For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.

तीसरी पारी में मोदी के समक्ष वैश्विक चुनौतियां

07:41 AM Jun 17, 2024 IST
तीसरी पारी में मोदी के समक्ष वैश्विक चुनौतियां
Advertisement

जी. पार्थसारथी

भले ही कुछ आलोचकों का स्वभाव है भारत की आर्थिक नीतियों पर नुक्ताचीनी करना, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय तौर पर मान्य है कि अपने आर्थिक उदारवाद के साथ -किसी समय रहे लाइसेंस, परमिट, कोटा राज के अंत के बाद- भारत की आर्थिक वृद्धि दर तेजी से बढ़ रही है। स्वयं भारत और दुनिया भी मानती है कि इस बदलाव के मुख्य सूत्रधार डॉ‍. मनमोहन सिंह थे, जिनका योगदान देश के प्रधानमंत्री रहते हुए भी सर्वमान्य रहा। यह गौरतलब है कि मुक्त अर्थव्यवस्था बनाने को उनके उठाए कदम नए आयामों में बदल गए। दुनिया भी मानती है कि भारत विश्व की सबसे तेजी से तरक्की करती अर्थव्यवस्था है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का आकलन है कि इस साल भारत की आर्थिक वृद्धि दर 6.6 फीसदी रहेगी।
हालांकि, भारत उच्च आर्थिक विकास दर पाने की ओर अग्रसर है किंतु यह बात ध्यान में रखनी होगी कि विश्व में इसका रुतबा और प्रभामंडल अधिकांशतः मजबूत आर्थिकी एवं तकनीकी तरक्की से ही तय होगा। इस जरूरी आवश्यकता के चलते, एकदम साथ लगते पड़ोसियों से संबंध सुदृढ़ करने के अलावा भारत के समक्ष विकल्प कम ही हैं। इस ढंग के, जिनसे सुरक्षा एवं शांति सुनिश्चित हो, पश्चिम में लाल सागर-फारस की खाड़ी से लेकर पूरब में मलक्का की खाड़ी तक के इलाके में। अब यह व्यापक तौर पर मान्य है कि जो मुख्य चुनौतियां भारत के सामने अपनी सीमाओं पर और उनसे पार हैं, वे चीन की विस्तारवादी महत्वाकांक्षा और नीतियों से उपजी हैं।
लंबे समय तक भारत तेल संपन्न खाड़ी क्षेत्र से नज़दीकी रिश्ते बनाने की आकांक्षा रखता आया है, जहां पर लगभग 60 लाख भारतीय कामगार रोजी-रोटी कमा रहे हैं। एक ओर भारत ने सऊदी अरब के साथ नजदीकी संबंध स्थापित कर लिए हैं, वहीं दूसरी तरफ यूएई के साथ पहले से अच्छे संबंधों को और प्रगाढ़ किया जा रहा है। अमेरिका और सऊदी अरब के बीच रिश्ते पुनः मधुर बनाने में भारत की भूमिका अहम रही, जब अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन द्वारा सऊदी अरब के राजपरिवार को लेकर की गई नागवार टिप्पणी के बाद, सऊदी अरब की पलटवार बयानबाजी के बाद इनके संबंध तल्ख हो गए थे। अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक स्लिवन और सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान के बीच हुई वार्ता में यूएई के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शेख तहनून बिन ज़ायद अल नाहयान भी उपस्थित थे। इन वार्ताओं के एक सूत्रधार भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल थे। यूएई, अमेरिका और भारत के बीच सहयोग बढ़ाने के वास्ते एक समझौता हुआ और जल्द ही अंतिम प्रारूप पर दस्तखत किए गए। अब पड़ोस के छह अरब राष्ट्रों सहित हिंद महासागर क्षेत्र के पश्चिमी किनारे तक के इलाके में उत्तरोतर सकारात्मक एवं सहयोगात्मक भूमिका निभाने के लिए भारत का मंच तैयार है।
भारत-अमेरिकी संबंध तब से अधिक प्रगाढ़ होते गए जब अमेरिकी राष्ट्रपति ने तय किया कि हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती ताकत से संतुलन बैठाना भारत के बस की बात है और वह यह करना भी चाहेगा। दोस्ती के नाटक के बावजूद चीन की नीतियां भारत के प्रभाव को सीमित करने से बंधी हुई हैं। चीन पाकिस्तान के मिसाइल एवं परमाणु क्षमताओं को मजबूती देने का काम जारी रखे हुए है। भारत की अफगानिस्तान की तरफ लगती पश्चिमी सीमा के साथ और परे, चीन पाकिस्तान के साथ निकट सहयोग बनाकर काम कर रहा है। ईरान के साथ रिश्ते मजबूत करने के भारत के हालिया प्रयास, जिसमें सामरिक रूप से अहम चाबहार बंदरगाह का विकास कार्य शामिल है, इससे जहां भारत को मध्य एशिया तक और अधिक आर्थिक एवं नौवहनीय पहुंच बनाने में मदद मिलेगी, वहीं अफगानिस्तान तक भारत की पहुंच को अड़ंगे लगाने के पाकिस्तानी प्रयासों की गुजाइश कम बचेगी।
