हर दौर में गुलज़ार
कंचन जायसवाल
रास्ते कब गर्द हो जाते हैं और मंज़िल सराब। हर मुसाफ़िर पर तिलिस्म-ए-रहगुज़र खुलता नहीं। शहर फ़ैज़ाबाद में गुलज़ार एक रोज़ जब आते हैं तो धूल-मिट्टी, तोड़-फोड़ से गुज़र रहे शहर को, एक पल के लिए ही सही, थोड़ा क़रार आ जाता है। गुलज़ार अज़ीम फनकार, शायर, उम्दा इंसान, दिलकश आवाज़ के मालिक। वह जब सफेद लिबास में, अपने पुर-ख़ुलूस अंदाज़ में महफिल में आते हैं तो इक बारीक-सी खुशी वहां मौजूद हर आम-ओ-खास में पसर जाती है। गुलज़ार कहते भी हैं तमाम पुरस्कारों, इनामों से मुझे वह खुशी नहीं मिलती जो मुझे अपने चाहने वालों के बीच आकर मिलती है।
आज बच्चे भी अपने बीच गुलज़ार को पाकर अभिभूत हैं। वह उनके लिखे गानों को अपनी आवाज दे रहे हैं– ‘तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी हैरान हूं मैं, हैरान हूं/ तेरे मासूम सवालों से परेशान हूं, मैं परेशान हूं...’ बच्चे खुश हैं, यह यादगार पल है, अपने फेवरेट ‘मोगली’ वाले गुलज़ार को अपने बीच पाकर। गुलज़ार भी बांहें फैलाकर उन्हें अपने पास समेट लेते हैं। ये पल शायद उनके लिए भी यादगार हैं। वो ढेर सारा निश्छल प्यार, छलछलाती खुशी अपनी बांहों में समेट लेना चाहते हैं।
बातचीत में गुलज़ार बताते चलते हैं कि ‘जंगल-जंगल बात चली है पता चला है’ गाने में चड्ढी शब्द कितना मौजूं है क्योंकि जंगल में रह रहे उस बच्चे की देह पर केवल चड्ढी है और यह शब्द उस माहौल के औचित्य को निखारता है। इसी प्रकार ‘लकड़ी की काठी/ काठी का घोड़ा’ गाने में घोड़े की जो पदचाप है टक बक-टक बक वह बंगाली रचना आबोल-ताबोल से प्रेरित है, मगर गुलज़ार इस शब्द को रिक्रिएट करते हैं।
डूबते हुए सूरज की लालिमा लाल चुनरी-सी फैली हुई है, कोई इसे गुलाल कहकर अपनी हथेलिये में ले अपनी माशूका के गाल लाल कर देगा और कोई कहेगा कि कैसे पानी में लाल गोला डूब गया और लाल आग का सागर पल भर को बन गया। सबके अपने-अपने तजुर्बे हैं और इन तजुर्बों को वजन-जीवन के तमाम पड़ावों से गुज़र कर ही मिलता है जीवन में अनुशासन और अपने काम से बेशुमार प्यार को गुलज़ार ज़रूरी मानते हैं। जब पूछा जाता है कि ‘बीड़ी जलइले जिगर से पिया’ जैसा गाना भी आपने लिखा। ये कैसे संभव हुआ। गुलज़ार बताते हैं कि गाने के बोल में बीड़ी की जगह सिगार जलइले या सिगरेट जलइले कर देता तो यह बड़ा ही अटपटा लगता है। बीड़ी जलइले ही सटीक लगा, इसलिए यह संभव हुआ। अपनी फिल्मों में गुलज़ार ने स्त्री संसार की जटिलता, उनके संघर्ष, उनके सवालों और उनकी आजादी को विषय बनाया है। गुलज़ार मानते हैं कि इंसान का अच्छा होना सबसे ज़रूरी है। ख़राब शायर हो तो चल जाएगा, मगर इंसान ख़राब नहीं होना चाहिए।
साभार : शब्दांकन डॉट कॉम