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श्रीकृष्ण लीलाओं से जुड़ा गोपाष्टमी पर्व

07:50 AM Nov 04, 2024 IST
श्रीकृष्ण लीलाओं से जुड़ा गोपाष्टमी पर्व
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राजेंद्र कुमार शर्मा
हिंदू सनातन संस्कृति में गाय सदा से पूजनीय रही है। मान्यता है कि गाय में 33 कोटि देवताओं का वास होता है, इसलिए गो पूजन से सभी देवता प्रसन्न होते हैं। गाय का सान्निध्य सकारात्मक सोच को विकसित करता है और अवसाद से मुक्ति प्रदान करता है। गाय को पूजनीय मानने और गो हत्या को जघन्य कृत्य कहने के पीछे का आधार पूर्णतः वैज्ञानिक है। गाय के दूध, गोमूत्र और गाय के गोबर अपने चिकित्सीय गुणों के कारण आयुर्वेद चिकित्सा में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इसीलिए इसकी रक्षा और पूजा का विधान तर्कसंगत और वैज्ञानिक है।

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देवी-देवताओं के साथ गो पूजन

गाय को विभिन्न रूपों में देवी-देवताओं के साथ जोड़कर पूजा जाता है, जैसे शिव के साथ नंदी का पूजन, भगवान इंद्र के साथ कामधेनु का पूजन और भगवान कृष्ण के साथ सभी गायों का पूजन। यह दर्शाता है कि भगवान श्रीकृष्ण का बाल्यकाल गायों को चराने और गो सेवा में गुजरा। महाराष्ट्र में गोवत्स द्वादशी, उत्तर भारत में गोवर्धन पूजा और गोपा अष्टमी ऐसे धार्मिक उत्सव हैं जो प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से गो सेवा का संदेश देते हैं।

गोपा अष्टमी की तिथि

इस वर्ष गोपा अष्टमी हिंदू पंचांग के अनुसार 9 नवंबर (शनिवार) को मनाई जाएगी। गोपा अष्टमी कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी उदया तिथि को धूमधाम से मनाई जाएगी। इस अनुष्ठान का केंद्र मथुरा, वृंदावन और ब्रज क्षेत्र रहता है।

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पर्व की मान्यताएं

हिंदू पुराणों के अनुसार, एक बार भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को भगवान इंद्र को वार्षिक भेंट चढ़ाने से रोक दिया। जब भगवान इंद्र को इस बात का पता चला, तो वे भगवान कृष्ण से बहुत क्रोधित हुए। क्रोध की उस घड़ी में भगवान इंद्र ने ब्रज में भयंकर वर्षा करने का निर्णय लिया। इसके बाद ब्रज में भारी वर्षा होने लगी। भगवान इंद्र के प्रकोप से ब्रजवासियों और पशुओं को बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी को उसके नीचे सुरक्षित कर दिया। लगातार सात दिनों तक भारी वर्षा के बाद भी जब ब्रजवासियों पर इंद्र के प्रकोप का कोई असर नहीं हुआ, तो इंद्र ने अपनी हार स्वीकार कर ली और वर्षा रोक दी। यह दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी थी। तभी से गोपा अष्टमी का पर्व मनाया जाता है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, जब कृष्ण भगवान ने अपने जीवन के छठे वर्ष में कदम रखा, तब उन्होंने अपनी मैया यशोदा से कहा, ‘मैया, अब मैं बड़ा हो गया हूं और बछड़े को चराने के बजाय मैं गाय चराना चाहता हूं।’ उनके हठ के आगे मैया को हार माननी पड़ी और मैया और नंद बाबा को गाय चराने के मुहूर्त के लिए शांडिल्य ऋषि के पास भेजा गया। यह एक सुखद आश्चर्य था कि यह शुभ मुहूर्त उसी दिन था जब नंद बाबा शांडिल्य ऋषि के पास गए, और वह दिन गोपा अष्टमी का था।

पूजा विधान और महत्व

गोपा अष्टमी के पावन पर्व पर गाय और उसके बछड़ों को सजाया जाता है। इसके बाद रोली और चंदन से तिलक लगाकर उन्हें फूल, फल, धूपबत्ती आदि अर्पित कर उनकी पूजा की जाती है। गाय की पूजा के बाद ग्वालों को यथाशक्ति दक्षिणा देकर उनका सम्मान और उनकी भी पूजा करने का विधान है। फिर गायों को उनका प्रिय हरा चारा और प्रसाद खिलाकर, उनकी परिक्रमा की जाती है। इस तरह से गो माता की पूजा करने से जीवन से नकारात्मकता दूर होकर सकारात्मकता का संचार होता है। गोपा अष्टमी के दिन भगवान कृष्ण और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना से शांति, समृद्धि और धन संपदा का आगमन होता है।

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