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पास-पड़ोस से गायब हो रहीं किराना दुकानें

05:30 AM Nov 22, 2024 IST
पास पड़ोस से गायब हो रहीं किराना दुकानें
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प्रेम प्रकाश

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अमेरिका में नये राष्ट्रपति चुने जाने के बाद इस मुद्दे पर खूब सारी चर्चा हुई कि भारत के साथ उसके संबंध कैसे रहेंगे। दिलचस्प है कि विशेषज्ञों के बीच कूटनीतिक और रक्षा मसलों पर थोड़ी मत भिन्नता जरूर दिखी, पर आर्थिक मुद्दों पर ज्यादातर की राय एक जैसी थी। इसकी बड़ी वजह यह है कि भारत दुनिया के लिए आज भी बड़ा बाजार है। उपभोक्ताओं के मामले में हम काफी आगे हैं और कई भावी संभावनाओं से भी लैस हैं। यही नहीं, उपभोग की भारतीय परंपरा और प्रवृत्ति भी बाजार को भाती है।
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के मुताबिक भारत का सतत उपभोक्ता सामान बाजार वित्त वर्ष 2029-30 तक पांच लाख करोड़ रुपये का हो जाएगा और 2027 तक हम दुनिया का चौथा सबसे बड़ा बाजार होंगे। इससे देश के भीतर एक नई स्थिति भी पैदा हो रही है। क्विक कॉमर्स की शक्ल में घर तक उपभोक्ता वस्तुओं की खरीद ने भारत की पारंपरिक बाजार व्यवस्था को पूरी तरह बदलकर रख दिया है।
भारत की घरेलू बाजार व्यवस्था किस तेजी के साथ बदल रही है, वह इस बात से समझा जा सकता है कि बीते एक साल में कम से कम दो लाख किराना स्टोर या पड़ोस के छोटे रिटेल आउटलेट बंद हो चुके हैं। यह तथ्य इसी माह आल इंडिया कंज्यूमर प्रोडक्ट्स डिस्ट्रीब्यूटर्स फेडरेशन (एआईसीपीडीएफ) के अध्ययन में सामने आया है। इसके मुताबिक, भारतीय उपभोक्ता तेजी से ब्लिंकिट, ओटीपी और जेप्टो जैसे ऑनलाइन डिलीवरी प्लेटफार्मों की ओर रुख कर रहे हैं। यह अध्ययन देश के करीब 1.3 करोड़ ऐसे स्टोर के साथ किया गया है, जो किराना और पर्सनल केयर के सामान बेचते हैं। अध्ययन बताता है कि बंद होने वाले स्टोर्स में 45 प्रतिशत महानगरों के हैं। टियर 1 शहरों के 30 और टियर 2 व 3 शहरों के 25 प्रतिशत स्टोर्स बंद हुए हैं। क्विक कॉमर्स फर्म ग्राहक को लुभाने के लिए प्रीडेटरी प्राइसिंग या भारी छूट दे रही हैं और लागत से कम दाम पर बेच रही हैं। इसने एक अनफेयर प्लेइंग फील्ड बना दिया है, जिससे ग्राहक बेस और किराना स्टोरों की मुनाफे की क्षमता गिर रही है। भारत में बाजार और समाज का एक साझा चरित्र भी है, जो हमारे रोजमर्रा की जिंदगी में साफ तौर पर उभरता है। कस्बे-मोहल्ले से लेकर पास-पड़ोस में खुले किराना दुकानों की सबसे बड़ी ताकत उनकी सामाजिक विश्वसनीयता और आत्मीय व्यवहार रहा है। लेकिन यह सब मुनाफे और बचत की नई बाजार व्यवस्था में औंधे मुंह गिर रही है।
कायदे से नई बन रही स्थिति ने हमारे घर-परिवार और समाज को नए तरह से गढ़ना शुरू कर दिया है। इस स्थिति का ज्यादा गहराई से अध्ययन किया जाना चाहिए कि बाजार के साथ जुड़े हमारे सामाजिक संबंध और सरोकार अगर कमजोर पड़ते हैं, तो इसका असर हमारे विचार और स्वभाव में क्या पड़ेगा। ऐसी ही कुछ चिंताओं को ध्यान में रखते हुए हिंदुस्तान यूनिलीवर, डाबर इंडिया और नेस्ले इंडिया सहित प्रमुख कंपनियों के चार लाख खुदरा वितरकों का प्रतिनिधित्व करने वाली देश की सबसे बड़ी संस्था एआईसीपीडीएफ ने इस संबंध में वित्त, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय से मांग की है कि वह इस बदलाव को गहनता से देखे-समझे और नियंत्रित करे।
वैसे तो भारत के रिटेल बाजार के स्वरूप और प्रसार में परिवर्तन कोई नई बात नहीं है। बीते दो-ढाई दशकों में इस बारे में कई सारे तथ्य सामने आए हैं और नई बन रही स्थितियों के साथ भारतीय उपभोक्ता समाज लगातार अभ्यस्त भी होता जा रहा है। लेकिन बीते एक दशक में जो रुझान सामने आए हैं, वे चौंकाते हैं। वैसे भी ये बदलाव ऐसे समय में हुआ है जब भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) पहले से ही कथित स्ट्रेटेजिक प्राइसिंग और अन्य अनुचित प्रथाओं के लिए ऑनलाइन कॉमर्स प्लेयर्स की जांच कर रहा है। सीसीआई ने एक आंतरिक रिपोर्ट में पाया कि ई-कॉमर्स की प्रमुख कंपनियों अमेजॉन इंडिया और फ्लिपकार्ट ने अपने प्लेटफॉर्म पर चुनींदा विक्रेताओं को वरीयता देकर तय दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किया है।
साफ है कि हमारे पास-पड़ोस में किराना दुकानों के कुछ बचे-खुचे साइनबोर्ड हैं, वे भी अगले कुछ समय में उतर जाएंगे। ऐसे में भारतीय उद्योग और व्यापार जगत की यह चिंता मायने रखती है कि क्विक कॉमर्स फर्मों की आर्थिक रचना की जांच की जाए। कथित प्रीडेटरी प्राइसिंग जैसी रणनीति से आगे बढ़ने वाली इन फर्मों के लिए दिशानिर्देश तो बनने ही चाहिए, इस बारे में कानूनी चुस्ती भी जरूरी है।
इस लिहाज से वित्त मंत्री का यह आश्वासन महत्वपूर्ण है कि सरकार क्विक कॉमर्स और ई-कॉमर्स प्लेयर्स की स्ट्रेटेजिक प्राइसिंग से नुकसान उठाने वाले कारोबारियों के हितों की रक्षा के लिए गंभीरता से विचार करेगी। केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने भी ई-कॉमर्स क्षेत्र के बारे में इसी तरह की चिंता जताते हुए इन प्लेटफार्म्स को देश के भीतर निष्पक्ष रूप से संचालित करने की दरकार को माना है। बेहतर होगा कि सरकार की चिंता जल्द ही कारगर दिशानिर्देश और नीति के रूप में सामने आए ताकि स्थिति आगे और ज्यादा न बिगड़े।

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