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महान जीवन मूल्यों के प्रणेता गुरु अर्जुन देव

06:43 AM Jun 10, 2024 IST
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योगेश कुमार गोयल
सिख धर्म में कुल दस गुरु हुए हैं, जिनमें पांचवें गुरु थे धर्म रक्षक और मानवता के सच्चे सेवक अर्जुन देव जी। सिख धर्म में उनके बलिदान को सबसे महान माना जाता है। इस वर्ष गुरु अर्जुन देव जी का शहीदी दिवस 10 जून को मनाया जा रहा है। उनकी शहादत को ‘छबील दिवस’ के रूप में भी मनाया जाता है।
अर्जुन देव सिख धर्म के पहले शहीद थे और उनकी शहादत को स्मरण करने तथा उन्हें सम्मानित करने के लिए ही यह दिन चिह्नित किया गया। अमृतसर के गोइंदवाल साहिब में जन्मे अर्जुन देव के मन में सभी धर्मों के प्रति सम्मान था और वे सदैव संगत की सेवा में लगे रहते थे। अर्जुन देव के नाना गुरु अमरदास सिखों के तीसरे तथा पिता गुरु रामदास सिखों के चौथे गुरु थे। वर्ष 1581 में पिता गुरु रामदास ने 18 वर्ष की आयु में अर्जुन देव को अपने स्थान पर सिखों का पांचवां गुरु नियुक्त किया था। गुरु अर्जुन देव के पुत्र हरगोविंद सिंह उनके बाद सिखों के छठे गुरु बने।
शांत व गंभीर स्वभाव के स्वामी तथा धर्म के रक्षक गुरु अर्जुन देव जी को अपने युग के सर्वमान्य लोकनायक का दर्जा प्राप्त है। उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में कभी किसी को कोई दुर्वचन नहीं कहा। ब्रह्मज्ञानी माने जाने वाले गुरु अर्जुन देव को आध्यात्मिक जगत में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। वह आध्यात्मिक चिंतक और उपदेशक के साथ ही समाज सुधारक भी थे, जो सती प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ भी डटकर खड़े रहे तथा अपने 43 वर्षों के जीवनकाल में उन्होंने जीवनपर्यन्त धर्म के नाम पर आडम्बरों तथा अंधविश्वासों पर कड़ा प्रहार किया।
ध्यान लगाने की विधि उन्होंने अपने मामा मोहनजी से जबकि गुरुमुखी की शिक्षा अपने नाना गुरु अमरदास जी से, संस्कृत पंडित बेणी से, गणित की शिक्षा अपने मामा मोहरीजी से तथा देवनागरी गोइंदवाल साहिब की धर्मशाला में हासिल की थी। अमृतसर सरोवर के मध्य में ‘हरमंदिर साहिब’ गुरुद्वारे की नींव गुरु अर्जुन देव ने ही 1588 में रखवाई थी, जो मौजूदा समय में स्वर्ण मंदिर के नाम से विश्व प्रसिद्ध है। 400 से भी अधिक वर्ष पुराने इस गुरुद्वारे का नक्शा स्वयं गुरु अर्जुन देव ने तैयार किया था, जिसकी नींव लाहौर के सूफी संत साईं मियां मीर जी से रखवाई गई थी।
जब गुरु पिता रामदास जी ने उन्हें सिखों का पांचवां गुरु बनाया तो गद्दी पर बैठने के बाद उनके मन में विचार आया कि क्यों न सभी गुरुओं की वाणी का संकलन कर एक ग्रंथ बनाया जाए। गुरुजी ने सभी गुरुओं की वाणी के अलावा अन्य धर्मों के प्रमुख संतों के भजनों को भी संकलित कर एक ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ बनाया, जो मानव जाति को सबसे बड़ी देन मानी गई है।
गुरु ग्रंथ साहिब जी का सम्पादन गुरु अर्जुन देव ने भाई गुरदास की सहायता से किया था, जिसमें रागों के आधार पर संकलित वाणियों का इस प्रकार वर्गीकरण किया गया, जिसे देखते हुए इसे मध्यकालीन धार्मिक ग्रंथों में बेहद दुर्लभ माना जाता है।
गुरु अर्जुन देव के एक बेहद लोकप्रिय आध्यात्मिक व्यक्ति बनने के बाद विभिन्न धर्मों और आस्थाओं के लोग उनसे मिलने और उनका आशीर्वाद लेने आने लगे और सिख धर्म का लगातार विकास होने लगा। बड़ी संख्या में हिंदू और मुसलमान भी उनके अनुयायी बन गए और सिख धर्म जल्द ही मध्यकालीन पंजाब का प्रमुख लोकप्रिय धर्म बन गया।
अकबर के देहांत के बाद दिल्ली का शासक बना जहांगीर, जिसे अर्जुन देव फूटी आंख नहीं सुहाते थे। जहांगीर ने 28 अप्रैल, 1606 को उन्हें सपरिवार पकड़ने का फरमान जारी कर दिया। आखिरकार लाहौर में गुरुजी को बंदी बना लिया गया। 30 मई, 1606 को गुरु अर्जुन देव को लाहौर में भीषण गर्मी के दौरान लोहे के बुरी तरह तपते तवे पर बिठाकर शहीद कर दिया गया। उन्हें जंजीरों से बांधकर रावी नदी में फेंक दिया गया लेकिन उनका शरीर रावी में विलुप्त हो गया। रावी नदी में जिस स्थान पर गुरुजी का शरीर विलुप्त हुआ, वहीं गुरुद्वारा डेरा साहिब का निर्माण किया गया, जो अब पाकिस्तान में है।
सिख धर्म में पहले शहीद गुरु अर्जुन देव ने मानवता और जीवन मूल्यों के लिए अपनी शहादत देकर समस्त मानव जाति को यही संदेश दिया कि अपने धर्म और राष्ट्र के गौरव तथा महान जीवन मूल्यों के लिए आत्म-बलिदान देने को सदैव तत्पर रहना चाहिए।

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