खुशी की कसक
पहले विश्वयुद्ध में रूस का एक हवाई इंजीनियर पीटर दुर्घटना में घायल हो गया और उसकी एक टांग भी काटनी पड़ी। डॉक्टरों ने उन्हें लकड़ी की टांग लगा दी। पीटर ने स्वयं को सैन्य गतिविधियों में व्यस्त रखा। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय वह अस्पतालों में घायलों का हाल पूछते हुए उनका हौसला बढ़ा रहे थे। उन्होंने एक सैनिक से कहा, नकली टांग का एक फायदा तो यह है कि इस पर चोट लगने पर कुछ महसूस नहीं होता। यह कहते हुए उन्होंने उस घायल सैनिक को अपनी बेंत पकड़ा दी। घायल सैनिक ने जोश में पीटर की टांग पर दो-तीन बेंत जमा दी। पीटर हंसते हुए बोले, देखा नौजवान, इतनी मार का भी मुझ पर कोई असर नहीं हुआ। पीटर के हंसते हुए चेहरे को देखकर घायल सैनिकों पर अच्छा असर पड़ा। पीटर अपने सहायक अफसर के साथ कमरे से बाहर आ गए, वह दर्द से कराहते हुए अपनी टांग हाथों से दबाने लगे। सहायक ने पूछा, अंदर तो तुम हंस रहे थे। पीटर ने कहा, ‘मेरे भाई, उस नौजवान ने मेरी सही टांग पर ही बेंत से पिटाई कर दी। मैं उसे रोकता तो मेरा वहां जाना ही व्यर्थ हो जाता।’
प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी