार्य देवव्रत
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कुरुक्षेत्र, 22 अगस्त (हप्र)

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बच्चों को न केवल अक्षर ज्ञान दें बल्कि उनका सर्वांगीण विकास करें, जिससे वे मानवता के कल्याण करने वाले बनें। उक्त शब्द आज गुरुकुल कुरुक्षेत्र में आयोजित उपनयन संस्कार और पर्यावरण एवं भू-सम्पदा संरक्षण संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहे। उन्होंने आधुनिक शिक्षा पद्धति और गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति के बीच अन्तर को स्पष्ट करते हुए कहा कि आधुनिक शिक्षा पद्धति जहां नौकरी, आजीविका का साधन बनकर रह गई है, वहीं गुरुकुल शिक्षा पद्धति जीवन निर्माण का आधार है। गुरुकुल शिक्षा पद्धति हमें आपसी प्यार, भाईचारा, एकता, सहिष्णुता और अपने कर्तव्य व जिम्मेदारी का बोध कराती है। उन्होंने कहा कि गुरुकुल शब्द का अर्थ है- गुरु का कुल अर्थात् विशाल परिवार। इस अवसर पर गुरुकुल के प्रधान कुलवन्त सिंह सैनी, निदेशक व प्राचार्य कर्नल अरुण दत्ता, वैदिक विद्वान डॉ. राजेन्द्र विद्यालंकार, सह प्राचार्य शमशेर सिंह, कर्नल बीजी रॉय सहित अध्यापक व संरक्षक मौजूद रहे। उपनयन संस्कार पर बोलते हुए आचार्य देवव्रत ने कहा कि प्राचीनकाल से ही भारतीय समाज में संस्कारों का विशेष महत्व है। जन्म से मृत्युपर्यन्त तक मनुष्य के 16 संस्कार हैं, जिनमें उपनयन संस्कार की अलग ही उपयोगिता है। यह संस्कार ब्रह्मचारी को जिम्मेदारियों का पालन करने, ईश्वर की प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है। उपनयन का अर्थ है-गुरु शिष्य का परस्पर नजदीक आना। अन्त में उन्होंने सभी ब्रह्मचारियों को रक्षाबंधन एवं श्रावणी उपाकर्म पर्व की बधाई दी। रक्षाबंधन पर्व को लेकर गुरुकुल में ब्रह्मचारियों हेतु राखी की भी व्यवस्था की गई और जिन बच्चों के घर से राखी नहीं आ पाईं उन्हें गुरुजनों ने राखी बांधकर रक्षाबंधन का पर्व मनाया।

श्रावणी पूजन किया

पिहोवा (निस) : सरस्वती तट पर श्रावणी पूजन हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। पापांतक तीर्थ पर शास्त्री विवेक पौलस्त्य ने श्रावणी पूजन कराया तथा वेद मत्रोच्चारण के बीच ब्राह्मण समुदाय ने देव तर्पण, ऋषि तर्पण व पितृ तर्पण करके अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित किए। स्वस्ति वाचन करते हुए यज्ञोपवीत का पूजन किया तथा धारण किया। वहीं दूसरी ओर हनुमान मन्दिर ,सरस्वती घाट पर विनोद शास्त्री ने श्रावणी पूजन कराया तथा यज्ञोपवीत संस्कार कराया।

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इस मौके पर आशीष चक्रपाणि, दिनेश तिवारी, गोपाल कौशिक, मयंक पौलस्त्य, धर्मबीर अत्री, विक्रम चक्रपाणि सहित अनेक ब्राह्मण समुदाय के लोग मौजूद थे।

ब्रह्मचारियों को स्वामी ज्ञानानंद ने दिया आशीर्वाद

कुरुक्षेत्र में रविवार को यज्ञोपवीत ग्रहण करने वाले ब्रह्मचारियों को आशीर्वाद देते स्वामी ज्ञानानंद। -हप्र

कुरुक्षेत्र (हप्र) : श्री ब्राह्मण एवं तीर्थोद्धार सभा द्वारा संचालित कुरुक्षेत्र वेद संस्कृत विद्यालय में श्रावणी पूर्णिमा के अवसर पर नव प्रवेश पाने वाले 48 ब्रह्मचारियों का यज्ञोपवीत संस्कार किया गया। मुंडन कराकर सभी ब्रह्मचारियों ने भारतीय वेशभूषा धारण की और सबसे पहले विद्यालय के आचार्य नरेश कौशिक ने नेतृत्व में यज्ञ में पूर्ण आहुति डाली। इस अवसर पर स्वामी ज्ञानानंद ने यज्ञोपवीत संस्कार करने वाले ब्रह्मचारियों को आशीर्वाद दिया। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि भारतीय परंपरा और संस्कार से शिक्षा प्राप्त करने की पद्धति, व्यवहारिक और वैचारिक होने के साथ-साथ वैज्ञानिक भी है। उन्होंने घोषणा की कि इस वेद विद्यालय के जो विद्यार्थी संपूर्ण गीता को कंठस्थ करेंगे, उन्हें जीओ गीता की तरफ से आर्थिक पैकेज सहित अन्य प्रोत्साहन भी दिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि सभा के मुख्य सलाहकार जयनारायण शर्मा ने इस विद्यालय में प्रतिदिन एक घंटा गीता पाठ करवाने का जो निर्णय लिया है।

क्योड़क में यज्ञोपवीत कार्यक्रम आयोजित

कैथल (हप्र) : श्रावणी उपाकर्म के अवसर पर आर्य महासंघ के तत्वावधान में आर्य समाज क्योड़क द्वारा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। मंच संचालन करते हुए आर्य मास्टर जोगिंद्र ने कार्यक्रम का परिचय दिया। मुख्य वक्ता आचार्य हनुमत प्रसाद उपाध्याय ने जीवन में स्वाध्याय का महत्व बताया। उन्होंने बताया कि श्रावणी पर्व बहुत प्राचीन त्योहार है, इस दिन यह परंपरा है कि जो शिक्षा ग्रहण करने के लिए गुरुकुल में प्रवेश पाता है, उसका उपनयन अर्थात यज्ञोपवीत संस्कार किया जाता है। जो पहले ही यज्ञोपवीत धारण किये हुए है, वह इस दिन यज्ञोपवीत बदलता है। कार्यक्रम में आर्य छात्र सभा के महासचिव आर्य कप्तान ने कहा कि बच्चों को धार्मिक बनायें, उन्हें आर्य बनाएं। इस मौके पर 250 आर्य और आर्याओं ने संकल्प लिया कि वे रोज दोनों समय संध्या और उपासना करेंगे।

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