ग्लोबल वार्मिंग कोई तबाही नहीं बल्कि प्रकृति का चक्र : डॉ. आर्य
यशपाल कपूर/निस
सोलन, 4 मार्च (निस)
सोलन जिले के धर्मपुर स्थित टेथिस म्यूजिय़म फ़ाउंडेशन की ओर से निर्मित ‘क्लाइमेट चेंज नेचुरल-इंजॉय इट’ नामक एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म मुंबई में आयोजित फिल्म महोत्सव में एक नया परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत करने जा रही है। इस फिल्म का निर्देशन आमोदिनी आर्य ने किया है और इसका आधिकारिक प्रदर्शन 9 मार्च को मुंबई में होने वाले फिल्म फेस्टिवल में होगा। वैज्ञानिक तथ्यों और अनुसंधान पर आधारित यह डॉक्यूमेंट्री डर पर आधारित कथाओं को चुनौती देते हुए पृथ्वी की जलवायु परिवर्तन को उजागर करती है। डॉक्यूमेंट्री फिल्म यह संदेश देती है कि ग्लोबल वार्मिंग कोई तबाही नहीं बल्कि प्रकृति का चक्र है, जिसने मानव सभ्यता और पारिस्थितिकी को विकसित करने में योगदान दिया है। टेथिस म्यूजिय़म फ़ाउंडेशन का उद्देश्य नीति-निर्माताओं, शोधकर्ताओं और आम जनता को यह समझाना है कि जलवायु परिवर्तन एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, न कि केवल मानव जनित आपदा।
यह विचारोत्तेजक फि़ल्म प्रसिद्ध भूवैज्ञानिक और कसौली निवासी डॉ. रितेश आर्य के अनुसंधान से प्रेरित है। प्रसिद्ध हाइड्रोजियोलॉजिस्ट, जीवाश्म खोजकर्ता और जलवायु वैज्ञानिक डॉ. रितेश आर्य, जो लद्दाख जैसे उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जलवायु अनुसंधान कर रहे हैं, लंबे समय से यह तर्क देते रहे हैं कि जलवायु में परिवर्तन पृथ्वी के प्राकृतिक इतिहास का हिस्सा है। उनके शोध में यह दर्शाया गया है कि तापमान में उतार-चढ़ाव ने लाखों वर्षों से भू-दृश्यों और सभ्यताओं को आकार दिया है। यह फिल्म फॉसिल रिकॉर्ड, भू-आकृतिक अध्ययन और ऐतिहासिक जलवायु पैटर्न पर आधारित इन महत्वपूर्ण निष्कर्षों को प्रस्तुत करती है।
क्या खास है ये प्रमाण : डॉ.रितेश आर्य के मुताबिक भूवैज्ञानिक प्रमाण, तलछटी निक्षेपों और शैल संरचनाओं से प्राप्त प्रमाण, जो लाखों वर्षों के दौरान हिमयुग और गर्म अवधि के वैकल्पिक चक्रों को दर्शाते हैं। ड्रिलिंग रिकॉर्ड्स से पता चला कि लद्दाख में इंडस ग्लेशियर 10,000 साल पहले सिकुड़ कर विलुप्त हो गया था।