Guru Dutt’s 100th Birth Anniversary : देवी दत्त ने भाई और गुरु को किया याद, कहा- उन्होंने मुझे सबकुछ सिखाया
मुंबई, 9 जुलाई (कोमल पंचमटिया/भाषा)
गुरुदत्त का मिजाज फिल्मों के सेट पर चुटकियों में बदल जाया करता था, लेकिन वह लोगों का दिल जीतने में भी माहिर थे। देवीदत्त ने अपने बड़े भाई गुरुदत्त की 100वीं जयंती पर उन दिनों के किस्सों को याद करते हुए यह बात कही।
देवीदत्त अपने भाई के हर पहलू व मिजाज से वाकिफ थे। गुरुदत्त ने भारतीय सिनेमा को ‘प्यासा', ‘कागज के फूल', ‘साहिब बीबी और गुलाम' जैसी कई बेहतरीन फिल्में दी हैं। देवीदत्त ने बताया कि वह (गुरुदत्त) बेहद प्यारे मनुष्य थे। उन्हें बहुत गुस्सा आता था। उनके दिल में जो भी होता था, वह बोल देते थे, लेकिन कुछ ही क्षणों में वह दूसरे व्यक्ति को यह अहसास दिला देते थे कि कुछ गलत हुआ ही न हो। वह लोगों का दिल जीतने में माहिर थे।
देवीदत्त ने बताया कि उन्होंने अपनी शादी वाले दिन गुरुदत्त की उपहार में दी गई घड़ी को अपने पास संभाल कर रखा हुआ है। मैंने अब भी उनकी दी हुई घड़ी को संभाल के रखा हुआ है, लेकिन मैं उसे अब नहीं पहनता हूं। गुरुदत्त का 1964 में 39 वर्ष की आयु में निधन हुआ था और उस समय वह देवीदत्त से 13 वर्ष बड़े थे।
देवीदत्त ने बताया कि वह (गुरु) मेरे साथ बच्चों की तरह व्यवहार करते थे। वह सबके सामने मेरी बेइज्जती करते थे इसलिए मैं बहुत रोता था। मैं अपनी मां से कहता था कि मेरा भाई कैसा है? जब मेरी मां उनसे पूछती थी तब वह कहते थे कि मैं ऐसा इसलिए करता हूं क्योंकि यह मेरा भाई है और इसे अच्छा निर्माता बनना है।
देवीदत्त ने ‘आर-पार', ‘मिस्टर एंड मिसेज 55', ‘सीआईडी', ‘सैलाब', ‘कागज के फूल', ‘चौदहवीं का चांद', ‘साहिब बीबी और गुलाम' और ‘बहारें फिर भी आएंगी' जैसी फिल्मों में बतौर प्रोडक्शन मैनेजर काम किया था। यह पूछने पर कि क्या गुरुदत्त दूसरों के विचारों और सुझावों को स्वीकार करते थे, देवीदत्त ने कहा कि उन्होंने अपने भाई के सामने कभी बोलने की हिम्मत नहीं जुटाई।