राज्यपालों को सीमाओं में बने रहने के सर्वोच्च सबक
नयी दिल्ली, 8 अप्रैल (एजेंसी)
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि उनका 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखना संविधान का उल्लंघन है। अदालत ने इस कदम को अवैध और मनमाना बताते हुए राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखे गये विधेयकों को मंजूरी दे दी। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि इन विधेयकों को उसी तारीख से स्वीकृत माना जाएगा, जिस दिन इन्हें राज्यपाल के समक्ष दोबारा प्रस्तुत किया गया था।
इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने अपनी तरह के पहले निर्देश में राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए राज्यपालों के लिए समयसीमा भी तय कर दी। पीठ ने कहा कि किसी विधेयक पर मंजूरी रोक कर, उसे मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से राष्ट्रपति के लिए सुरक्षित रखने की अधिकतम अवधि एक माह होगी। यदि राज्यपाल ने मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना सहमति रोकने का फैसला किया है तो विधेयकों को तीन महीने के अंदर विधानसभा को लौटाया जाना चाहिए। राज्य विधानसभा द्वारा विधेयक को पुन: पारित किए जाने के बाद उसे पेश किए जाने पर राज्यपाल को एक महीने की अवधि में मंजूरी देनी होगी। पीठ ने आगाह किया कि समयसीमा का पालन नहीं होने पर अदालतों में न्यायिक समीक्षा होगी। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया और इसे ऐतिहासिक बताया। उन्होंने कहा, यह निर्णय केवल तमिलनाडु नहीं, बल्कि सभी राज्यों की लोकतांत्रिक जीत है।
‘पॉकेट वीटो’ नहीं अपना सकते
अदालत ने कहा, ‘राज्यपाल को यह ध्यान रखना चाहिए कि वे राज्य विधानसभा के काम में अवरोध पैदा कर जनता की इच्छा का दमन नहीं कर सकते।’ संविधान के अनुच्छेद 200 का हवाला देते हुए अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करना अनिवार्य है, और वे कोई ‘पॉकेट वीटो’ या पूर्ण वीटो नहीं अपना सकते।
विधेयकों को मंजूरी देना अनिवार्य पीठ ने कहा कि यदि कोई विधेयक दोबारा राज्यपाल के पास भेजा गया है और उसकी मूल प्रकृति में कोई बदलाव नहीं है, तो उसे स्वीकृति देना राज्यपाल की बाध्यता है। केवल उसी स्थिति में अपवाद हो सकता है, जब दूसरा विधेयक पहले से अलग हो।