नेकी का साथ
एक सेठ की दुकान पर हरिया नाम का नौकर काम करता था। हरिया दिल का बड़ा दयालु और नेक था। वह सभी की तन-मन-धन से सहायता करता था। सेठ जी को यह बातें बड़ी अजीब लगती थी। सेठ ने उसे कई बार समझाया लेकिन वह हर बात हंस कर टाल देता। सेठ ने उसको समझाने के लिए एक डंडा दिया और कहा कि इस डंडे को सबसे मूर्ख व्यक्ति को देना। हरिया ने वह डंडा अपने घर संभाल कर रख लिया, उम्र बीतने के पश्चात सेठ एक बार गंभीर रूप से बीमार हुआ। सेठ ने हरिया को कहा कि तू बड़ा सेवादार है। तू मेरे साथ चल। हरिया ने कहा सेठ जी! इंसान अकेला आया है, अकेला ही जाएगा। यदि आप अपनी कमाई में से कुछ पैसे गरीब या जरूरतमंद के लिए खर्च करते तो आपका अंतिम समय बहुत अच्छा रहता। लेकिन आपने सदैव धन-दौलत से ही प्रेम किया। जरूरतमंदों की दुआएं आपने कभी नहीं ली। सदा उनका शोषण ही किया है। तो ये डंडा आप ही संभालें, मुझे आप से ज्यादा मूर्ख कोई नहीं मिला। हरिया की बात सुनकर सेठ के पास पछतावे के सिवा कुछ नहीं था।
प्रस्तुति : संदीप भारद्वाज ‘शांत’