बरसात में गिलोय है बेहद लाभकारी
रेखा देशराज
मानसून का मौसम खांसी, जुकाम, मलेरिया, चिकन गुनिया के साथ-साथ कई तरह के संक्रमणों का मौसम होता है। क्योंकि बारिश अपने साथ सिर्फ उल्लास और खुशियां लेकर ही नहीं आती, तरह-तरह की गंदगी और मलबा भी साथ लाती है। इस मौसम में बैक्टीरिया और वायरल तेजी से फैलते हैं। कई तरह के बरसाती कीड़ों और मच्छरों की सक्रियता के लिए भी यह मौसम बहुत अनुकूल है। इसलिए इस दौरान बड़ी संख्या में लोग बीमार पड़ते हैं। इस मानसूनी संक्रमण से बचने के लिए अच्छी डाइट के साथ साथ कुछ विशेष जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल भी करना चाहिए, जो हमें इस मौसम में बीमार होने से बचाती हैं।
इम्यून सिस्टम को मजबूती
इस मौसम में गुडुची या गिलोय एक बहुत ही फायदेमंद जड़ी बूटी है, जिसके बारे में हमने कोरोना के समय बहुत कुछ जाना है। इस जड़ी-बूटी को देसी भाषा में अमृता भी कहते हैं और इस नामकरण के पीछे इसके अमृत जैसे गुण ही हैं। मानसून के मौसम में गुडुची या गिलोय हमें न सिर्फ कई तरह के संक्रमणों से बल्कि कब्ज और गैस जैसी खानपान संबंधी बीमारियों से भी बचाती है। गुडुची या गिलोय में हमारे इम्यून सिस्टम को मजबूत करने का जबरदस्त गुण होता है। इसलिए कोरोना के दौरान लोगों ने इसका बहुत ज्यादा सेवन किया था। अपने इसी गुण के कारण यह हमें कई तरह के संक्रमणों से बचाती है। चूंकि मानसून का मौसम बेहद संक्रामक होता है, इसलिए इस मौसम में स्वस्थ रहने के लिए गुडुची का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए।
बेहतर पाचन के साथ ऊर्जा प्रदाता भी
गुडुची में हाइपरग्लासेमिक के गुण पाये जाते हैं, इसलिए यह डायबिटीज की समस्या में भी हमारे लिए मददगार होती है। चूंकि इसकी तासीर गर्म होती है तो इसलिए मानसून के मौसम में सुबह-शाम चाय के रूप में इसके काढ़े का सेवन हमें दिनभर एनर्जेटिक बनाये रखता है और हम जो कुछ खाते हैं, वह आराम से पच जाता है। गुडुची के नियमित इस्तेमाल से हमारी भूख भी बढ़ती है।
गिलोय जूस के रोगहारी गुण
कोरोना के बाद गुडुची मार्केट की एक प्रमुख जड़ी बूटी के रूप में जानी जाती है और जगह-जगह इसका जूस प्राथमिकता से बेचा जाता है जो हमारे दिल की सेहत के लिए भी फायदेमंद होता है। वहीं इसके इस्तेमाल से डेंगू, स्वाइन फ्लू और मलेरिया जैसी संक्रामक बीमारियों से बचाव होता है। गुडुची का जूस सिर्फ बीमार होने पर या संक्रमित हो जाने पर ही असरकारी नहीं होता बल्कि सामान्य स्थितियों में भी इसके इस्तेमाल से हमारा शरीर फोड़े, फुंसियों, रक्तविकार और कई तरह की त्वचा संबंधी परेशानियों से बचा रहता है।
खास गुणकारी नीम पर चढ़ी बेल
आजकल बाजार में गिलोय के तमाम कैप्सूल भी मौजूद हैं। लेकिन कैप्सूल खाने से जहां तक हो बचना चाहिए और सीधे जड़ी-बूटी हासिल करके खाना कहीं ज्यादा फायदेमंद हो सकता है। आयुर्वेद के मुताबिक गुडुची या गिलोय में कई भिन्न -भिन्न गुण भी पाये जाते हैं। मसलन यह कि कई अलग-अलग जगहों की गुडुचियों में अलग अलग किस्म के गुण भी हो सकते हैं। यह बेल जिस पेड़ के ऊपर चढ़ती है, वास्तव में यह अपने अंदर उस पेड़ के गुणों को भी समाहित कर लेती है। अगर गिलोय या गुडुची नीम के पेड़ पर चढ़ेगी तो इसमें नीम के तमाम गुण भी आ जाएंगे। इसी तरह अमरूद के पेड़ में चढ़ी गुडुची की पत्तियों, तनों आदि में अमरूद के गुण भी पाये जाते हैं। वैसे भी नीम के पेड़ पर चढ़ी गुडुची जड़ी बूटी के रूप में सर्वोत्तम मानी जाती है। क्योंकि नीम अपने आपमें एक औषधीय पेड़ है। इसलिए इस पर चढ़ी गुडुची हमारे लिए बहुत फायदेमंद होती है।
खनिज व अम्ल की भरमार
गिलोय में गिलोइन नामक ग्लूकोसाइट और टिनोस्पोरिन, पामेरिन और टिनोस्पोरिक एसिड भी पाये जाते हैं। गिलोय या गुडुची में कॉपर, आयरन, फास्फोरस, जिंक, कैल्शियम और मैग्नीज का भी पर्याप्त भंडार होता है। लेकिन गिलोय या गुडुची बहुत आम जड़ी बूटी होते हुए भी खुद से इसका इस्तेमाल नुकसानदायक हो सकता है। इसलिए इस बेल के पत्तों का या इसके तने का या इसके किसी भी हिस्से का इस्तेमाल करने से पहले एक बार वैद्य या जड़ी बूटियों के जानकार से राय जरूर ले लें। इसके सारे गुण अपनी जगह, मगर बिना किसी विशेषज्ञ की राय के इसका सेवन बिल्कुल न करें। - इ.रि.सें.