सरकार आरबीआई से 3 लाख करोड़ रु. निकालना चाहती थी
नयी दिल्ली, 7 सितंबर (एजेंसी)
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने कहा कि वर्ष 2018 में सरकार में बैठे कुछ लोगों ने चुनाव से पहले ‘लोकलुभावन’ खर्चों के लिए केंद्रीय बैंक से दो-तीन लाख करोड़ रुपये हासिल करने के लिए उस पर ‘धावा’ बोलने की कोशिश की थी। इसका पुरजोर विरोध हुआ था।
आचार्य ने अपनी किताब में लिखा है कि 2019 के आम चुनावों से पहले सरकार अपने लोकलुभावन खर्चों की भरपाई के लिए आरबीआई से यह बड़ी रकम निकालने की कोशिश में थी। लेकिन आरबीआई इसके पक्ष में नहीं था, जिससे सरकार के साथ उसके मतभेद बढ़ गए थे। उस समय सरकार ने आरबीआई को निर्देश देने के लिए आरबीआई अधिनियम की धारा सात का इस्तेमाल करने की भी चेतावनी दी थी। आचार्य ने यह मामला सबसे पहले 26 अक्तूबर, 2018 को एक व्याख्यान में उठाया था। अब यह प्रकरण उनकी किताब ‘क्वेस्ट फॉर रिस्टोरिंग फाइनेंशियल स्टेबिलिटी इन इंडिया’ की नयी प्रस्तावना में भी प्रमुखता से उजागर हुआ है। इसमें सरकार की कोशिश को ‘केंद्र द्वारा राजकोषीय घाटे का पिछले दरवाजे से मौद्रीकरण’ बताया गया है। आचार्य ने वर्ष 2020 में पहली बार प्रकाशित अपनी किताब के नये संस्करण की प्रस्तावना में कहा, ‘सरकार में बैठे रचनात्मक मस्तिष्क’ वाले कुछ लोगों ने पिछली सरकारों के कार्यकाल में आरबीआई के पास जमा बड़ी रकम को सरकार के खाते में स्थानांतरित करने की योजना तैयार की थी।’