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न हुई पढ़ाई ताे गुरुजी ने पगार लौटाई

12:00 PM Jul 08, 2022 IST

ऐसे आरोप अक्सर लगते रहते हैं कि फलां विभाग में अधिकारी काम नहीं करते मगर पूरा वेतन व भत्ते लेते रहते हैं। हाल-फिलहाल में जगह-जगह आय से अधिक संपत्ति के मामले उजागर होते रहते हैं। ऐसे दौर में यह बात चौंकाती है कि एक सहायक प्राध्यापक ने अपने करीब तीन साल के वेतन को यह कहकर लौटा दिया कि उन्होंने छात्रों को पढ़ाया ही नहीं है तो वेतन किस बात का लें। सहायक प्राध्यापक ने करीब तीन साल के वेतन के 23 लाख रुपये का चेक विश्वविद्यालय को लौटा दिया है। बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित भीमराव अंबेडकर बिहार यूनिवर्सिटी के डॉ. ललन कुमार ने यूनिवर्सिटी को पत्र लिखकर मांग की थी कि उनकी नियुक्ति ऐसे काॅलेज में हो जहां वे छात्रों को मन लगाकर पढ़ा सकें। दरअसल, एक सामान्य किसान परिवार से आने वाले ललन कुमार ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई बिहार से करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन व जेएनयू से पीजी की पढ़ाई पूरी की और दोनों जगह टॉपर भी रहे। फिर सितंबर, 2019 को बिहार लोकसेवा आयोग के जरिये असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में उनकी नियुक्ति हुई। लेकिन व्यवस्था में व्याप्त विसंगतियों के चलते उच्च मैरिट व रैंक की अवहेलना करते हुए कम नंबर वालों को पीजी व अच्छे कालेज दे दिये गये। वहीं बेहतर रैंकिंग वालों को सामान्य कॉलेजों में भेज दिया गया, जहां गिनती के छात्र आते हैं।

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बकौल ललन कुमार, वे लगातार स्थानांतरण की मांग करते रहे हैं कि उन्हें वहां भेजा जाये जहां ज्यादा छात्रों को पढ़ा सकें। लेकिन लगातार प्रयास करने के बाद कालांतर निराश होकर उन्होंने यह कदम उठाया। उन्होंने 25 सितंबर, 2019 से लेकर मई, 2022 तक प्राप्त अपनी सैलरी विश्वविद्यालय को चेक द्वारा वापस कर दी। उनका मानना रहा है कि बिना छात्रों को पढ़ाए वेतन लेना अनैतिक है। वहीं विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि ऐसा नहीं है कि उनकी कक्षा में छात्र नहीं आते। यह कोरोना काल का भी समय था जब कालेज बंद भी रहे। वे ललन कुमार के इस कदम को तबादला करवाने का दबाव मानते हैं।

एक बात तो साफ है कि डॉ. ललन कुमार मेधावी छात्र रहे हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कालेज तथा जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में उन्होंने टॉप किया। स्नातक स्तर पर अकादमिक उत्कृष्टता के लिये उन्हें पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के हाथों से अवॉर्ड मिल चुका है। साथ ही एमफिल व पीएचडी में उनकी मेधा मुखर हुई। फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से एमफिल करने के बाद उन्हें नेट जेआरएफ भी मिला। लेकिन उनकी प्रतिभा को नजरअंदाज करके निचले स्तर पर उन्हें पढ़ाने को कहा गया।

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बहरहाल, मामला बड़ा रोचक है क्योंकि अब तक शिक्षकों पर इस बात के आरोप लगते रहे हैं कि छात्र-छात्राओं को लेकर शिक्षकों का रवैया संवेदनहीन होता है। वे पढ़ाने में रुचि नहीं लेते। लेकिन बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर बिहार वि.वि. के ललन कुमार का मामला ठीक उलट है, जो कहते हैं मैंने तो छात्रों को पढ़ाया ही नहीं, तनख्वाह किस बात की लूं? अन्य बातें समान रहें तो मामला प्रेरक भी है और अपने पेशे के नैतिक दायित्वों को भी पुष्ट करता है। मूल रूप से वैशाली जिले के ललन कहते भी हैं कि मैं अपने शिक्षक पेशे के साथ न्याय नहीं कर पा रहा हूं, इसीलिए वेतन विश्वविद्यालय को लौटा दिया है। ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि उन्होंने यह राशि कैसे जुटाई? इस पर उनका कहना है कि मैंने अपने मित्रों व सहयोगियों के योगदान से यह धनराशि एकत्र की है। उनका मानना है कि मौजूदा शिक्षण स्थितियों में उनकी अकादमिक प्रगति अवरुद्ध हो रही है। सही मायनों में करिअर को गति नहीं मिल पा रही है। कहीं न कहीं शैक्षिक दायित्वों का ईमानदारी से पालन न कर पाने के चलते वेतन लेना अनैतिक ही कहा जायेगा।

दरअसल, नीतीश्वर सिंह कॉलेज में नियुक्ति पर ललन कुमार को महसूस हुआ कि यहां अकादमिक माहौल ऊर्जावान नहीं है। दाखिला लेने वाले छात्र भी पढ़ाई में रुचि नहीं लेते। वहीं एक टीस यह भी थी कि अच्छा रैंक हासिल करने के बावजूद उन्हें स्नातक स्तरीय कक्षाओं को पढ़ाने का दायित्व दिया गया है। कई साल वे तबादला करवाने को प्रयासरत रहे। उन्होंने आवेदन किया लेकिन छह बार तबादले होने के बावजूद तबादला सूची से उनका नाम काट दिया गया। बल्कि एक बार तो उन्होंने अनशन तक की चेतावनी दी थी। इसके बाद उन्होंने अपने दो साल व नौ महीने के कार्यकाल के वेतन 23 लाख 82 हजार रुपये का चेक लौटाने का फैसला किया। वहीं विश्वविद्यालय के अधिकारी कह रहे हैं ललन कुमार अपने तबादले को लेकर परेशान थे, इसीलिए उन्होंने अपना वेतन लौटाया। हालांकि, उनका चेक स्वीकार नहीं किया गया है। साथ ही इस प्रकरण की जांच की बात कर रहे हैं। बहरहाल ललन कुमार सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियां बटोर रहे हैं।

वहीं ललन कुमार अपनी बात पर कायम हैं और कह रहे हैं कि यहां पर्याप्त छात्रों के न होने पर काम करना मेरे लिये अकादमिक मृत्यु के समान है। वहीं विश्वविद्यालय के अधिकारी दलील दे रहे हैं कि किसी प्रोफेसर द्वारा सैलरी वापस करने का कोई प्रावधान नहीं है। इस प्रकरण की जांच कराई जायेगी। वे जहां चाहते हैं उनका तबादला किया जाएगा।

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