असहनीय गर्मी से बचाव हेतु बनें सरकारी नीतियां
मुकुल व्यास
पृथ्वी ने लगातार 13 महीनों तक तापमान के रिकॉर्ड तोड़े हैं। हर महीने तापमान पूर्व-औद्योगिक औसत से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया है। एक नई रिपोर्ट के अनुसार जून, 2023 से हर महीना अपने पिछले महीने से ज्यादा गर्म रहा है जिससे जुलाई, 2023 और जून, 2024 के बीच वैश्विक औसत तापमान औद्योगिक क्रांति से पहले के तापमान से (1.64 डिग्री सेल्सियस) ज्यादा हो गया है। नई रिपोर्ट तैयार करने वाली यूरोपियन यूनियन की कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस के निदेशक कार्लो बुओनटेम्पो ने कहा कि यह सिर्फ सांख्यिकीय विषमता नहीं है। ये आंकड़े हमारी जलवायु में एक बड़े और निरंतर परिवर्तन को उजागर करते हैं।
भले ही चरम सीमाओं का यह विशिष्ट सिलसिला किसी बिंदु पर समाप्त हो जाए, लेकिन जलवायु के गर्म होने के साथ-साथ हम नए रिकॉर्ड टूटते हुए देखेंगे। जब तक हम वायुमंडल और महासागरों में ग्रीनहाउस गैसों को जोड़ना बंद नहीं करते, यह सिलसिला जारी रहेगा। दुनिया ने इस साल गर्मी का रौद्र रूप देखा है। दक्षिणी और पूर्वी एशिया, दक्षिणी पश्चिमी अमेरिका, मध्य अमेरिका और दक्षिण-पूर्वी यूरोप सहित दुनिया के कई हिस्सों को अत्यधिक गर्मी का सामना करना पड़ा है। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि यह काफी हद तक ग्लोबल वार्मिंग का ही नतीजा है।
उत्तरी भारत ने कई सप्ताह तक भीषण गर्मी झेली, जिसमें तापमान 44-45 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। अत्यधिक गर्मी जानलेवा हो सकती है। मार्च में भारत में गर्मी शुरू होने के बाद साढ़े तीन महीनों के दौरान अनेक लोगों की जानें गई। लू और गर्मी से मरने वालों की सही-सही संख्या का अंदाजा लगाना मुश्किल है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार गर्मी की वजह से 143 लोगों की मृत्यु हुई। लेकिन विभिन्न राज्यों से मिले आंकड़े बताते हैं कि हीट स्ट्रोक से मौत के पुष्ट और संदिग्ध मामले 400 से अधिक हैं। सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश में हुईं जबकि पुष्ट मामलों में दिल्ली सबसे आगे रहा। भारत में इस साल गर्मी असाधारण रूप से असहनीय रही। पिछले सालों की तुलना में लू इस बार अधिक तीव्र रही। गर्म हवाओं की अवधि भी सामान्य से अधिक रही। इस बार न सिर्फ दिन बल्कि रातें भी अच्छी-खासी गर्म रहीं। दिल्ली में जून के महीने में एक दिन रात का न्यूनतम तापमान 35.2 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया जो कि पिछले 60 वर्षों में दर्ज सबसे अधिक न्यूनतम तापमान है। लंबे समय से चल रही गर्मी के कारण बिजली की खपत के रिकॉर्ड भी टूटे। पानी के संकट के कारण लोगों की कठिनाइयां और भी बढ़ गईं।
भारत के अलावा दुनिया के दूसरे देशों में भी हीट स्ट्रोक और डिहाइड्रेशन से कई मौतें हुईं। सबसे भयानक त्रासदी सऊदी अरब में हुई जहां 1300 से अधिक हाजियों ने भीषण गर्मी में दम तोड़ दिया। उन दिनों वहां तापमान 50 डिग्री सेल्सियस के आसपास चल रहा था। शोध से पता चलता है कि उत्तरी गोलार्ध में गर्मी की खतरनाक लहरों के पीछे मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है और आने वाले दशकों में दुनिया को ऐसे ही मौसम का सामना करना पड़ेगा। जीवाश्म ईंधन के निरंतर जलने से वायुमंडल में अधिक कार्बन का उत्सर्जन होता है, जिससे हवा सूर्य से आने वाली अधिक गर्मी को ट्रैप कर सकती है। इससे औसत वैश्विक तापमान बढ़ता है।
