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आपदा को अवसर में बदलने से स्वर्णिम भविष्य

05:52 AM Dec 02, 2024 IST

रेनू सैनी

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आपके घर की कोई कीमती वस्तु टूट गई या उसका एक हिस्सा खराब हो गया तो आप क्या करते हैं? अक्सर कई लोग उस पूरी की पूरी वस्तु को बाहर निकाल देना ही उचित समझते हैं। उन्हें लगता है कि नई वस्तु आ जाएगी। मगर कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने साथ कोई दुर्घटना या हादसा होने पर ऐसे कदम उठाने से परहेज नहीं करते। कई लोग तो आत्मघाती कदम तक उठा लेते हैं।
जापान एक ऐसा देश है जहां के लोग लंबी आयु जीते हैं। ये लोेग अंत तक मेहनत करते हैं। नियम का पालन करते हैं और अपनी संस्कृति को तन-मन से अपनाते हैं। ये लोग अपने एवं वस्तुओं के साथ किंत्सुगी शैली में जीते हैं। आप सोच रहे होंगे कि किंत्सुगी क्या है? किंत्सुगी एक जापानी कला है। इसके अंतर्गत मिट्टी के बर्तनों के टूटे हुए टुकड़ों को सोने से जोड़कर उसे पहले से कहीं अधिक बहुमूल्य और उपयोगी बना दिया जाता है। ऐसा करके इस धारणा को प्रबल किया जाता है कि वस्तु की कमियों को स्वीकार करके, थोड़ा दिमाग लगाकर उन्हें पहले से कहीं अधिक मजबूत और सुंदर बनाया जा सकता है। हमारा व्यक्तित्व भी अपूर्ण और कमियों से भरा है। यदि हम कमियों का ही रोना रोते रहेंगे तो जीवन की संुदर और सकारात्मक चीजों को नहीं देख पाएंगे। वहीं यदि हम अपनी कमियों को अपनाकर अपने व्यक्तित्व को उनसे इतर निखारने का प्रयत्न करेंगे तो कहीं अधिक मूल्यवान बन जाएंगे।
कृष्णा एक नौजवान है। वे करौली के सायपुर में रहते हैं। प्रकृति ने उनके साथ बहुत नाइंसाफी की। जीवन में एक के बाद एक मिलने वाले आघातों ने उनके व्यक्तित्व को कमजोर कर दिया। बचपन में ही एक दुर्घटना में उनके दोनों हाथ कट गए। जब वे केवल पांच साल के थे तो उनके हाथ मोटर में आ गए। जान बचाने के लिए डॉक्टर को उनके दोनों हाथों को काटना पड़ा। पांच वर्ष की आयु में बच्चों को यह अहसास ही नहीं होता कि हमारे ये अंग कितने महत्वपूर्ण हैं। कृष्णा जब बड़े हुए तो कई बच्चे उन्हें हेय भाव से देखते। कुछ बात करने से कतराते। इन सबमें बेचारे कृष्णा का कोई दोष नहीं था। लेकिन फिर भी लोग उन्हें अधूरा, अपूर्ण समझते थे। फिर कोरोना में उनके दैनिक कार्य करने वाली माता भी साथ छोड़ गई। वृद्ध पिता बिस्तर से लग गए। अब क्या हो?
कई बार कृष्णा को अपनी अपूर्णता से शिकायत हुई। उन्होंने मृत्यु को भी गले लगाने की सोची। लेकिन फिर उनके अंतर्मन ने उन्हें कचोटा। उन्हें महसूस हुआ कि बहुमूल्य जीवन अपूर्णता पर रोने में नष्ट करने के लिए नहीं है। बस उसी दिन से उन्होंने स्वयं को बदलना प्रारंभ कर दिया। उन्होंने जान लिया कि शिक्षा ही एक ऐसा हथियार है जो उनकी कमज़ोरी, अपूर्णता को संवार सकती है और उनके जीवन को बेशकीमती बना सकती है। उन्होंने एमए, बीएड तक शिक्षा प्राप्त की। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी रोजगार प्राप्त नहीं हुआ। ऐसे में कृष्णा ने हौसला नहीं हारा। उन्होंने अपने घर को ही नि:शुल्क पाठशाला में बदल लिया। उनकी यह पाठशाला उनके घर में ही चलती है। वे लगभग चार सालों से निराश्रित और गरीब बच्चों को पढ़ा रहे हैं। उनके पास प्रतिदिन 30-40 बच्चे आते हैं। हैरानी की बात तो यह है कि वे बोर्ड पर कलम अपने पैरों से चलाते हैं। पैर ही उनके हाथ हैं। पैरों से ही वे अपना काम करते हैं। उनके इस अद्भुत स्कूल में रविवार की भी छुट्टी नहीं रहती। उनसे पढ़ने वाले बच्चों का भी यही कहना है कि कृष्णा भैया से पढ़े बिना दिन अच्छा ही नहीं लगता। आज वही लोग जो पहले कृष्णा के लिए बेचारगी भरे भाव प्रदर्शित करते थे, उनका उदाहरण देते नहीं थकते।
कृष्णा ने गरीबी, अपंगता के बावजूद जीवन में शिक्षा रूपी स्वर्ण से अपने व्यक्तित्व की आभा को दमका लिया। उन्होंने किंत्सुगी कला से प्रेरित होकर इस बात को समझा कि कुछ भी बेकार नहीं होता। थोड़ी-सी समझदारी और प्रतिभा से जीवन को गर्व से जिया जा सकता है। आज वे उसी गर्व के साथ जी रहे हैं और असंख्य गरीब बच्चों को दिशा दे रहे हैं।
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में उतार-चढ़ाव आते ही हैं। जब आपके जीवन में मुश्िकल भरे दौर आएं तो उस समय किंत्सुगी कला को स्मरण करें। यदि आप कठिन पड़ाव में किंत्सुगी कला के अनुसार आचरण करते हैं तो उस कठिन दौर को अवसर में बदल सकते हैं। ड्यूक एलिंगटन भी यही कहते हैं कि, ‘समस्या आपके लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने का अवसर है।’
वृद्ध होते माता-पिता के संदर्भ में भी किंत्सुगी कला को अपनाकर हर परिवार खुश रह सकता है। यदि माता-पिता पहले की तरह शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं हैं तो उनकी बौद्धिक क्षमता का लाभ उठाएं। छोटे बच्चों को उनकी छाया में संस्कार सिखाएं, शिक्षा प्राप्त कराएं। इससे बच्चे परिवार का महत्व समझेंगे, अच्छी शिक्षा, आचरण की मजबूत नींव में बढ़े होंगे। जब नींव मजबूत होगी तो भवन स्वयं ही सुदृढ़ होगा।
यदि आप भी किसी अपूर्णता से परेशान हैं तो अभी से किंत्सुगी कला को अपनाएं। आपका कल स्वर्ण-सा दमकेगा, चट्टान की तरह मजबूत होगा।

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