For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

जलवायु परिवर्तन से पीने योग्य नहीं रहेगा भूजल

08:17 AM Aug 20, 2024 IST
जलवायु परिवर्तन से पीने योग्य नहीं रहेगा भूजल

मुकुल व्यास

दुनिया में लगभग हर चार में से एक व्यक्ति जीवित रहने के लिए पृथ्वी की सतह के नीचे मौजूद जलाशयों पर निर्भर है क्योंकि साफ पानी की झीलों, नदियों और बांधों तक सभी लोगों की पहुंच नहीं है। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि सदी के अंत तक लाखों लोग पानी की इस मामूली आपूर्ति से भी वंचित हो सकते हैं क्योंकि बढ़ते तापमान के कारण उथले भूजल के विषाक्त होने का खतरा है। शोधकर्ताओं की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने वैश्विक तापमान वृद्धि के विभिन्न परिदृश्यों के तहत दुनिया भर में भूजल स्रोतों के तापमान परिवर्तनों को सटीक संख्या में बताने के लिए ऊष्मा परिवहन का एक विश्व-स्तरीय मॉडल विकसित किया है। सबसे खराब स्थिति में, 2100 में लगभग 59 करोड़ लोग ऐसे जल स्रोतों पर निर्भर हो सकते हैं जो पीने योग्य पानी के लिए सबसे कड़े मानकों को पूरा नहीं करते हैं। इस समय गर्मी की लहरें, बर्फ की पिघलती हुई टोपियां और समुद्रों का बढ़ता स्तर नियमित रूप से सुर्खियां बटोर रहे हैं। लेकिन हमारा ध्यान भूमि पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों की तरफ नहीं जाता।
जलवायु परिवर्तन पर चर्चा करते हुए हमारा फोकस मौसम की घटनाओं और पानी की उपलब्धता पर रहता है। लेकिन हमें भूजल पर पड़ने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे में अधिक व्यापक रूप से सोचने की आवश्यकता है। यह सच है कि हमारे पैरों के नीचे की चट्टान और मिट्टी की परतें समुद्री जल की गर्मी को अवशोषित करने की क्षमता से मेल नहीं खाती हैं। फिर भी,यह आश्चर्यजनक है कि भूजल के गर्म होने के परिणामों पर इतना कम ध्यान दिया गया है, खासकर जब पानी की कमी और रिचार्ज (पुनर्भरण) दर पर इतनी अधिक चर्चा होती है। सतह के ठीक नीचे छिद्रपूर्ण चट्टानों के भीतर फंसा पानी घुले हुए खनिजों, प्रदूषकों और संभावित रोगजनकों से भरा हो सकता है। लेकिन बहुत बड़ी आबादी के समक्ष इस प्रदूषित जल पर निर्भर रहने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं है। इन भूमिगत जलाशयों को सिर्फ़ एक या दो डिग्री गर्म करने से परिणाम भयावह हो सकते हैं। इससे पर्यावरण में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है और खतरनाक बैक्टीरिया के विकास को बढ़ावा मिल सकता है,या आर्सेनिक और मैंगनीज जैसी भारी धातुओं की अत्यधिक मात्रा पानी मे घुल सकती है।
इस अध्ययन की मुख्य लेखिका और जर्मनी के कार्लश्रु इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की भू-विज्ञानी सुजैन बेंज के अनुसार दुनिया मे पहले से ही लगभग 3 करोड़ लोग ऐसे क्षेत्रों में रह रहे हैं,जहां भूजल पीने के पानी के सख्त दिशा-निर्देशों में निर्धारित तापमान से ज्यादा गर्म है। इसका मतलब है कि बिना ट्रीटमेंट के वहां का पानी पीना सुरक्षित नहीं है। आसपास पर्याप्त आकार के सतही जलाशयों वाली आबादी के लिए भी गर्म भूजल उन प्रमुख कारकों को बदल सकता है जो पानी को मानव उपभोग के लिए सुरक्षित रखते हैं। 7.7 करोड़ से 18.8 करोड़ लोगों के ऐसे क्षेत्र में रहने का अनुमान है जहां भूजल 2100 तक पीने योग्य मानकों को पूरा नहीं कर पाएगा। इस अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि भूजल की रक्षा के लिए कार्रवाई करना और भूजल पर जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभाव का मुकाबला करने के लिए स्थायी समाधान खोजना कितना आवश्यक है।
इस बीच, जलवायु परिवर्तन से संबंधित एक अन्य अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दुनिया में मीथेन उत्सर्जन में वृद्धि पर चिंता व्यक्त की है। रिकॉर्ड तोड़ गर्मी, लोगों की गिरती सेहत, गायब होती बर्फ की चादरों और अप्रत्याशित मौसम के रूप में जलवायु परिवर्तन की बड़ी चेतावनियां हमें लगातार मिल रही हैं। फिर भी हम वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती मात्रा को उत्सर्जित कर रहे हैं। इससे हमारा अस्तित्व खतरे में पड़ रहा है। विशेषज्ञों की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में बताया गया है कि 2006 से वैश्विक मीथेन उत्सर्जन बढ़ रहा है। 2020 से इसमें तेजी आई है। यदि हम बहुत जल्द कुछ कठोर कदम नहीं उठाएंगे तो उत्सर्जन की यह प्रवृत्ति जारी रहेगी।
नए अध्ययन के शोधकर्ताओं ने मीथेन उत्सर्जन रोकने के लिए रणनीतियां तैयार की हैं जिनका उपयोग विभिन्न देश उचित कार्रवाई करने के लिए कर सकते हैं। इसमें मदद करने के लिए उन्होंने एक ऑनलाइन टूल भी विकसित किया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि मीथेन उत्सर्जन में यह निरंतर वृद्धि मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन के लगातार उपयोग के कारण है। मीथेन सीधे तेल,गैस और कोयले की ड्रिलिंग और प्रोसेसिंग द्वारा उत्पादित होती है। अब एक नई बात यह है कि गर्म जलवायु के कारण प्राकृतिक आर्द्रभूमि से मीथेन का बढ़ता उत्सर्जन ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि कर रहे हैं। लैंडफिल, पिघलते हुए पर्माफ्रॉस्ट (स्थायी तुषार भूमि) और पशुधन से भी मीथेन का उत्पादन होता है। अमेरिका में ड्यूक विश्वविद्यालय के जलवायु विशेषज्ञ ड्रू शिंडेल का कहना है कि फिलहाल इन स्रोतों से उत्सर्जन में योगदान मामूली है। हालांकि इन पर भी बारीकी से नज़र रखने की ज़रूरत है।
शोधकर्ताओं ने अपने पेपर में लिखा है कि जलवायु परिवर्तन को सीमित करने के लिए दुनियाभर के प्रयास मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड पर केंद्रित हैं। चूंकि मानव जाति कई दशकों से जलवायु परिवर्तन को पर्याप्त रूप से निपटने में विफल रही है, इसलिए अब वार्मिंग को तय लक्ष्यों से नीचे रखने के लिए हमें सभी प्रमुख जलवायु प्रदूषकों पर अंकुश लगाने पड़ेंगे। इस समय हमारे वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में मीथेन की मात्रा बहुत कम है,लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मीथेन एक अधिक शक्तिशाली ग्रीन हाउस गैस है। हम जानते हैं कि दुनिया के गर्म होने में मीथेन का भी एक बड़ा योगदान है जो कार्बन डाइऑक्साइड की तरह ही गर्मी को कैद करती है। यह जमीन पर ओजोन के निर्माण में भी योगदान देती है, जिससे श्वसन संबंधी बीमारियों और हृदय रोगों के कारण मृत्यु का जोखिम बढ़ जाता है।
अध्ययन में पाया गया है कि इन सभी मीथेन स्रोतों पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। कार्बन डाइऑक्साइड में कमी लाने के लक्ष्यों के साथ-साथ मीथेन में कमी के लक्ष्यों को भी लागू किया जाना चाहिए। इसके लिए नई प्रौद्योगिकियों और नीतियों को लागू करने की आवश्यकता है। शोधकर्ताओं ने लिखा है कि इस दशक में मीथेन उत्सर्जन में तेजी से कमी लाना निकट भविष्य में गर्मी को धीमा करने और कम वार्मिंग के कार्बन बजट को पहुंच के भीतर रखने के लिए आवश्यक है। कार्बन बजट से अभिप्राय प्रति व्यक्ति कार्बन डाइऑक्साइड की औसत मात्रा से है, जिसे वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए उत्पादित किया जा सकता है।

Advertisement

लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं।

Advertisement
Advertisement
Advertisement