स्वच्छ स्रोतों से ऊर्जा आत्मनिर्भरता का लक्ष्य
शशांक द्विवेदी
पिछले दिनों नयी दिल्ली के विज्ञान भवन में अंतर्राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसमें भारत समेत दुनिया के कई देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसमें भारत सरकार ने हरित हाइड्रोजन उत्पादन को बढ़ावा देने और इसे प्रौद्योगिकी, अनुप्रयोगों, नीति और विनियमन में वैश्विक रुझानों के साथ जोड़ने की कोशिश की। जिस तरह से देश को ग्रीन हाइड्रोजन का वैश्विक हब बनाने के लिए कदम उठाने शुरू किए गये हैं, उसको लेकर विदेशी एजेंसियां भी आश्वस्त हैं। दुनिया की तीन बड़ी वित्तीय विकास से जुड़ी एजेंसियों एशियन डेवलपमेंट बैंक, यूरोपियन इन्वेस्टमेंट बैंक और विश्व बैंक ने करीब 28 अरब डॉलर की मदद देने का प्रस्ताव किया है।
ग्रीन हाइड्रोजन पर आयोजित इस अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी का कहना था कि भारत अभी तक ऊर्जा का आयात करता रहा है, लेकिन ग्रीन हाइड्रोजन के विकास के साथ उसके एक ऊर्जा निर्यातक देश बनने की पूरी संभावना है। कई देश यहां से ग्रीन हाइड्रोजन का आयात करने की इच्छा जता चुके हैं। यूरोपियन इन्वेस्टमेंट बैंक भारत का हाइड्रोजन मित्र बनेगा। भारत ने 2070 तक कार्बन नेट-ज़ीरो हासिल करने और 2047 तक ऊर्जा आत्मनिर्भरता का लक्ष्य निर्धारित किया है जिसमें ग्रीन हाइड्रोजन की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसी को मद्देनजर भारत सरकार ने बीती जनवरी में ग्रीन हाइड्रोजन मिशन का एेलान किया था। देश में मिश्रित पेट्रोल में इसके निर्माण की जमीन तैयार करने के लिए 19,744 करोड़ रुपये की सब्सिडी देने का प्रावधान है। वहीं ग्रीन हाइड्रोजन के लिए सबसे जरूरी तत्व है रिन्युएबल सेक्टर में बनी ऊर्जा। खास बात यह कि भारत अभी दुनिया में सबसे सस्ती दर पर सौर ऊर्जा बना रहा है। ऐसे में विदेशी एजेंसियां यहां ग्रीन हाइड्रोजन से जुड़े उद्योगों में दांव लगाने को तैयार हैं।
अंतर्राष्ट्रीय एनर्जी एजेंसी की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2030 तक दुनिया में ग्रीन हाइड्रोडन की मांग 20 करोड़ टन सालाना की होगी। भारत द्वारा ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के तहत वर्ष 2030 तक 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन बनाने का लक्ष्य रखा गया है। जाहिर है कि ग्रीन हाइड्रोजन की वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए उक्त लक्ष्य नाकाफी है। ग्रीन हाइड्रोजन मिशन का लक्ष्य 2030 तक देश में लगभग 125 गीगावाट की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वृद्धि के साथ, प्रतिवर्ष कम से कम 5 मिलियन मीट्रिक टन की उत्पादन क्षमता का विकास करना है।
हाइड्रोजन प्राकृतिक तौर पर अन्य तत्वों के साथ संयोजन में मौजूद है। इसे पानी आदि यौगिकों से निकाला जाता है। हाइड्रोजन अणु के उत्पादन की प्रक्रिया ऊर्जा लेती है जिसे इलेक्ट्रोलिसिस कहते हैं। पानी के मामले में नवीकरणीय ऊर्जा (जैसे हवा, पानी या सौर ऊर्जा) का उपयोग करके पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विखंडन करके जिस हाइड्रोजन का उत्पादन किया जाता है उसे ही ग्रीन हाइड्रोजन कहा जाता है। ग्रीन हाइड्रोजन में ग्रे हाइड्रोजन की तुलना में काफी कम कार्बन उत्सर्जन होता है। ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग उन क्षेत्रों को डीकार्बोनाइज करने के लिए किया जा सकता है जो विद्युतीकरण के लिए कठिन हैं, जैसे स्टील और सीमेंट उत्पादन। यह जलवायु परिवर्तन को सीमित करने में मदद करता है।
ग्रीन हाइड्रोजन मिशन से इसमें इंसेंटिव के जरिये इलेक्ट्रोलाइजर जैसी सामग्री की लागत को कम करने में मदद मिलेगी। दरअसल, वर्तमान में प्रति किलोग्राम हाइड्रोजन की कीमत लगभग 3 अमेरिकी डॉलर है। इस मिशन से आने वाले समय में यह दाम आधे से भी कम हो जाएगा। जिससे स्थानीय कारोबारी विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे और निर्यात में बढ़ोतरी होगी। इससे आयातित पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स पर निर्भरता कम होगी और स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन हो सकेगा। ग्लोबल वार्मिंग का समस्या में पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का बड़ा हाथ है। इसलिए प्राकृतिक स्रोतों से बनी बिजली के प्रयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। जिससे भारी उद्योगों को डीकार्बोनाइज करने में मदद मिलेगी और कार्बन उत्सर्जन भी कम होगा।
भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को डीकार्बोनाइज़ करने और जलवायु लक्ष्य प्राप्त करने के लिये हरित हाइड्रोजन की क्षमता को चिन्हित किया है। देश ने हरित हाइड्रोजन के उत्पादन, उपयोग एवं निर्यात को बढ़ावा देने के लिये कई और नीतियां लागू की हैं। कंपनियों की तरफ से भारत में 35 लाख टन सालाना क्षमता की ग्रीन हाइड्रोजन लगाने की घोषणा हो चुकी है। इसमें दुनिया की कुछ दिग्गज ऊर्जा कंपनियां शामिल हैं। वर्ष 2030 तक ग्रीन हाइड्रोजन की जितनी क्षमता देश में होगी, उसका 70 प्रतिशत निर्यात किया जाएगा। हाइड्रोजन के अनेक उपयोग हैं। ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग उद्योग में किया जा सकता है और घरेलू उपकरणों को बिजली देने के लिए मौजूदा गैस पाइपलाइनों में संगृहीत किया जा सकता है।
हाइड्रोजन मिशन का मुख्य उद्देश्य भारत को ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब और स्वच्छ ऊर्जा का स्रोत बनाना है। इससे अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में लाखों रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे जिसके चलते भारत में स्वच्छ ऊर्जा के स्रोत में लगने वाली लागत भी कम होगी। उम्मीद है यह मिशन देश को कार्बन के नेट जीरो लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में लेकर जायेगा।
लेखक मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डायरेक्टर और विज्ञान विषयों के लेखक हैं।