दुनिया में तापमान वृद्धि की शुरुआत पश्चिमी देशों द्वारा कोयला और अन्य जीवाश्म ईंधन जलाने से हुई। वैज्ञानिक यह पता लगाने के लिए अध्ययन कर रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन ने किसी विशिष्ट गर्मी की लहर को कितना प्रभावित किया है। उन्होंने पिछले दशक में ऐसे सैकड़ों अध्ययन किए हैं, जिसमें कंप्यूटर सिमुलेशन के जरिए आज की मौसम प्रणालियों की तुलना की गई है। वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि यदि पिछली सदी में मनुष्यों ने वायुमंडल की केमिस्ट्री को नहीं बदला होता तो आज मौसम कैसा व्यवहार करता।
ग्लोबल वार्मिंग के अलावा, अन्य कारक और परिस्थितियां भी हीट वेव को प्रभावित कर सकती हैं। एल नीनो या ला नीना जैसी जलवायु प्रणालियां, क्षेत्रीय सर्कुलेशन पैटर्न के साथ-साथ एक बड़ा प्रभाव डाल सकती हैं। भूमि आवरण भी एक बड़ी भूमिका निभा सकता है, जिसमें अंधेरी सतह और निर्मित वातावरण परावर्तक सफेद सतहों या जंगलों या आर्द्र भूमि जैसी प्राकृतिक प्रणालियों की तुलना में अधिक गर्म होते हैं।
जलवायु प्रणाली में भूमि की महत्वपूर्ण भूमिका है। भूमि के इस्तेमाल में परिवर्तन से जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है। जलवायु परिवर्तन मानव स्वास्थ्य को संकट में डालने के अलावा प्राकृतिक प्रणालियों को भी प्रभावित कर रहा है। इसकी वजह से वर्षा, बाढ़ और समुद्री तूफान का पैटर्न बदल रहा है। जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं। वैज्ञानिकों का निष्कर्ष यह है कि जलवायु परिवर्तन पहले से ही गर्मी की लहरों को अधिक गर्म बना रहा है। उनकी फ्रीक्वेंसी बढ़ रही है और वे ज्यादा खतरनाक भी हो गई हैं। दुनिया 2100 तक 2.7 सेल्सियस की वृद्धि तक पहुंचने की राह पर है, जो 1.5 सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगी। सीमा पार करने पर वैज्ञानिकों ने विनाशकारी और अपरिवर्तनीय जलवायु प्रभावों की भविष्यवाणी की है।
भले ही आज सभी कार्बन उत्सर्जन रोक दिए जाएं, लेकिन दुनिया ने पहले ही इतना उत्सर्जन कर दिया है कि जलवायु परिवर्तन दशकों तक तापमान को ऊपर की ओर बढ़ाता रहेगा। जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल के वैज्ञानिकों के अनुसार दुनिया को 2030 तक 1995 के स्तर से उत्सर्जन में आधे की कटौती करनी चाहिए और 2050 तक शुद्ध शून्य पर पहुंचना चाहिए ताकि औसत वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक औसत से लगभग 1.5 डिग्री सेल्सियस ऊपर रखने का मौका मिल सके। शुद्ध शून्य उत्सर्जन अथवा नेट जीरो इमिशन का तात्पर्य उत्पादित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और वायुमंडल से बाहर निकाली गई ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के बीच एक समग्र संतुलन प्राप्त करना है।
दुनिया की सरकारों को उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य की हिफाजत के लिए बड़े उपाय करने होंगे। मानव शरीर अत्यधिक तापमान नहीं झेल सकता। गर्मी सबसे ज्यादा गरीब लोगों को प्रभावित करती है। आने वाले समय में तीव्र गर्मी के प्रभावों से मेहनतकश लोगों को बचाना होगा। इनमें किसान और श्रमिक शामिल हैं। धूप में काम करने वाले मजदूरों के लिए सरकार कार्य समय निर्धारित कर सकती है जिसमें अनिवार्य विश्राम शामिल है। विश्राम के लिए जगह-जगह कूलिंग सेंटर बनाए जा सकते हैं। सरकारों को यह भी सुनिश्चित करना पड़ेगा कि गर्मियों के दौरान बिजली और पानी की आपूर्ति में कोई बाधा न आए। यह सब करने के लिए सरकारों को अपने बजट में विशेष प्रावधान करना होगा और बड़े साहसिक कदम उठाने पड़ेंगे।
लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं।