ग्लेशियर संकट
हम केदारनाथ संकट के उन भयावह परिणामों को नहीं भूल सकते, जब हिमनद पिघलने से बनी झील के टूटने से तबाही का मंजर पैदा हुआ था। लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के संकट के चलते ग्लेशियर पिघलने से हिमालयी क्षेत्रों में कई कृत्रिम झीलें बन रही हैं। इस बाबत केंद्रीय जल आयोग की हालिया रिपोर्ट चिंता बढ़ाने वाली है। जिसका संज्ञान लेते राष्ट्रीय हरित पंचाट ने केंद्र सरकार को सचेत करते हुए इस बाबत आवश्यक कदम उठाने को कहा है। जिससे भविष्य में किसी आपदा की आशंका को टाला जा सके। यदि समय रहते सरकार आवश्यक कदम उठाती है तो हिमनदों को संरक्षण की कोशिशें तेज की जा सकती हैं। साथ ही जरूरी है कि झीलों के टूटने की स्थिति में नदियों में अधिक जल प्रवाह के प्रबंधन की रणनीति पर भी विचार किया जाए। यह एक टकसाली सत्य है जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों ने हमारे दरवाजे पर दस्तक दे दी है। मानसून के दौरान बारिश के पैटर्न में आए बदलाव ने बड़े पैमाने पर भूस्खलन को अंजाम दिया है। दरअसल, ग्लोबल वार्मिंग के चलते तेज बारिश कम समय में ही बरस जाती है। साथ ही बादल फटने की घटनाओं में खासी तेजी आई है। कमोबेश यही स्थिति ग्लेशियरों के पिघलने में आई तेजी में नजर आती है। दरअसल, जलवायु संकट के घातक प्रभाव सारी दुनिया में नजर आ रहे हैं। कहीं अतिवृष्टि तो कहीं सूखे की स्थिति है। हिमनदों के पिघलने से न केवल समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है, बल्कि उसके तापमान में भी बदलाव देखा जा रहा है। वहीं चक्रवाती तूफान अमेरिका से लेकर एशियाई देशों में कहर बरपा रहे हैं।
कुल मिलाकर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से मानवता के अस्तित्व पर संकट की आहट महसूस हो रही है। लेकिन हिमालयी क्षेत्रों में हिमनदों के पिघलने से कृत्रिम झीलों का आकार बढ़ना एक खतरे की घंटी जैसा है। जिससे न केवल गंगा बल्कि ब्रह्मपुत्र जैसी बड़ी नदियों के जल प्रवाह में अप्रत्याशित बदलाव की आशंका बलवती हो रही है। जिससे न केवल जल के स्तर में अप्रत्याशित बदलाव होंगे, बल्कि जैव विविधता के लिये भी खतरा पैदा हो जाएगा। यदि झीलों के फटने से नदियों में बाढ़ की स्थिति बनती है तो निचले इलाकों में रहने वाले लाखों लोगों के जीवन के लिये खतरा पैदा हो सकता। बताया जाता है कि देश में करीब 67 ऐसी झीलों को चिन्हित किया गया है, जिनके क्षेत्रफल में चालीस फीसदी तक की वृद्धि हुई है। जिससे उत्तराखंड, लद्दाख व हिमाचल के कुछ इलाके प्रभावित हो सकते हैं। जो जरूरत बताता है कि समय रहते पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित की जाए। साथ ही आपदा प्रबंधन के लिये जरूरी कदम भी उठाये जाएं। ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि केंद्र सरकार राष्ट्रीय हरित पंचाट की सिफारिशों पर गंभीरता से विचार करेगी। जिससे हिमनदों के संरक्षण व नदियों के जल प्रवाह के नियंत्रण की दिशा में ठोस कदम उठाए जा सकें। साथ ही हमें देश में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने तथा प्रकृति के अनुरूप विकास योजनाएं बनाने की जरूरत है।