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ऊपर से कठोर, दिल के नरम पिता को भी दीजिए सम्मान

06:44 AM Jun 11, 2024 IST

सरस्वती रमेश
संतान को जो खुला प्रेम और स्नेह अपनी मां से मिलता रहा है वह पिता से कम ही मिल पाया है। पिता के स्नेह में एक संकोच रहा है। ऊपर से एक कठोर आवरण रहा है। जिसके भीतर के मुलायम प्रेम को समझने में सन्तान को बरसों लग जाते हैं। पुराने समय में बच्चों का बचपन पिता के प्यार-दुलार व पुचकार के बिना ही गुजर जाता था। लेकिन अब स्थितियां बदली हैं। हालांकि बहुत सारे पिता अब भी अपने कठोर स्वभाव से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाए हैं। देखा जाए तो पिता की कठोरता उस अग्नि के समान होती है, जो आवे में रखे मिट्टी के बर्तनों को पकाती है। यानी बच्चों को जीवन युद्ध में उतरने के लिए परिपक्व बनाता है।

धूप में छाया हैं पिता
एक बच्चा आम तौर पर अपने पिता के नाम से ही जाना जाता है। लेकिन पिता शब्द मात्र संबोधन नहीं। यह एक जिम्मेदारी है। मां से सन्तान का रिश्ता गर्भ से जुड़ा होता है मगर पिता से सन्तान का रिश्ता मन और आत्मा से जुड़ता है। पिता को इस रिश्ते को अपने स्नेह से सिंचित करना पड़ता है। यह स्नेह वह अपने सन्तान के लालन-पालन की जिम्मेदारियों को उठाते हुए करता है। धूप में छाया बनकर वह अपने सन्तान की रक्षा करता है। उसके लिए दिन-रात मेहनत करता है।
पिता-संतान का पारंपरिक रिश्ता
पिता से उसकी संतान का पारंपरिक रिश्ता काफी जटिल और गूढ़ रहा है। हर पिता अपने बच्चे से प्यार करता है, पर पिता का व्यवहार एक अलिखित अनुशासन से बंधा रहा है। अनुशासन का प्रभाव कहें या या पितृ-सत्ता की परछाई, पिता और उसकी संतानों के बीच भावनात्मक दूरी सदैव कायम रही। पिता के भीतर भी कोमल हृदय बसता है मगर उसके बच्चों ने उस कोमलता का कभी अहसास ही नहीं किया। दिक्कत यह कि उन्होंने अपने उत्तराधिकार और पेशे के साथ अपने व्यवहार की जटिलताओं को भी संतानों को सौंप दिया। बेटे पिता का सख्त चेहरा देखते हुए बड़े हुए और जब वो खुद पिता बने तो उन्होंने भी वही कठोरता ओढ़ ली।
हमारे भीतर बैठे हैं पिता

एक पिता अपनी सन्तान के उज्ज्वल भविष्य के लिए जीवन कठिन तपस्या में व्यतीत कर देता है। गर्मी, बरसात, जाड़ा सबसे लोहा लेता है ताकि उसकी सन्तान को भूखा न रहना पड़े। उन्हें शिक्षा-दीक्षा मिल सके। जीवन भर जिम्मेदारियों के बोझ से दबा रहता है, बिना किसी को अहसास दिलाये। पिता अपने बच्चों को जीवन के व्यावहारिक गुर सिखाता है। कठिनाइयों से जूझने के सबक हम पिता से प्राप्त करते हैं। धैर्य, साहस, मेहनत व लगन जैसी बातें जो जीवन जीने के लिए बहुत जरूरी होती हैं, हम पिता के आचरण को देखकर ही सीखते हैं। एक तरह से पिता हमारे अवचेतन में बैठ जाते हैं।
पिता बदल गए हैं
यह देखना सुखद है कि सदियों से कठोर रहे पिता अब पिघल रहे हैं। पिता भी मां की ही तरह बच्चों के करीब आ रहे हैं। न सिर्फ बच्चों को जी भर प्यार कर रहे हैं बल्कि उनके दोस्त बन उनकी हर बात समझने की कोशिश भी कर रहे हैं। उनके साथ खेलना, उनके शौक पूरे करना पिता को अब भाने लगा है। हर वक्त अब वो अनुशासन की घुट्टी अपने बच्चों को नहीं पिलाते। और न रौब झाड़ते हैं। अब वो मां की तरह बच्चों की देखभाल करते हैं। उनके भूख प्यास की फिक्र करते हैं। रोते बच्चों को गले से लगा रहे हैं पिता। पिता अब बदल गए हैं।
बदली परिस्थितियों में पिता

जहां पिता बदल रहे हैं वहीं पिता के साथ उनके बच्चों का व्यवहार भी बदल रहा है। जो माता-पिता बचपन में हमारी पूरी दुनिया होते हैं बड़े होते ही हमारी दुनिया से दूर होते जा रहे हैं। पिताओं के लिए हमारा प्रेम उपेक्षा में तब्दील हो जा रहा है। हम अपनी आधुनिक जिंदगी में उन्हें फिट नहीं मानते। कई बार लगता है जो जितना काबिल बन रहा पिता उसके लिए उतने की गैर-जरूरी। विदेश में जा बसे बच्चे अपने बूढ़े माता-पिता की कभी सुध नहीं लेते। बड़े-बड़े बंगलों में पिता के लिए जगह नहीं बन पा रही और उन्हें बोझ समझ वृद्धाश्रम का रास्ता दिखा दिया जाता है। बच्चे पिता को तभी तक पूछते हैं जब तक संपत्ति बेटों में बांट नहीं दी जाती। पिता दिवस के बहाने ही सही आइए अपने पिता के त्याग, समर्पण के तमाम कठिन दिनों के बदले हम उन्हें एक दिन सम्मान और स्नेह से भरा हुआ दें। उन्हें वो सम्मान दें जिसके वे वास्तव में हकदार हैं।
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