अनुशासन से लक्ष्य
एक बार अनुशासनप्रिय सुमेध के एक शिष्य वरतंतु ने उनसे पूछा कि गुरु जी, यह सत्य है कि विद्याध्ययन का आधार तो बौद्धिक प्रखरता है, लेकिन आप समूचे जीवन को कठोर अनुशासन में बांधने की बात क्यों करते हैं? सुमेध बोले, ‘समय आने पर तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर तुम्हे मिल जाएगा। कुछ दिनों बाद गुरु सुमेध अपने शिष्यों के साथ भ्रमण हेतु निकले। भ्रमण करते हुए वे गंगा तट पर पहुंचे। वहां गुरु सुमेधु ने वरतंतु से पूछा, ‘वरतंतु क्या तुम जानते हो कि गंगा की यात्रा कहां से कहां तक होती है?’ वरतंतु ने कहा, ‘हां गुरुदेव! गंगा गोमुख से चलकर गंगासागर में विलीन होती है।’ गुरु ने फिर पूछा’ ‘और वत्स! यदि गंगा के ये दोनों किनारे न हों, तो क्या यह इतनी लम्बी यात्रा कर पाएगी? वरतंतु ने कहा, ‘नहीं। तब तो गंगा का जल इधर-उधर बिखर जाएगा। इतना ही नहीं इससे मिलने वाले लाभों से भी हम सभी वंचित रह जाएंगे क्योंकि किनारों के टूटने पर कहीं तो बाढ़ आ जाएगी और कहीं सूखा पड़ जाएगा।’ गुरु सुमेध ने कहा, ‘वत्स! यही तुम्हारे उस दिन के प्रश्न का उत्तर है। अनुशासन के अभाव में विद्यार्थियों की जीवन ऊर्जा बिखर जाएगी। उनके शरीर व मन निस्तेज, निष्प्राण हो जाएंगे। अनुशासन में रहकर ही विद्या को आत्मसात किया जा सकता है।
प्रस्तुति : राजेश कुमार चौहान