लक्ष्य की प्रतिबद्धता
जंगल में साधु की एक कुटिया थी। एक यात्री हाथ में दीया लिये उधर से गुजरा। दीया उसे राह दिखा रहा था। साधु ने यात्री को रोकते हुए कहा, ‘भाई, दिन भर के सफर में थक गए होंगे। रात को कुटिया में ठहर जाओ। सुबह चले जाना।’ यात्री नहीं रुका। साधु ने फिर टोका, ‘तुम्हारे पास छोटा-सा दीया है, जिसकी रोशनी मंद है। राह में तकलीफ़ हो सकती है।’ ‘इसे आप मंद प्रकाश कहते हैं|’ यात्री ने हैरत से कहा। ‘मेरे से यह चार कदम आगे ही रहता है। यात्रा के दौरान यह नन्हा दीया ही मेरा सबसे विश्वसनीय साथी है।’ ‘लेकिन रास्ते में कई तरह की अड़चन हैं। तुम्हारा जीवन संकट में पड़ सकता है।’ साधु ने उसे चेताया। पथिक ने साधु को आश्वस्त करते हुए कहा, ‘साहसी व्यक्ति का लक्ष्य निश्चित होता है। लक्ष्य के प्रति समर्पित समय का अर्थ ही जीवन है। हमारे बड़े संघर्ष के सहारे इतिहास की पगडंडी पर असंख्य अमिट चिन्ह छोड़ गये हैं। बिना रुके, बिना थके जो लक्ष्य की ओर बढ़ता रहे, असल में वही जीवित है।’ साधु ने यात्री को आशीष देते हुए कहा’ ‘वत्स! मैं तुमसे संतुष्ट हुआ। तुम्हारी यात्रा शुभ हो।’
प्रस्तुति : राजकिशन नैन