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‘इंडिया’ की गुगली

08:11 AM Jul 20, 2023 IST

मंगलवार के दिन भारतीय राजनीतिक परिदृश्य दिल्ली में एनडीए के 38 और बंगलुरू में विपक्ष के 26 दलों के सम्मेलनों से रोचक बन गया। कार्यक्रम के साथ मीडिया में भी खबरें समांतर चली। कहना कठिन है कि यह संयोग था या खबरों की दुनिया के लिये सुनियोजित प्रयास। बहरहाल, राजग ने संदेश दिया कि उसका ढांचा लोकतांत्रिक है और उसके बिछुड़े दल वापस लौट रहे हैं। बहरहाल, ये सम्मेलन दलों के संख्याबल का मुकाबला तो बन ही गया। एक बात तो तय है कि राजग से अलग हुए नीतीश कुमार के प्रयासों से पटना से शुरू हुआ विपक्षी एकता का अभियान अब सिरे चढ़ते नजर आ रहा है। कयास तो पहले ही लग रहे थे कि जब आम चुनाव में कुछ ही महीने बाकी हैं तो दो बार से बड़े बहुमत से मजबूत सरकार बना रहे राजग को चुनौती देने की विपक्षी कोशिश जरूर होगी। बहरहाल, पटना से बंगलुरू तक की यात्रा में विपक्षी एकजुटता में इतनी तरक्की तो हुई है कि गठबंधन को ‘इंडिया’ नाम मिल गया है। यानी विस्तार में इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव एलायंस नाम दिया है। जाहिर है विपक्षी थिंक टैंक ने एक गुगली राजग की तरफ उछाली है और ‘इंडिया’ शब्द का मनोवैज्ञानिक लाभ उठाने की कोशिश की है। हालांकि, विपक्षी एकता के सूत्रधार नीतीश कुमार गठबंधन के नाम में ‘भारत’ शब्द जोड़ने की वकालत कर रहे थे। इसी दिन दिल्ली में मोदी सरकार की दूसरी पारी में राजग की पहली बैठक का आयोजन और उसमें नये छोटे दलों का शामिल किया जाना बताता है कि विपक्षी एकजुटता को राजग हल्के में नहीं ले रहा है। एक बात तो तय है कि लोकसभा चुनाव तक राजग व साझा विपक्ष में मुकाबला दिलचस्प होने जा रहा है। जाहिरा तौर पर, बंगलुरू में विपक्षी दलों ने राजग पर आक्रमण के लिये उन मुद्दों को प्राथमिकता दी, जिन पर वे मोदी सरकार को घेरते रहे हैं। खासकर सांप्रदायिकता, महंगाई, लोकतंत्र की आधारभूत संस्थाओं की स्वायत्तता, बेरोजगारी और मणिपुर के मुद्दे पर राजग को घेरने की कोशिश हुई।
जाहिर है लोकसभा चुनाव में ये मुद्दे विपक्ष के हथियार होने वाले हैं। बहुत संभव है कि आगामी मानसून सत्र में विपक्षी एकजुटता का असर संसद में भी नजर आए। हालांकि, राजग नेतृत्व दिखाने का प्रयास कर रहा है कि वे इन एकजुटता के प्रयासों को गंभीरता से नहीं लेते हैं। इतना ही नहीं भाजपा अपने मुख्य एजेंडे कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने, अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लक्ष्य को हासिल करने के बाद मानसून सत्र में समान नागरिक संहिता पर विधेयक लाने को प्रतिबद्ध नजर आ रही है। वहीं दिल्ली में राजग सम्मेलन से पहले गठबंधन से छिटके रामविलास पासवान के राजनीतिक वारिस चिराग पासवान, जीतनराम मांझी, ओमप्रकाश राजभर को जिस तरह राजग में शामिल किया गया, उसका मकसद जनता को यही संदेश देना है कि राजग के साथी बिखरे नहीं हैं। वहीं पूर्वोत्तर आदि के तमाम छोटे दलों को एनडीए में शामिल करके संदेश देने का प्रयास हुआ है कि राजग के साथ दलों की संख्या विपक्ष से ज्यादा है। कहीं न कहीं विपक्षी एकजुटता को लेकर राजग गंभीर तो नजर आने लगा है, भले ही वह इस बात को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार न करे। बहरहाल बंगलुरू सम्मेलन को लेकर विपक्षी दल इस बात को अपनी उपलब्धि मान सकते हैं कि सोनिया गांधी की उपस्थिति में पटना सम्मेलन में अनमनी सी लग रही आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी तथा सपा की सक्रियता बता रही है कि विपक्ष अपने अस्तित्व के लिये एकजुटता को अपरिहार्य मान रहा है। तभी तो कई राज्यों में आमने-सामने रहने वाले राजनीतिक दल इस सम्मेलन में एक टेबल पर नजर आए। बहरहाल, कुछ कमेटियों व नीतियों पर तो विपक्षी दलों में सहमति भी बनी है, मगर अभी न्यूनतम साझा कार्यक्रम जैसे कई मुद्दों का निर्धारण होना है। साथ ही राज्यों में सीटों का बंटवारा भी एक चुनौती होगी। अभी लोकसभा चुनाव से पहले बहुत कुछ घटेगा। लेकिन तय है कि 2024 का समर रोचक होने वाला है। जिसे स्वस्थ लोकतंत्र के लिये सकारात्मक ही कहा जाना चाहिए।

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