ईरान के साथ भारत के बढ़ते रिश्तों पर अमेरिका ने पहले एतराज़ जताया था, लेकिन अब लगता है कि बाद में विचार करने पर, उसे ईरान से होकर, अफगानिस्तान के साथ जोड़ता भारत का परिवहन गलियारा बनाना स्वीकार्य है। उम्मीद के मुताबिक पाकिस्तान इस परिवहन गलियारे से खुश नहीं है, क्योंकि इससे रावलपिंडी के सेना मुख्यालय में बैठे पाकिस्तानी जनरलों को भारत की ईरान, अफगानिस्तान और आगे मध्य एशिया तक बनती पहुंच में रोड़े अटकाने का मौका नहीं मिलता। आगे चलकर यह गलियारा अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे से जुड़ने में भारत का एक अहम आवाजाही द्वार बन जाएगा, इसके होकर भारत पहले मध्य एशिया और रूस से जुड़ेगा, तो अंतिम छोर में, यूरोप तक समुद्री, रेल और सड़क मार्ग से जुड़ जाएगा।
भारत-अमेरिका संबंधों पर जिस अहम कारक की छाया पड़ी है, वह है अमेरिकी मीडिया द्वारा भारत में लोकतांत्रिक आजादी पर कथित कुठाराघात को लेकर हो रही निरंतर आलोचना। आमतौर पर महसूस किया जाता है कि इस मीडिया आलोचना को राष्ट्रपति बाइडेन का समर्थन हासिल है। यह भी माना जा रहा है कि यदि साल के अंत में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में भारत के प्रति दोस्ताना रखने वाले ट्रंप विजयी हुए तो इस किस्म की आलोचनाएं बंद हो जाएंगी। हो सकता है भारत उन कुछ देशों में एक हो, जिसके नेतृत्व और लोगों को राष्ट्रपति ट्रंप मित्रवत और बेबाक लगें, जब वे भारत आए थे। चीन को लेकर ट्रंप में न तो कोई भ्रम है न ही उम्मीदें और पाकिस्तान के बारे में सोचने की तरफ भी उनका झुकाव कम ही रहा है।
बाइडेन प्रशासन की रीति के विपरीत पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप भारत के लोकतंत्र के बारे में कोई उपदेश नहीं देते। तथापि अमेरिका के साथ हमारे संबंध लगातार निकट बनते गए, जिसमें भारत-अमेरिका में नौवहनीय सम्पर्क से सुदृढ़ता लाने हेतु सहयोग काफी बढ़ा। हिंद महासागर में बीच समुद्र जलपोतों पर हमला या लूट की वारदातों से पैदा हुए तनाव के बाद यह घटनाक्रम काफी महत्वपूर्ण है, ठीक इसी वक्त गाज़ा पर इस्राइली कब्जा अभियान जारी था। होरमुज़ की खाड़ी से लेकर मलक्का की खाड़ी तक फैले हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते दबदबे के मद्देनज़र अमेरिका भारत को बतौर एक महत्वपूर्ण सामरिक भागीदार मानना जारी रखे हुए है।
चीन और पाकिस्तान के साथ अपनी सीमाओं पर भारत की समस्याएं और तनाव आगे भी जारी रहेंगे। लगभग दिवालिया होने के बावजूद भी, लगता है पाकिस्तान भारत में आतंकवाद को हवा देना जारी रखे हुए है। जहां शरीफ़-बंधु और उनकी सिविलियन सरकार ने पाकिस्तान को दिवालिया होने के कगार पर धकेल दिया है, भारत का पाला ‘गोली-चलाने को सदा तत्पर’ रुख वाले पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष असीम मुनीर से पड़ा है, जिनके हाथ में राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों बाबत शक्ति है। अपने गुरु और पूर्ववर्ती जनरल बाजवा के बरअक्स, जिन्हें समझ थी कि भारत के साथ तनाव का असर पाकिस्तान की आर्थिक एवं कूटनीति पर क्या होगा, लगता है गर्ममिजाज जनरल मुनीर भारत पर आतंकवाद थोपने पर उतारू हैं, विशेषकर जम्मू-कश्मीर में। जनरल मुनीर द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का उत्तर देने को भारत को राजनयिक एवं सैन्य रूप से प्रतिक्रिया देने की जरूरत है।
बेशक पाकिस्तान की सिविलियन और राजनीतिक संस्थाओं का नियंत्रण शरीफ़ बंधुओं के हाथ है, मुनीर द्वारा भारत के खिलाफ प्रायोजित आतंकवाद पर उनका प्रभाव बहुत कम है, जो पहले की भांति जम्मू-कश्मीर एवं अन्य जगहों पर जारी है। अतएव, भारत को जम्मू-कश्मीर ही नहीं इससे परे के इलाके में मुनीर द्वारा पोषित आतंकी कृत्यों पर नज़दीकी नज़र बनाए रखने की जरूरत है। इसी बीच भारत और ईरान ने अफगानिस्तान के साथ अच्छे रिश्ते कायम कर लिए हैं, जिसमें भारत के ध्यान का मुख्य केंद्र आर्थिक सहयोग पर है। जो भी है, अहम होगा कि पाकिस्तान के साथ राब्ता और संबंध के लिए विगत की भांति ‘पर्दे के पीछे वार्ता’ चैनल खुला रखा जाए। जिससे कि वह प्रत्येक बैठक को भारत विरोधी प्रचार का जरिया न बनाने पाए। वहीं आतंकवाद को बढ़ावा देने पर भारत भी जवाबी कार्रवाई करने में परहेज न करे।

Advertisement

लेखक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक हैं।

Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement
×